पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६७८

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एकसप्ततितमोऽध्यायः बृहस्पतिरुवाच ॥४८ ॥४६ कथयिष्यामि ते तात यन्मां त्वं परिपृच्छसे | विनयेन यथान्यायं गम्भीरं प्रश्नमुत्तमम् धौरन्तरीक्षं पृथिवी नक्षत्राणि दिशस्तथा । सूर्याचन्द्रमसौ चैव तथाऽहोरात्रमेव च न बभूवुस्तदा तात तमोभूतमिदं जगत् । ब्रह्मैको दुश्वरं तत्र चचार परमं तपः शंयुस्तमब्रवीद्भूयः पितरं ब्रह्मवित्तमम् । सर्वदैव व्रतस्नातं सर्वज्ञानविदां वरम् कीदृशं सर्वभूतेशस्तपस्तेपे प्रजापतिः । एवमुक्तो बृहत्तेजा बृहस्पतिरुवाच तम् सर्वेषां तपसां युक्तिस्तपोयोगमनुत्तमम् । ध्यायंस्तदा तद्भगवांस्तेन लोकानवासृजत् भूतभव्यानि ज्ञानानि लोकान्वेदांश्च कृत्स्नशः | योगमाविश्य तत्सृष्टं ब्रह्मणा योगचक्षुषा लोकाः सांतानिका नाम यत्र तिष्ठन्ति भास्वराः । ते वैराजा इति ख्याता देवानां दिवि देवताः ॥५२ योगेन तपसा युक्तः पूर्वमेव तदा प्रभुः । देवानसृजत ब्रह्मा योगं युक्त्वा सनातनस् ॥५० ॥५१ ॥५३ ६५७ ॥४५ ॥४६ ।।४७ क्रमशः मुझे बतलाइये । शंयु के इस प्रकार अच्छी तरह पूछने पर प्रश्न के तत्त्वों को जाननेवालों में श्रेष्ठ महामति बृहस्पति ने क्रमशः उन प्रश्नों का उत्तर देना प्रारम्भ किया ॥४१-४४। बृहस्पति ने कहा:- प्रियवर ! जो बाते तुमने मुझसे पूछी है, उन्हे बतला रहा हूँ ! तुम्हारा यह प्रश्न विनय, न्याय, गम्भीरता एवं श्रेष्ठता आदि सद्गुणों से पूर्ण है । हे प्रिय ! जिस समय यह आकाश अन्तरिक्ष, पृथ्वी, नक्षत्र, दिशाएँ, सूर्य, चन्द्रमा, दिन, रात – ये कुछ भी नही थे और सारे जगत् मे अन्ध- कार ही अन्धकार छाया हुआ था, उस समय अकेले ब्रह्मा कठोर तप मे प्रवृत्त थे ।' पिता बृहपति की ऐसी बात सुन कर शंयु ने ब्रह्मज्ञानियों में श्रेष्ठ, सर्वदा व्रत आदि सदनुष्ठानो मे प्रवृत्त रहनेवाले सभी प्रकार के ज्ञानियो मे श्रेष्ठ अपने पिता बृहस्पति से फिर पूछा- पिता जी ! ऐसी परिस्थिति मे सभी भूतो के स्वामी प्रजापति ब्रह्मा किस प्रकार तपस्या में प्रवृत्त थे ? पुत्र के ऐसा पूछने पर परम तेजस्वी बृहस्पति ने उससे कहा १४५-४६। पुत्र ! सब प्रकार की तपस्याओं में योग श्रेष्ठ है । उस समय भगवान् ब्रह्मा ने उसी का आश्रय लेकर ध्यान मग्न हो समस्त लोकों की सृष्टि की थी । योगाभ्यासी प्रजापति ब्रह्मा ने अपनी योम दृष्टि से, सभी अतीत एवं अनागत काल में होने वाली ज्ञान राशि, समस्त लोक, एवं सम्पूर्ण वेदो की रचना उसी योग का अवलम्बन लेकर ही की है। जहाँ पर परम भास्वर (कान्तिमान्) सांतानिक नामक लोकों की स्थिति है उसी स्वर्ग लोक में वे देवताओं के भी देवता वैराज नाम से विख्यात पितर गण निवास करते है |५०-५२॥ सृष्टि के आदि काल में सनातन योग एवं तपस्या मे निरत रहकर भगवान पितामह ने उन देवताओं की सृष्टि की थी वे फा० - ८३