पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६६५

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६४४ वायुपुराणम् स्वायंभुवेऽन्तरे पूर्वं ब्रह्मणा तेऽभिषेचिताः । नृपा ह्येतेऽभिषिच्यन्ते मनवो ये भवन्ति वै मन्वन्तरेण्वतीतेषु मता ह्येतेषु पार्थिवाः । एवमन्येऽभिषिच्यन्ते प्राप्ते मन्वन्तरे पुनः ॥ अतीतानागताः सर्वे स्मृता मन्वन्तरेश्वराः ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२२ ॥२३ ॥२४ ॥२५ ॥२६ राजसूयेऽभिषिक्तश्च पृथुरेभिर्नरोत्तमैः । वेददृष्टेन विधिना कृतो राजा प्रतापवान् एतानुत्पाद्य पुत्रांस्तु प्रजासंतानकारणात् । पुनरेव महाभागः प्रजानां पतिरीश्वरः कश्यपो गोत्रकामस्तु चचार परसं तपः । पुत्रो गोत्रकरो मह्यं भवेतामित्यचिन्तयत् तस्य प्रध्यायमानस्य कश्यपस्य महात्मनः । ब्रह्मणोंऽशौ सुतौ पश्चात्प्रादुर्भूतौ महौजसो वत्सारश्वासितश्चैव तावुभौ ब्रह्मवादिनौ । वत्सारान्निध्रुवो जज्ञे रैभ्यश्च स महायशाः रैभ्यस्य रैभ्या विज्ञेया निध्रुवस्य निबोधत । च्यवनस्य सुकन्यायां सुमेधाः समपद्यत निध्रुवस्य तु या पत्नी माता वै कुण्डपायिनाम् | असितस्यैकपर्णायां ब्रह्मिष्ठः समपद्यत शाण्डिल्यानां वचः श्रुत्वा देवलः सुमहायशाः । निध्रुवाः शण्डिला रैभ्ययात्रः पश्चात्तु कश्यपाः ॥२८ ॥२७ किया था, प्रजापालन करते हैं ।१४-१८। पूर्वकाल में स्वायम्भुव मन्वन्तर में ब्रह्मा ने इन सबों को राज्यपद पर अभिषिक्त प्रत्येक मन्वन्तरो में जो मनु होते हैं, वे ही राज्यपद पर अभिषिक्त होते हैं। इन व्यतीत मन्वन्तरो में कितने राजागण बीत चुके हैं। इसी प्रकार भावी मन्वन्तरों के आने पर अन्यान्य अभिषिक्त किये जायेंगे । जितने भूतकालीन एवं भविष्यत्कालीन मन्वन्तरों में होनेवाले राजा लोग है, वे सब मन्वन्तरों के अधीश्वर कहे जाते हैं। इन्ही नरपतियो ने प्रतापशाली राजा पृथु को वेदविहित विधि से राजसूय यज्ञ के अवसर पर राजा के पद पर अभिषिक्त किया । समस्त प्रजाओं के स्वामी परम ऐश्वर्यवान् कश्यप ने प्रजावृद्धि के लिये इन पुत्रों को उत्पन्न कर पुनः पुत्र कामना से परम कठोर तप करना प्रारम्भ किया और यह चिन्तन किया कि मेरे दो गोत्रवृद्धि करनेवाले पुत्र उत्पन्न हों |१६ - २३ । इस प्रकार कश्यप के विशेष मनोयोग पूर्वक ध्यानावस्थित होने पर महात्मा कश्यप के ब्रह्मा के अंशभूत दो महातेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुये। उनके नाम वत्सार औ असित थे, दो के दोनो ही ब्रह्मचिन्तन में लीन रहनेवाले थे । वत्सार से निध्रुव एवं महान् यशस्वी रैभ्य का जन्म हुआ, रैभ्य की सन्ततियो को रैभ्यगण नाम से जानना चाहिये. निध्रुव की सन्ततियों का विवरण सुनिये । च्यवन से सुकन्या में सुमेधा को उत्पत्ति हुई |२४-२६। निध्रुव को जो पत्नी थी वह कुण्डपायिगणों की माता थी । नामक पत्नी मे ब्रह्मिष्ठ का जन्म हुआ। शांडिल्यो को वाते सुनकर देवल परमयशस्वी शाण्डिल्यगण और रैभ्यगण – ये तीनो कश्यपगोत्रीय थे | ये वर प्रभृति देवगण देवल की असित से एकपर्णा हुये | निध्रुवगण,