पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७०४

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पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः न दोनो वाऽपि वा क्रुद्धो न चैवान्यमना नरः । एकाग्रमाधाय मनः श्राद्धं कुर्यात्सदा बुधः निहन्मि सर्व यदमेध्यवद्भवेद्वताश्च सर्वेऽसुरदानवा मया ॥ रक्षांसि यक्षाश्च पिशाचसंवा हता मया यातुधानाश्च सर्वे

  • एतेन मन्त्रेण सुसंयतात्मा तां वै वेदों सकृदुल्लिख्य धीरः ।

भूर्ति शिवां हि ध्रुवमिच्छमानः क्षिपेद्विजातिदिशसुत्तरां गतः एवं पित्रे दृष्टमन्नं हि यस्य तस्यासुरा वर्जयन्तीह सर्वे । यस्मिन्देशे पठ्यते एव मन्त्रस्तं वै देशं राक्षसा वर्जयन्ति ( + अन्नप्राकारान्नाशुचिः साधु वोक्षन्नचैवान्नं संस्पृशं चापि दद्यात् । पवित्रपाणिश्च भवेत्तथा हि सहस्रकृत्तस्य फलं समश्रुते) अनेन विधिना नित्यं श्राद्धं कुर्याद्विजः सदा | मनसा काङ्क्षितं यद्यत्तत्तद्दधुः पिता महाः पितरो हृष्टमनसो रक्षांसि विमनांसि च । भवन्त्येवं कृते श्राद्धे नित्यमेव प्रयत्ननः ६८३ ॥४४ ३१४५ ॥४६ ॥४७ ॥४८ ॥४६ ॥५० श्राद्ध न करे, सर्वदा एकाग्र चित्त होकर श्राद्ध करना चाहिये |४४॥ ( वह मन में ऐसी भावना करे कि) जो कुछ भी अपवित्र अथवा अनियमित वस्तुएं हैं, मैं उन सब को निवारित कर रहा हूँ, सभी विघ्न डालनेवाले असुर एवं दानवों को भी मैं मार चुका | सब राक्षस, यक्ष, पिशाच एवं यातुधानों के समूह मुझसे मारे जा चुके है.॥४५॥ मन्त्र – निहन्ति सर्वं यदमेध्यवद्भवेद्धाश्च सर्वे सुरदानवाः मया, रक्षासि यक्षाश्च पिशाचसंघा हता मया यातुधा- नाश्च सर्वे ।' इस मन्त्रद्वारा संयतात्मा धीर यजमान उस वेदी को (कुश द्वारा ) एक बार लिखकर कल्याणदायिनी विभूति को इच्छा करता हुआ उत्तर दिशा मे जाकर उसे (कुश को ) फेक दे । इस प्रकार की विधि से जो व्यक्ति पितृकार्य में अन्नदान करता है उसके श्राद्धकार्यों में असुर गण वर्जित हो जाते है । जिस देश मे यह मन्त्र पढ़ा जाता है, उस देश को राक्षस लोग छोड देते हैं |४६-४७॥ अशुचि व्यक्ति श्राद्धकार्यो मे अन्न प्रदान करना तो दूर रहा दिये जानेवाले अन्न का दर्शन अथवा स्पर्श तक न करे, पवित्र पाणि होकर जो अन्नदान करता है, वह दान का सहस्र गुना अधिक फल प्राप्त करता है ॥४८॥ सर्वदा इसी विधि से ब्राह्मण श्राद्धकर्म सम्पन्न करे, ऐसा करने से जो कुछ भी मनोगत अभिलापाएँ होती है उन सब को पितामह गण पूर्ण करते है। ऐसी विधियों से श्राद्धकर्म सम्पन्न करने से पितर लोग हृदय ते प्रसन्न होते है और राक्षस लोग निरादृत और बहिष्कृत होते है । अतः नित्य प्रयत्नपूर्वक उपर्युक्त विधि से श्राद्धकर्म सम्पन्न करना चाहिये । श्राद्धकर्म में शूद्र, क्षीरचाशु (?) वल्वज तरु,

  • नास्त्ययं श्लोकः क. पुस्तके | + धनुरिचह्नान्तर्गतग्रन्थः क. पुस्तके नास्ति ।