पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६७५

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६५४ वायुपुराणम् अतीतानागते ज्येष्ठाः कनिष्ठा क्रमशस्तु ते । देवैः साधं पुरातीताः पितरो येऽन्तरेषु वै ॥ वर्तन्ते सांप्रतं ये तु तान्वै वक्ष्यामि निश्चयात् श्राद्धं चैषां मनुष्याणां श्रद्धमेव प्रवर्तते । देवानसृजत ब्रह्मा नायक्षन्निति वै पुनः ॥ तमुत्सृज्य तदात्मानससृजंस्ते फलार्थिनः ते शप्ता ब्रह्मणा मूढा नष्टसंज्ञा भविष्यथ । न स्म किंचिद्विजानन्ति ततो लोको ह्यमुह्यत ते भूयः प्रणताः सर्वे याचन्ति स्म पितामहम् । अनुग्रहाय लोकानां पुनस्तानब्रवोत्प्रभुः प्रायश्चित्तं चरध्वं वै व्यभिचारो हि वः कृतः । पुत्रान्स्वान्परिपृच्छध्वं ततो ज्ञानमवाप्स्यथ ततस्ते स्वान्सुतांश्चैव प्रायश्चित्तजिघृक्षवः । अपृच्छसंयतात्मानो विधिवच्च मिथो मिथः तेभ्यस्ते नियतात्मानः प्रशशंसुरनेकधा । प्रायश्चित्तानि धर्मज्ञा वाङ्मनःकमंजानि तु ते पुत्रान नुवन्प्रीता लब्धसंज्ञा दिवौकसः | यूयं वै पितरोऽस्माकं ये वयं प्रतिबोधिताः ॥ धर्मज्ञानं च कामश्च को वरो वः प्रदीयताम् पुनस्तानब्रवोद्ब्रह्मायूयं वै सत्यवादिनः | तस्माद्यद्युक्तं युष्माभिस्तत्तथा न तदन्यथा ॥१६ ३।१७ ॥१८ ॥१६ २० ॥२१ ॥२२ ||२३ ॥२४ 7 मन्वन्तरी के जो पितरगण, देवताओं के साथ उत्पन्न हुए थे और अतीत हो चुके, उन्हें तथा सम्प्रति जो पितरगण विद्यमान है, उन दोनों को निश्चय पूर्वक बतला रहा हूँ । मनुष्यों द्वारा श्रद्धापूर्वक दो गई वस्तुएँ हो श्राद्ध कही जाती है। पूर्वकाल में ब्रह्मा ने देवताओं की सृष्टि को तो उन लोगों ने पूजा आदि कुछ भो नही किया और उनको छोड़कर स्वार्थ में लिप्त हो अपने हो सृष्टि विस्तार में लग गये। तब ब्रह्मा ने उन्हें शाप दिया कि मूढ़ों । तुम्हारी चेतना नष्ट हो जायगी, तुम लोग कुछ भी नहीं जानते । ब्रह्मा के ऐसे शाप दे देने के उपरान्त समस्त लोक मोहवश हो गया । वे सब पुनः विनम्र हुए और पितामह से याचना करने लगे । प्रभु ब्रह्मा ने लोक पर अनुग्रह करने की भावना से उन देवताओं से पुनः कहा ११५-१८। तुम लोगो ने महान् पाप एवं अत्याचार किया है, उसका प्रायश्चित्त करो और उसका विधान अपने-अपने पुत्रों से पूछों । तब तुम लोगों को ज्ञान-प्राप्ति होगो । तव प्रायश्चित्त करने को इच्छुक उन देवताओं ने आत्मा को स्वदश रख अपने पुत्त्रों से प्रायश्चित्त की विधियाँ चारम्बार पूछ। धर्मज्ञ एवं जितेन्द्रिय देवपुत्रों ने उन देवताओं को मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पन्न होनेवाले अनेक प्रकार के प्रायश्चित्तो का विधान बतलाया। पुत्रों द्वारा प्रायश्चित्तों की शिक्षा प्राप्त कर उन देवताओं को पुनः चेतना प्राप्त हुई और उन्होंने अपने पुत्रों से निवेदन किया कि तुम लोग ही हम सबों के पिता हो, क्योकि तुम्ही द्वारा हमे ज्ञान एवं चेतना को प्राप्ति हुई । तुम लोगों को धर्म, ज्ञान एवं काम किस वस्तु का वरदान हम लोग दे, बतलामो |२०-२३| देवताओं के ऐसे मनोभावों को देखकर ब्रह्मा ने पुनः उनसे कहा, तुम लोग सत्यवादी हो अतः जो कुछ तुम्हारे मुख