पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६७४

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एक सप्ततितमोऽध्यायः पुत्राश्च ते स्मृताः केषां कथं च पितरस्तु ते । पितरः कथमुत्पन्नाः कस्य पुत्राः किमात्मका: स्वर्गे तु पितरोऽन्ये ये देवानामपि देवताः । एवं वै श्रोतुमिच्छामि पितॄणां सर्वमुत्तमम् ॥ यथावद्दत्तमस्माभिः श्राद्धं प्रोणाति व पितॄन् 7 यदर्थं ते न दृश्यन्ते तत्र कि कारणं स्मृतम् । स्वर्गे हि के वर्तन्ते पितरो नरके तू के अभिसंधाय पित्तरं पितुश्च पितरं तथा । पितुः पितामहं चैव त्रिषु पिण्डेषु नामतः कानि श्राद्धानि देयानि कथं गच्छन्ति नै पितॄन् । कथं च शक्तास्ते दातुं नरकस्थाः फलं पुनः के चेह पितरो नाम कान्यजसो वयं पुनः । देवा अपि पितॄन्स्वर्गे यजन्तीति हि नः श्रुतम् एतदिच्छामि वै श्रोतुं विस्तरेण बहुश्रुत | स्पष्टाभिधानमर्थं वै तद्भवान्वक्तुमर्हति ' ऋषीणां तु वचः श्रुत्वा सुतस्तत्त्वार्थशिवान् | आचचक्षे यथाप्रश्नं ऋषीणां मानसं ततः सूत उवाच अत्र वो वर्णयिष्यामि यथाप्रज्ञं यथाश्रुतम् । मन्वन्तरेषु जायन्ते पितरो देवसूनवः हे + ६५३ ॥७ ु 115 11E ॥१० ॥११ ॥१२ ॥१३ ॥१४ ? ॥१५ से विख्यात हैं ? ये लोग कैसे उत्पन्न हुए ? किसके पुत्र है ? कैसा इनका स्वरूप है ? स्वर्ग में जोपितर निवास करते हैं, वे देवताओं के भी देवता ( पूज्य ) कहे जाते हैं, वे कौन है ? इन सब पितरों की सृष्टि (उत्पत्ति ) सम्बन्धी कल्याण दायिनी उत्तम बातें हम लोग सुनना चाहते है। हम लोग श्रद्धा एवं विधि पूर्वक उन पितरों को जो कुछ अर्पित करते हैं, वह वस्तुएँ उन्हें (पितरों) प्रसन्न एवं सन्तुष्ट रखती हैं। वे लोग दृष्टिगोचर नहीं होते – इसका क्या, कारण प्रसिद्ध है |७-८३ | कौन से पितर गण स्वर्ग में निवास करने वाले है और कौन से नरक में ! पिता को, पिता के पिता को पिता के पितामह को तीनों पिण्डदानों में नामोच्चारण पूर्वक विधिसमेत कौन-कौन से श्राद्ध देने चाहिये, अर्थात् किन-किन श्राद्धों मे पितामह तथा प्रपिताम्ह का नाम लेकर तीन पिण्ड दान किये जाते है | ये श्रद्धादि में दी गई वस्तुएँ पितरों को किस प्रकार प्राप्त होती है । और जो स्वर्यमेव नरक में निवास करते है, वे किस प्रकार फलप्रदान मे समर्थ हो सकते हैं ? ये पितर नामधारी कौन हैं ? किन की हम पूजा करें | हम ऐसा सुना है कि स्वर्ग लोग मे देवगण भी पितरों की पूजा तथा श्राद्वादि किया करते है । हे बहुश्रुत ! इस विषय को हम विस्तारपूर्वक सुनना चाहते है ? इन सबों का स्पष्ट अभिप्राय आप बृतलाइये । ऋषियों की ऐसी बातें सुन तत्त्वार्थदर्शी सून ऋषियों के प्रश्नगत एवं मनोगत जिज्ञासाओ को शान्ति करते हुए वोले ।९-१४॥ सूत ने कहा:-- ऋषिवृन्द ! आप लोगों की पूछी हुई बातों का उत्तर अपनी बुद्धि एवं श्रुति के आधार पर दे रहा हूँ । प्रत्येक मन्वन्तरों में ये क्रमश: ज्येष्ठ और कनिष्ठ रूप मे प्रादुर्भूत होते है | व्यतीत