पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७१७

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वायुपुराणम् कोशलायां मतङ्गस्य वापी पापनिषूदनी । स्नातास्तस्यां दिवं यान्ति कामचारविहंगमाः कुमारकोशलातीर्थे पर्वते पालपञ्जरे | पाण्डुकूले समुद्रान्ते पण्डारकवने तथा विमले च विपापे च सत्कृत्य प्रभवेऽभयम् | श्रीवृक्षे गृध्रकूटे च जम्बूमार्गे च नित्यशः असितस्य गुरोः पुण्ये योगाचार्यस्य धीमतः । तत्रापि श्राद्धमानन्त्यमसितायां च नित्यशः पुष्करेष्वक्षयं श्राद्धं तपश्चैव महाफलम् । महोदधौ प्रभासे च तस्मादेवं विनिदिशेत् देविकायां वृषो नाम कूपः सिद्धनिषेवितः । समुत्पतन्ति तस्याssपो गवां शब्देन नित्यशः योगेश्वरैः सदा जुष्टः सर्वपापबहिष्कृतः । दद्याच्छ्राद्धं तु यस्तस्मिस्तस्य वक्ष्यामि यत्फलम् अक्षयं सर्वकामीयं श्राद्धं प्रोणाति पै पितॄन् । जातवेदः शिला तत्र साक्षादग्नेः सनातनी यस्त्वग्नि प्रविशेत्तत्र नाकपृष्ठे स मोदते । अग्निः शान्तः पुनर्जातस्तस्मिन्दत्तं तदक्षयम् दशाश्वमेधिके तीर्थे तीर्थे पश्चाश्वमेधिके । यथोद्दिष्टं फलं तेषां नतूनां नात्र संशयः ख्यातं हयशिरो नाम तीर्थं सद्यो वरप्रदम् । श्राद्धं तत्र तदाऽक्षय्यं दत्वा स्वर्गे च मोदते ॥३६ ॥३७ ॥३८ ॥३६ ॥४० ॥४१ ॥४२ ॥४३ ॥४४ ॥४५ ॥४६ के पापों को दूर करने वाली पापनिषूदिनी नामक बावली है, उसमें स्नानकर स्वेच्छा से गमन करनेवाले पक्षी गण भी स्वर्ग प्राप्त करते हैं | ३६ | कुमारकोशला तीर्थ मे, पालपञ्जर नामक पर्वत पर, समुद्रान्त पाण्डुकूल नामक तीर्थ में, पण्डारक नामक वन में, अतिनिर्मल पाप रहित प्रभव अभय नामक तीर्थ में सत्कार कर श्रीवृक्ष, गृध्रकूट, जम्बूमार्ग, परम बुद्धिमान् योगाचार्य गुरुवर असित के असिता नामक पवित्र तीर्थ मे नित्य श्राद्ध करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है |३७-३६ | पुष्कर तीर्थ में श्राद्ध का अक्षय फल होता है, तपस्या महान् फलदायिनी होती है । महासमुद्र में प्रभास नामक तीर्थ में भी ऐसी फल- प्राप्ति होती है, इसीलिये ऐसा कहा गया है |४० देविका मे सिद्धों द्वारा मुसेवित वृष नामक एक कूप है, जिसका जल नित्यप्रति गौओं के शब्द से ऊपर उछलता है | सभी पापों से वहिष्कृत रहनेवाले योगेश्वसे से सुसेवित उस कूप पर जो श्राद्ध करता है, उसके उस श्राद्ध का फल बतला रहा हूँ, वह श्राद्ध सभी मनोरथों को पूर्ण करनेवाला एवं अक्षय फलदायी है, तथा पितरों को प्रसन्न करता है । वहाँ पर साक्षात् अग्नि की सनातन काल से प्रतिष्ठित जातवेद नाम शिला है ।४१-४३। वहाँ जो कोई व्यक्ति उस अग्नि में प्रवेश करता है वह स्वर्गलोक में आनन्द का अनुभव करता है । एवं शान्त अग्नि होने पर पुनर्जन्म धारण करता है. उस परम पवित्र तीर्थ में दिया हुआ श्राद्धादि का दान अक्षय फलदायी होता है | ४४ | दशाश्वमेध तीर्थ में एवं पञ्चाश्वमेध तीर्थ में श्राद्ध करने पर दस एवं पाँच अश्वमेध यज्ञों का फल सचमुच प्राप्त होता है, इसमें सन्देह नही करना चाहिये |४५ | यशिर नामक पवित्र एवं प्रख्यात तीर्थ शीघ्र वरदान देनेवाला है, वहाँ पर श्राद्धकर्म अक्षय फलदायी होता है, एवं श्राद्धकर्ता स्वर्ग में आनन्द का अनुभव करता है |४६ | कुम्भतीर्थं में जाकर लोग