पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६८३

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६६२ वायुपुराणम् तिस्रः कन्यास्तु मेनायां जनयामास शैलराट् | अपर्णामेकपर्णां च तृतीयामेकपाटलाम् आश्रिते द्वे ह्यपर्णा तु अनिकेता तपोऽचरत् । न्यग्रोधमेकपर्णी तु पाटलामेकपाटला ॥ शतं वर्षसहस्राणि दुश्वरं देवदानवः आहारमेकपर्णेन एकपर्णो समाचरत् । पाटलेनैव चैकेन विदध्यादेकपाटला पूर्ण पूर्ण सहस्रे द्वे आहारं वै प्रचक्रतुः | एका तत्र निराहारा तां माता प्रत्यभाषत निषेधयन्ती ह्यमेति माता स्नेहेन दुःखिता | सा तथोक्ता तथा देवी मात्रा दुश्चरचारिणी उमेति सा महाभागा त्रिषु लोकेषु विश्रुता । तथेति नाम्ना तेनासौ निरुक्ता कर्मणा शुभा एतत्तु त्रिकुमारीकं जगत्स्थास्यति शाश्वतम् । एतासां तपसा दृप्तं यावद्भूमिधंरिष्यति तपः शरीरास्ताः सर्वास्तिस्त्रो योगबलान्विताः । देव्यस्ताः सुमहाभागाः सर्वाश्च स्थिरयौवनाः सर्वाश्च ब्रह्मवादिन्यः सर्वाश्चैवोर्ध्वरेतसः | उमा तासां वरिष्ठा च श्रेष्ठा च वरवर्णनी महायोगवलोपेता महादेवमुपास्थिता । दन्तकाण्वोशनास्तस्याः पुत्रौ वं भृगुनन्दनः ॥७ ॥८ 118 ।।१० ॥११ ॥१२ ॥१३ ॥१४ ॥१५ ॥१६ हुआ, इसका पुत्र कौन्च हुआ १५-६ पर्वतराज ने मेना से तोन कन्याओं को भी जन्म, दिय जिनके नाम अपर्णा, एकपर्णा तथा एकपाटला थे । इन तीनों कन्याओं मे से दो ने आश्रय ग्रहण किया, केवल अपर्णा ने कोई आश्रय नही बनाया, विना घर द्वार के हो वह तपस्या में दत्तचित्त रही। एकपर्णा ने एक न्यग्रोध ( बरगद ) का तथा एकपाटला ने एक पाटला वृक्ष का अवलम्ब लिया था। इस प्रकार तोनो कन्याओं ने एक सहस्र वर्षों तक कठोर तप किया, जिसे देवता अथवा दानवकोई भी करने में असमर्थ थे |७-८ | एकपर्णा एक पत्ते का आहार करती थी एक पाटला एक पाटल पर अपना जीवन निर्भर किये थी, और इस प्रकार इन दोनों बहिनों ने दो सहस्र वर्ष बीत जानेपर आहार स्वीकार कर लिया; परन्तु तीसरी कन्या अपर्णा विना किसी आहार के उस समय भी तपस्या में लीन रही। माता ने स्नेह से अति दुखित हो तपस्या से विरत करने के लिए निषेध के स्वर में उससे ‘उ’ ‘मा’ ऐसा कहा | महाभाग्यशालिनी अत्यन्त दुष्कर तप करनेवाली बह देवो अपनी माता के ऐसा कहने पर उमा नाम से तीनों लोकों मे विख्यात हुई और अपने उस कठोर कर्म के कारण अपर्णा इस शुभ नाम से भी उसकी ख्याति हुई । इस जगत् की सत्ता जब तक रहेगी, जब तक स्थिर रहेगी, तब तक इन तीनों कुमारियो के नाम एवं उनको घोर तपस्याओं के यशोगान जीवित रहेंगे ।९ - १३ | योगवल से संयुक्त, तपोमय शरीरवाली वे तीनों कन्याये समस्त दिव्यगुणों से सम्पन्न, महाभाग्यशालिनी, एव स्थिर यौवनवाली है। उन सब को सब ब्रह्मवादिनी एवं ब्रह्मचारिणी कन्याओ में उमा परश्रेष्ठ, सर्वगुणान्वित तथा सुन्दरी थी । उसका योगवल परम महान् था, और उसने महादेव को पति रूप में प्राप्त किया। उसके पुत्र दन्त, कण्व उशना और भृगुनन्दन हुए । एक पर्णी असित की पत्नी हुई, वह परम साध्वी तथा कठोर व्रतो का अनुष्ठान करनेवाली