पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६८९

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. वायुपुराणम् Ile ॥ह सुसूक्ष्मानपरित्यक्तानग्नीनग्लोप्विवाऽऽहितान् | त्रायव्वमित्युवाचाथ पतन्ती तानवाविशराः तैरुक्ता सा तु मा भैषीरित्युत्ताऽधिष्ठिताऽभवत् । ततः प्रासादयत्सा व पितृ स्तान्दीनया गिरा ऊचुस्ते पितरः कन्या भ्रष्टै व्यतिमात् । अष्टैश्वर्या स्वदोषेण पतसि त्वं शुचिस्मिते ।।१० ॥११ ॥१३ यैः क्रियन्ते च कर्माणि शरीरैरिह देवतैः । तैरेज तत्कर्मफलं प्राप्नुवन्तीह देवताः सद्यः फलम्ति कर्माणि देवत्वे प्रेत्य मातुपे | तस्मात्मादसौ(सुं) पत्यं (ति) त्वं प्रेत्य माप्स्यसे फलम् ॥ इत्युक्तचा वे पितरः पुनस्ते तु प्रसादिताः । ध्यात्वा प्रसाद संचकुस्तस्यात्ते त्वनुकम्पया अवश्यंभाविनं दृष्ट्वा ह्यसूनुस्ततः सुराः । सोमपाः गिरः कन्यां राहश्चैव हामावतोः ॥१४ उत्पन्नस्य पृथिव्यां तु मानुषत्वे महात्मनः । कन्या भूत्वा त्विमॉल्लोकान्पुनः प्राप्स्यसि स्वानिति ॥१५ अष्टाविंशे भवित्री त्वं द्वापरे मत्स्ययोनिजा। अल्यैव राज्ञो दुहिता अद्विायां ह्यमावतोः ॥१६ पराशरस्य दायादसृपेस्त्वं जनयिष्यसि | स वेदमेकं विषिश्चतुर्धा व करिष्यति ॥१७ ६६८ देदीप्यमान और तेजस्वी थे । आकाश से गिरते हुए उसने रक्षा कीजिये, इस प्रकार की आरत वाणी विना शिर और स्पष्ट स्वर के ही कही । पितरो ने उससे कहा, 'मत डरों और उनके ऐसा कहने पर वह सुस्थिर हो गई । वहाँ स्थिर हो उसने अति दीन वाणी से पितरों को प्रसन्न किया । मानसिक भावी के व्यतिक्रम से दुष्ट होने के कारण भ्रष्ट ऐश्वर्यवाली उस कन्या को देखकर पितरो ने कहा, हे सुन्दर हँसनेवालो ! अपने ही दोषों से तू अपने ऐश्वर्य से भ्रष्ट होकर गिर रही हो ।७-१०। इस लोक मे देवगण अपने जिस गरीर से कर्मों को करते है, उसो से उसका फल प्राप्त करते हैं । देवयोनि में कर्मों का फल तुरन्त प्राप्त होता है और मनुष्य योनि में पर लोक ( अन्य जन्म ) में प्राप्त होता है, इस कारण तुम दूसरे जन्म मे अमावसू को पितर' ( पति ? ) रूप में प्राप्त करोगी । ऐसा कहने के उपरान्त उसने पितों को पुन. प्रार्थना आदि से प्रसन्न किया । प्रार्थना करने पर पितरो ने उसके ऊपर वडी अनुकम्पा कर प्रसन्नता प्रकट की । ध्यान मग्न होकर देवताओं ने भविष्य मे अवश्यमेव घटित होने वाली घटना को देखकर उससे बोले । मोम का पान करने वाले उन पितरों ने राजा रूप में अमावसु और उसकी कन्या के बारे में ये बातें की |११- १४॥ पृथ्वीतल पर मनुष्य योनि मे उत्पन्न महात्मा अमावसु की कन्या होकर तुम पुनः इन अपने लोको को प्राप्त करोगो । अट्ठाइसवें द्वापर युग में तुम्हारी उत्पत्ति मत्स्य की योनि से होगी और इसी राजा अमावसू से अद्रिका में तुम बन्या रूप में उत्पन्न होगी । और परागर ऋषि के सुपुत्र वेदव्यास को उत्पन्न करोगी । वह तुम्हारा पुत्र ब्राह्मणो मे श्रेष्ठ होगा और एक वेद को चारभागो मे विभक्त करेगा ०१५-१७॥ महाभिष शन्तनु के कति वर्द्धक धर्मज्ञ विचित्रवीर्य १. आनन्दाश्रम की प्रति में यहाँ पर मूल पाठ को सन्देह में डाल दिया है। जिसमे 'पति रूप में प्राप्त करोगी- ऐसा अर्थ निकलता है, परन्तु आगे चलकर पिता रूप प्राप्त करने का उल्लेख है । (