पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७११

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६६० वायुपुराणम् पूर्वं निवेदयेत्पिण्डं पश्चाद्विप्रांश्च भोजयेत् | योगात्मानो महात्मानः पितरो योगसंभवाः ॥ सोममाप्याययन्त्येते पितरो योगमास्थिताः तस्माद्द्द्याच्छुचिः पिण्डान्योगिभ्यस्तत्परायणः । पितॄणां हि भवेदेसत्साक्षादिव हुतं हविः ब्राह्मणानां सहस्त्रेभ्यो योगी चाग्रासने यदि । यजमानं च भोक्तश्च नौरिवाम्भसि तारयेत् असतां प्रग्रहो यत्र सतां चैव विमानना । दण्डो देवकृतस्तत्र सद्यः पतति दारुणः हित्वाऽऽगमं सधर्माणं बालिशं यत्र भोजयेत् । आदिकर्म समुत्सृज्य दाता तत्र विनश्यति पिण्डमग्नौ सदा दद्याद्भोगार्थी तु प्रयत्नतः । प्रजार्थी योषिते दद्यान्मध्यमं तत्र पूर्वकम् उत्तमां द्युतिमान्विच्छन्गोषु नित्यं प्रयच्छति । प्रज्ञां पूजां यशः कोति गोषु नित्यं प्रयच्छति प्रार्थयन्दीर्घमायुश्च वायसेभ्यः प्रयच्छति । सौकुमार्यमथान्विच्छ कुक्कुटेभ्यः प्रयच्छति एवमेतत्समुद्दिष्टं पिण्डनिर्वपणात्फलम् । आकाशं शमयेद्वाऽपि स्थितोऽप्सु दक्षिणामुखः ॥ पिर्तॄणां स्थानमाकाशं दक्षिणा चैव दिग्भवेत् · ॥२६ ॥२७ ॥२८ ॥२६ ॥३० ॥३१ ॥३२ ॥३३ ॥३४ - वाले हैं, अत. सर्वप्रथम इन्हें पिण्डदान करना चाहिये, पश्चात् ग्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये । इसीलिये पितरों में श्रद्धा एवं भक्ति रखनेवाले व्यक्ति पवित्र होकर उन परम योगी पितरों को सर्वप्रथम पिण्डदान दें यह पिण्डदान हो पितरों के लिये साक्षात् अग्नि मे हुनी गई हवि के समान है | २५ - २ | श्राद्ध के अवसर पर सहस्रों ब्राह्मणों मे से यदि एक भी योगाभ्यासी अग्रासन पर बिठाया गया है तो वह अकेला ही जल में नाव की तरह यजमान और अन्य भोक्ता - सब का उद्धार करता है |२८| जिस स्थान पर असत्पुरुषों का विशेष सम्मान एवं सत्पुरुषों का अपमान होता है, वहाँ अति दारुण देवदण्ड शीघ्र ही गिरता है |२६| जिस स्थान पर धर्माचरण में रत रहनेवाले एवं अतिथि रूप में समागत ब्राह्मण को छोड़कर किसी धूर्त अथवा मूर्ख ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है, वहां वह दाता अपने पूर्व जन्म के भोग्य कर्मों के रहते हुये भी विनाश को प्राप्त होता है |३०| भोग की इच्छा करनेवाला प्रयत्न पूर्वक सर्वदा अग्नि में पिण्डदान करे । सन्तति का अभिलाषी स्त्रियों को सर्वदा पिण्ड दें, किन्तु ऐसे समय भी पिण्डदान को अन्य क्रियाएँ उससे पूर्व ही कर लेनी चाहिये |३१| उत्तम कान्ति की अभिलाषा करनेवाला नित्य गौओं को पिण्डदान करता है इसी प्रकार उत्तम वुद्धि, पूजा, (सम्मान) यश, कीर्ति की अभिलाषी भी नित्य गौओं को पिण्ड देता है |३२| दीर्घायु की प्रार्थना करनेवाला नित्य प्रति कौओं के लिये वलिदान करता है । सुकुमारता का इच्छुक व्यक्ति मुर्गों को नित्य वलिदान देता है | ३३ | पिण्डदान के फल का वर्णन कर चुका । अथवा जल में दक्षिणाभिमुख स्थित होकर आकाश को वलि दे क्योंकि पितरों का स्थान आकाश और दिशा दक्षिण मानी गयी है |३४| ब्राह्मण लोग श्राद्धकर्म मे एक पिण्डोद्धार की प्रक्रिया