पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६६७

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६४६ वायुपुराणम् ह्रस्वाहुं प्रवाहुं च पिङ्गलं सुविभीषणम् । वैवर्तज्ञानसंपन्नं संबुद्धं ज्ञानसंपदा एवंविधं सुतं दृष्ट्वा विश्वरूपधरं तथा । पिता दृष्ट्वाऽब्रवीत्तत्र कुबेरोऽयमिति स्वयम् कुत्सायां क्वितिशब्दोऽयं शरीरं बेरसुच्यते । कुबेरः कुशरीरत्वान्नाम्ना तेन च सोऽङ्कितः यस्माद्विश्रवसोऽपत्यं सादृश्याद्विश्रवा इव | तस्मावैश्रवणो नाम नाम्ना लोके भविष्यति ऋद्धयां कुबेरोऽजनय द्विश्रुतं जलकूबरम् | रावणं कुम्भकर्णं च कन्यां शूर्पणखां तथा ॥ विभीषणचतुर्थास्तान्कैकस्यजनयत्सुताम् ॥३७ ॥३८ ॥३६ ॥४० ॥४१ ॥४२ ॥४३ ॥४४ शङ्कुफर्णो दशग्रीवः पिङ्गलो रक्तसूर्धजः । चतुष्पाद्विशतिभुजो महाकायो महाबलः जात्याऽञ्जननिभो दंष्ट्री लोहितग्रीव एव च | राजसेनो यथा युक्तो रूपेण च बलेन च सत्यबुद्धिवृंढतनू राक्षसैरेव रावणः | निसर्गाद्दारुणः क्रूरो रावणाद्रावणस्तु सः हिरण्यकशिपुस्त्वासोत्स राजा पूर्वजन्मनि । चतुर्युगानि (णि ) राजाऽत्र त्रयोदश स राक्षसः ताः पञ्च कोटयो वर्षाणामाख्याताः संख्यया द्विजैः । नियुतान्येकषष्टिश्च संख्याविद्भिरुद्राहृता ॥४६ पष्ट शतसहस्राणि वर्षाणां तु स रावणः । देवतानामृषीणां च घोरं कृत्वा प्रजागरम् ॥४५ ॥४७ पीले वर्ण का तथा परमभयानक लगता था। उसे जगत् को माया आदि का पूर्ण ज्ञान था, ज्ञान सम्पत्ति से पूर्ण समृद्ध था, इस प्रकार के विश्वरूप घारी पुत्र को देखकर पिता ने कहा, यह स्वयं कुवेर है, कुशब्द कुत्सित अर्थ का वाची है, अर्थात् कु के अर्थ होते हैं भद्दा, और वेर शरीर को कहते है, यतः इसका वेर (शरीर) कुत्सित ( देखने में भद्दा ) अतः कुवेर नाम से यह अभिहित किया गया । यतः यह विश्रवा का पुत्र है और उसकी आकृति भी विश्रवा हो के समान है, अतः लोक मे वैश्रवण के नाम से इसकी ख्याति होगी।३५-४०० कुवेर ने ऋद्धि नाम पत्नी मे नलकूबर को उत्पन्न किया, जो परम विख्यात हुआ । इसके अतिरिक्त के सी ने रावण, कुम्भकर्ण, भूपर्णखा तथा विभीषण - इन चार सन्ततियों को जन्म दिया। उस रावण का कान खूंटे की भाँति था, दस उसके कण्ठ थे, पिंगल वर्ण का था, वाल लाल रंग के थे, जन्म से ही कज्जल के समान काला था, बडे-बड़े दाँत थे, कण्ठ प्रदेश लाल रंग का था, रूप और वल से समन्वित था, उसकी सेना यथार्थतः वलवान् थो, सत्य बुद्धि था, शरीर दृढ़ था, सर्वदा राक्षसो से हो युक्त रहता था, स्वभाव से हो वह परम दारुण, एवं क्रूर था, बहुत जोर से रव (शब्द) करने के कारण वह रावण नाम से विख्यात था ॥४१-४४॥ पूर्व जन्म में वह हिरण्यकशिपु नाम से दैत्यों का राजा था वह राक्षसराज चारो युगों तक राज्य करता रहा और राक्षसो के राजाजो में वह तेरहवाँ था (?) उसके राज्य काल की अवधि संख्या जाननेवाले पण्डितो ने पाँच करोड़ इकसठ नियुत (?) बतलाया है | साठ लाख वर्षों तक बह रावण देवताओं और ऋषियो