पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६८०

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एकसप्ततितमोऽध्यायः क्रियया गुरुपूजाभिर्योगं कुर्वन्ति नित्यशः । ताभिराप्याययन्त्येते पितरो योगवर्धनाः श्राद्धे प्रीताः पुनः सोमं पितरो योगमास्थिताः । आप्याययन्ति योगेन त्रैलोक्यं येन जीवति तस्माच्छ्राद्धानि देयानि योगिभ्यो यत्नतः सदा । पितॄणां हि बलं योगो योगात्सोमः प्रवर्तते सहस्रशस्तु विप्रान्वै भोजयेद्यावदागतान् । एकस्तु योगवित्प्रीतः सर्वानर्हति तच्छृणु कल्पितानां सहस्रेण स्नातकानां शतेन च | योगाचार्येण यद्भुक्तं त्रायते महतो भयात् गृहस्थानां सहस्रण वानप्रस्थाशतेन च । ब्रह्मचारिसहस्रण योगी होको विशिष्यते नास्तिको वा विकर्मा वा संकीर्णस्तस्करोऽपि वा । नान्यत्र कारण दानं योगेष्वाह प्रजापतिः पितरस्तस्य तुष्यन्ति सुवृष्टेनेव कर्षकाः । पुत्रो वाऽप्यथ वा पौत्रो ध्यानिनं भोजयिष्यति अलाभे ध्यानिभिक्षूणां भोजयेब्रह्मचारिणौ | तदलाभेऽप्युदासीनं गृहस्थमपि भोजयेत् यस्तिष्ठेदेकपादेन वायुभक्षः शतं समाः | ध्यानयोगी परस्तस्मादिति ब्रह्मानुशासनम् ६५६ ॥६४ ॥६५ ॥६६ ॥६७ ॥६८ ॥६६ ॥७० ॥७१ ॥७२ ॥७३ नित्यप्रति गुरुपूजा प्रभृति सत्त्रियाओं में निरत रह योगाभ्यास में लगे रहते हैं । योगमार्ग में वे विख्यात पितरु गण इस प्रकार सब को तृप्त रखते है । श्राद्ध के अवसर पर प्रसन्न हुये वे योगाभ्यास मे निरत रहनेवाले पितर गण अपने योगबल से चन्द्रमा को तृप्त करते हैं, जिससे त्रैलोक्य को जीवन प्राप्त होता है।६०-६५। इसलिये योग की मर्यादा जाननेवालों को सर्वदा यत्न पूर्वक श्राद्धादि का दान करना चाहिये। क्योंकि पितरों का बल योग है और योग बल से ही चन्द्रमा प्रवर्तित होता है | ६६ । श्राद्ध के अवसर पर अभ्यागत (आये हुए ) सहस्रों ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये, योग मे निपुण एक ही ब्राह्मण सन्तुष्ट होकर उक्त सहस्र ब्राह्मण भोजन का फल देता है, इसको सुनिए | सहस्र सामान्य ब्राह्मण, स्नातक अथवा एक योगाचार्य- इनमें से किसी एक के द्वारा जो भोजन किया जाता है वह महान् भय (नरक) से छुटकारा दिलाता है । एक सहस्र गृहस्थ सौ वान- प्रस्थ अथवा एक सहस्र ब्रह्मचारी - इन सबो से एक योगी ( योगाभ्यासी) बढ़कर है |६७-६९। यह चाहे नास्तिक हो. चाहे दुष्कर्मी हो, चाहे संकीर्ण विचारों वाला हो अथवा चोर ही क्यों न हो। प्रजापति ने योगमार्ग में ऐसी व्यवस्था बतलाई है कि अन्यत्र ( योगी को छोड़कर) दान नहीं करना चाहिये । जिस व्यक्ति का पुत्र अथवा पौत्र ध्यान में निमग्न रहनेवाले किसी योगाभ्यासी को श्राद्ध के अवसर पर भोजन करायेगा, उसके पितर गण अच्छी वृष्टि होने से किसानों की तरह परम सन्तुष्ट होंगे । यदि श्राद्ध के अवसर पर कोई योगाभ्यासी ध्यान परायण भिक्षु न मिले तो दो ब्रह्मचारियों को भोजन कराना चाहिये, वे भी न मिले तो किसी उदासीन ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिये जो सांसारिक विषयों से विरक्त हो । उसके न मिलने पर गृहस्थ को भी भोजन करा देना चाहिये । ७००७२। जो व्यक्ति सौ वर्षो तक केवल एक पैर पर खड़े होकर वायु का आहार क के स्थित रहता है, उससे भी बढ़कर ध्यानी एव योगी हैं ऐसी ब्रह्मा की आज्ञा है । सिद्ध लोग ब्राह्मण का वेश