पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६७७

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६५६ वायुपुराणम् एतद्ब्रह्मवचः श्रुत्वा सूतस्य विहितात्मनः । पप्रच्छुर्मुनयो भूयः सूतं तस्माद्यदुत्तरम् ऋषय ऊचु: कियन्तो वै पितृगणाः कस्मिन्काले च ते गणाः । वर्तन्ते देवप्रवरा देवानां सोमवर्धनाः > सूत उवाच.

एतद्वोऽहं प्रवक्ष्यामि पितृसर्गमनुत्तमम् । शंयुः पप्रच्छ यत्पूर्वं पितरं वै बृहस्पतिम् वृहस्पतिमुपासीनं सर्वज्ञानार्थकोविदम् । पुनः शंयुरिमं प्रश्नं पप्रच्छ विनयान्वितः क एते पितरो नाम कियन्तः के च नामतः । समुद्भूताः कथं चैते पितृत्वं समुपागताः कस्माच्च पितरं पूर्वं यज्ञेऽयुज्यन्त नित्यशः | क्रियाश्च सर्वा वर्तन्ते श्राद्धपर्वा महात्मनाम् कस्मै श्राद्धानि देयानि किं च दत्तं महाफलम् | केषु वाऽप्यक्षयं श्राद्धं तीर्थेषु च नदीषु च केषु वै सर्वमाप्नोति श्राद्धं कृत्वा द्विजोत्तमः | कश्च कालो भवेच्छ्राद्धे विधिः कश्चानुवर्तते एतदिच्छामि भगवन्विस्तरेण यथातथम् । व्याख्यातुमानुपूर्व्येण यत्र चोदाहृतं मया बृहस्पुतिरिदं सम्यगेवं पृष्टो महामतिः । व्याजहाराऽऽनुपूर्व्येण प्रश्नं प्रश्नविदां वरः ॥३५ ॥३६ ॥३७ ॥३८ ॥३६ ॥४० ॥४१ ॥४२ ॥४३ ॥४४ पितरगण देवता हैं, और देवगण पितर हैं, और परस्पर एक दूसरे के पितर और देवता दोनों हैं । आत्मज्ञानी सूत की ऐसी बातें सुनने के उपरान्त मुनियों ने उनसे शेष प्रश्न के बारे मे पुनः पूछा ।३३-३५॥ ऋषियों ने पूछा:- सूत जी ! पितरों के समूह कितने हैं ? देवताओं के परमपूज्य, एवं चन्द्रमा के पुष्टिकर्ता वे पितरगण किस समय वर्तमान रहते है ॥३६॥ सूत ने कहा:- ऋपिवृन्द ! मैं आप लोगों से पितरों के उस श्रेष्ठ वंश के विवरण को बता रहा हूँ, जिसको पूर्वकाल में शयु ने अपने पिता बृहस्पति से पूछा था । एकवार समोप में बैठे हुए तत्त्वज्ञान विशारद, सर्वज्ञ बृहस्पति से उनके पुत्र शंयु ने यह प्रश्न विनयपूर्वक पूछा था कि ये पितरगण कौन है ? कितने है ? इनके नाम क्या हैं ? ये किस प्रकार उत्पन्न हुए और पितृत्व इन्हे किस प्रकार प्राप्त हुआ ? क्या कारण है जो यज्ञों मे नित्य सर्व प्रथम पितरों की पूजा की जाती है ? और महात्मा पुरुषों की सभी क्रियाएँ पितरों के श्राद्धादि के उपरान्त सम्पन्न होती हैं ।३७-४०। ये श्राद्धादि क्रियाएँ किसके उद्देश्य से करनी चाहिये, और क्या देने से प्रचुर फल की प्राप्ति होती है, किन तोर्थों अथवा नदियों में करने से श्राद्धों का फल अक्षय हो जाता है । श्रेष्ठ ब्राह्मण किन-किन पर्वत क्षेत्रों में श्राद्ध का विधान सम्पन्न कर अपने सभी मनोरथों को प्राप्त करता है, श्राद्ध लिये कौन सा समय उपयुक्त है, श्राद्ध की विधि क्या है ? हे भगवान् इस सव वातों को हम यथार्थरूप में विस्तारपूर्वक जानना चाहते हैं जिन-जिन बातों को मैंने निवेदित किया है, उन्हें उन्हें