पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७०२

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पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः PMOTSIS ६८१ पितन्यिता सहांश्चैव तथैव प्रपितामहान। आय च पितन्त्राचान्पितृतीर्थेन यत्नतः ॥ HIKTE HIS PREPET LE FISHED IKFISHES PFFF TESE पिण्डाम्परिक्षिपेत्सम्यापसव्यति ॥२३ PAUSIA IPFIST PRIS (HAL KING OVERIFE LOHE नष्ट अनाद्भिश्च पुष्पश्च भक्ष्यैश्चैव पृथग्विधैः । पृथुङमातामहानां तु केचिदिच्छन्ति मानवाः पिण्डानानुपू इनुष्ठान्पुष्टिवर्धनान । जान्वन्तराभ्यां यत्नेन पिण्डान्दद्याद्यथाक्रमम् असदीय मन्दिर सुव्योत्तराभ्यां पाणिभ्यां धर्मे-मन्त्रे चै पर्ययः । नमो व पितरः शुष्मै सदा ह्यवभतन्द्रितः दक्षिणस्यां तु प्राणियां प्रथमं पिण्डमुत्सृजेत । नमो वः पितरः सौम्याः पठन्नित्यम तवन्द्रितः सुव्योत्तराभ्यां पाणिभ्यां धर्म सर्वतन्द्रितः । उलखलस्य लेखायामुद्रपात्राच्चं सेवनम् क्षोमसूत्रं नवं दद्याच्छोणे कार्पासिक तथा । पत्रोर्ण पिवसूत्रं च कौशेयं परिवर्जयेत वर्जयेत्तद्दशां यज्ञे प्रदपग्रहत्वस्त्रज्ञाम न. श्रीपान्ति तथा दातुरायायतो भवेत् ।।२७ PRAKSEFEY & SÜPE DRIED ooperiar mel ॥२८ DEFINDER IST / AFARRERIE DE FREE I FINTEK SHE IS श्रेष्ठ माह स्त्रिककुद्सजनं नित्यमेव च । कृष्णेभ्यश्च तिलेभ्यश्च यत्तैलं परिरक्षितम् चन्द्रनागुरुणो चोभे तमालोशोरवयकुम् । धूपं च गुरगुलं श्रेष्ठ तुरुष्क धूपमेव च dianni Feri meja FIFE LIEDERHOUER FIL १॥२६ FO ॥३० ॥३१ CHF HIS MOVENILOR : lefusé यत्न पूर्वक पितरों के जल से पिता पितामह प्रपितामह एवं पुराने पितरों का आवाहन कर पिण्डों को नीचे रिखें । कुछ लोग अन्न, जल, पुष्प,"भिन्न-भिन्न प्रकार के भिक्ष्य आदि पदार्थो से माता मेह्[(नोना)आदिमातृपक्ष कि पितरों को) आदि के लिए पिण्डेदान का अलग विधान मानते हैं | २-२४॥ क्रमशः अँगूठे समेत पुष्टि वृद्धि करने वाले" तोते"पिण्डी 'को "छूटन' को पृथ्वी 'परकोटक करु 'नाम वः पितरः शुष्मै' ऐसा मन्त्र उच्चारण करके 'वाए हाथ से प्रदान करे ।'सर्वदा इसी प्रकार सावधान "चिंत होकर करना चाहिये तंदनन्तरं सावधान होकर ‘‘नमी"धः पितर्रः सोम्यैः’ ऐसा मन्त्रोच्चारण करते हुए दक्षिण दिशा मे प्रथम पिण्डदान करे| | २५५२७॥ तदुपरान्त ‘वीए, दाहिने हाथों से बिना आलस्य किये उलेखले में परिष्कृत तन्दुल (चावल) जलपात्र से जल, (१) नवीत क्षौस १ "सूत्र 'कपास का सूत शोणसूत (लॉलरेंग का सूती?) पितरों के उद्देश्य से दान करे । किंतु ऊन, पत्तेयाः रेशम "का सूत" पितरों के उद्देश्य से नहीं देना चाहिये ८२८-२ह इसी प्रकार यज्ञ में वस्त्र के अिंचल भागाको भले ' ही वह 'नवीन' 'वस्त्र की ही; भी वर्जित रखना चाहियेष उपर्युक्त निषिद्ध वस्तुएँ पितरो को प्रसन्न नही करतो, अतः इनके देनेवालेभी संतुष्ट नहीं होते। पितृकार्य में किएवं जन को श्रेष्ठ बतलाया गया है। इसी प्रकार काले तिला से निकला हुआ' जो तेल, है वह )भी प्रशस्तं है|३०३१ चेन्दतु अगुफ (अगर), तमाल, उशीर वृद्मका(पद्मेखि) धूप,गुग्गुलश्रेष्ठतुरुकका धूप, श्वेत पुष्पपे, सव् वस्तुएँ पितृकार्य मे श्रेष्ठ है, पद्म उपल BE FIF FIFTER THE TF misls ir gerd op heyf in orð á visual ais ar fri emis के अथवा पाट की खाल से बना हुआ २. लोबान का धूप | यह एक वृक्ष का सुगंधित गोद हैf Pis s 1 फा० - ८६ 15 16 17 1ºr so my takt • my 30 BED to Ft.