पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६८२

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द्विसप्ततितमोऽध्यायः द्विसप्ततितमोऽध्यायः श्राद्धकल्पः सूत उवाच सप्त मेधावतां श्रेष्ठाः स्वर्गे पितृगणाः स्मृताः । चत्वारो मूर्तिमन्तश्च त्रयस्तेषाममूर्तयः ॥ तेषां लोकविसर्ग तु कीर्तयिष्ये निबोधत ये या यै दुहितरस्तेषां दौहित्राश्चैव ये स्मृताः । धर्ममूर्तिधरास्तेषां ये त्रयः परमा गणाः नामानि लोकसर्ग च तेषां वक्ष्ये सभासतः | लोका विरजसो नाम्ना यत्र तिष्ठन्ति भास्वराः अमूर्तयः पितृगणाः पुत्रास्ते वै प्रजापतेः । विरजस्य द्विजाः श्रेष्ठा वैराजा इति विश्रुताः ॥ एष वै प्रथमः कल्पो वैराजानां प्रकीर्तितः तेषां तु मानसी कन्या मेना नाम महागिरेः । पत्नी हिमवतः शुभ्रा यस्यां मैनाक उच्यते जातः सर्वौषधिधरः सर्वरत्नाकरात्मवान् । पर्वतः प्रवरः पुण्यः क्रौञ्चस्तस्याऽऽत्मजोऽभवत् ६६१ ॥१ ॥२ ॥४ ॥५ ॥६ अध्याय ७२ श्राद्ध कल्प सूतजी ने कहा - ऋषिवृन्द ! परम बुद्धिमान पितरों के सात गण कहे गये है, जिनमें चार तो मूर्तिमान है और शेष तीन अमूर्त है | मैं उनके द्वारा होनेवाली लोकसृष्टि का वर्णन कर रहा हूँ, सुनिये । १ उनकी जो-जो पुत्रियाँ है, एवं जो-जो दौहित्र हुए है, उन सब का भी वर्णन कर रहा हूँ | जो तीन धर्ममूर्ति परमश्रेष्ठ गण कहे गये है, सर्वप्रथम में उनके नाम एवं उनके द्वारा होनेवाली लोक सृष्टि का वर्णन संक्षेप मे कर रहा हूँ। जहाँ परम कान्तिमय विरजस नाम से विख्यात लोकों को अवस्थिति है, वही पर प्रजापति ब्रह्मा के पुत्र अमूर्त पितरगण निवास करते है । हे द्विजगण ! वे पितरगण विरज के निवासी हैं, अतः वैराज नाम से प्रसिद्ध है। वैराज नामक पितरों के इस पहिले गण को आप लोगों सुना चुका १२-४ | इन्हीं वैराजो को मानसी पुत्री मेना थी, जो महागिरि हिमवान् की सुन्दरी पत्नी थी और जिसमें मैनाक की उत्पत्ति हुई | यह पर्वत श्रेष्ठ मैनाक सभी प्रकार के रत्नादिकों से परिपूर्ण, समस्त ओपधियों का लागार एवं पुण्यशाली उ पन्न