पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६६८

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सप्ततितमोऽध्यायः ॥४८ ॥४६ ॥५० ॥५१ ॥५२ त्रेतायुगे चतुर्विशे रावणस्तपसः क्षयात् । रामं दाशरथि प्राप्य सगणः क्षयमोयिवान् महोदरः प्रहस्तश्च महापांशुः खरस्तथा । पुष्पोत्कटायाः पुत्रास्ते कन्या कुम्भोनसी तथा त्रिशिरा दूषणश्चैव विद्युज्जिह्वश्च राक्षसः | कन्या ह्यसलिका चैव वाकायाः प्रसवाः स्मृताः इत्येते क्रूरकर्माण: पौलस्त्या राक्षसा दश | दारुणाभिजनाः सर्वे देवैरपि दुरासदाः सर्वे लब्धवराश्चैव पुत्रपौत्रसमन्विताः | यक्षाणां चैव सर्वेषां पौलस्त्या ये च राक्षसाः आमस्त्यवैश्वामित्राणां क्रूराणां ब्रह्मरक्षताम् । वेदाध्ययनशीलानां तपोव्रतनिषेविणाम् तेषामैडविलो राजा पौलस्त्यः सव्यपिङ्गलः । इतरे वै यज्ञसुखास्तेन रक्षोगणास्त्रयः यातुधाना ब्रह्मधाना वार्ताश्चैव दिवाचराः | निशाचरगणास्तेषां चत्वारः कविभिः स्मृताः पौलस्त्या नैर्ऋताश्चैव आगस्त्याः कौशिकास्तथा । इत्येताः सप्त तेषां वै जातयो राक्षसाः स्मृताः ॥५६ तेषां रूपं प्रवक्ष्यामि स्वभावेन व्यवस्थितम् । वृत्ताक्षाः पिङ्गलाश्चैव महाकायां महोदरा: ॥५७ अष्टदंष्ट्राः शङ्कुकर्णा ऊर्ध्वरोमाण एव च । आकर्णदारितास्याश्च सुञ्जधूमोर्ध्वपूर्धजाः ॥५३ ॥५४ ॥५५ ॥५८ ६४७ को खूब जगाकर अर्थात् अति कष्ट देकर चौबीसवें त्रेतायुग में अपनी तपस्या के नष्ट हो जाने पर दशरथपुत्र रामचन्द्र के हाथों सैन्य समेत विनष्ट हुआ (४५-४८ पुष्पोत्कटा के महोदर, प्रहस्त, महापाशु, और खर नामक पुत्र तथा कुम्भीनसी नामक कन्या उत्पन्न हुई । वाका की सन्ततियों में त्रिशिरा, दूषण, विद्युज्जिह्व राक्षस नामक पुत्र तथा असलिका नामक कन्या सुप्रसिद्ध हैं | ये उपर्युक्त दस पुलस्त्य के वश के क्रूरकम करनेवाले राक्षस जो घोर आवास स्थानों में निवास करनेवाले तथा देवताओं से भी दुर्दम्य थे । इडविला के वंश में उत्पन्न होनेवाला महर्षिपुलस्त्य का गोत्रीय, वायें अंग मे पिंगलवर्ण वाला वह कुवेर सभी यक्षों का, पुलस्त्य गोत्र में उत्पन्न होनेवाले समस्त राक्षसों का, तथा अगस्त्या और विश्वामित्र के गोत्र में उत्पन्न होनेवाले वेदाध्यायी, तपस्या व्रत आदि में निष्ठा रखनेवाले किन्तु क्रूरकर्मा ब्रह्मराक्षसों का राजा था । अन्य राक्षस गण यज्ञमुख है, इस प्रकार ये तीन प्रकार के कहे जाते है । यातुधान, ब्रह्मधान, और व र्ता - ये दिन में गमन करने वाले है | कवियों ने इन तीनों के अतिरिक्त निशाचर गणों को चौथे राक्षस गणो मे स्मरण किया है।४६-५५॥ पुलस्त्य के गोत्र में उत्पन्न होनेवाले नैऋत, अगस्त्य गोत्रीय, तथा कौशिक विश्वामित्र गोत्रीय – ये सब सात प्रकार की राक्षसों की भिन्न-भिन्न जातियाँ कही गई हैं। इन सबों के स्वभाव गत स्वरूप का वर्णन कर रहा हूँ | ये राक्षस गण गोली आँखों वाले पिगलवर्ण, महाकाय, विशाल उदर, आठदाँत, शंकु के समान कान वाले एवं ऊर्ध्वरोमा थे। उनके मुख कान तक फटे हुये थे, किसी-किसी के बाल मूंज के समान तथा किसी-किसी के धुएँ के समान थे । शिर बहुत बड़े थे, देखने में किसी किसी की शोभा श्वेतवर्ण की मालूम पड़ती थी ।