पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६६३

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६४२ वायुपुराणम् अथ सप्ततितमोऽध्यायः ऋषिवंशानुकीर्तनम् सूत उवाच एवं प्रजासु सृष्टासु कश्यपेन महात्मना । प्रतिष्ठितासु सर्वासु स्थावरासु चरासु च अभिषिच्याधिपत्येषु ( ? ) तेषां मुख्यः प्रजापतिः । ततः क्रमेण राज्यानि व्यादेष्टुमुपचक्रमे द्विजातीनां वोरुधां च नक्षत्राणां ग्रहैः सह | यज्ञानां तपसां चैव सोमं राज्येऽभ्यषेचयत् बृहस्पति तु विश्वेषां ददावङ्गिरसां पतिम् | भृगूणामधिपं चैव काव्यं राज्येऽन्यपेचयत् आदित्यानां पुनविष्णुं वसूनामथ पावकम् । प्रजापतीनां दक्षं च मरुतामय वासवम् दैत्यानामथ राजानं प्रह्लादं दितिनन्दनम् । नारायणं तु साध्यानां रुद्राणां वृषभध्वजम् विप्रचित्तिं च राजानं दानवानामथाऽऽदिशत् । अपां तु वरुणं राज्ये राज्ञो वैश्रवणं पतिम् ॥ यक्षाणां राक्षसानां पार्थिवानां धनस्य च ११ ॥३ ॥४ १५ ॥६ अध्याय ७० ऋषियों के वंशों का अनुकीर्तन सूत ने कहा - ऋषिवृन्द ! इस प्रकार महात्मा कश्यप द्वारा सभी स्थावर जंगमात्मक प्रजाओं की सृष्टि सम्पन्न हो जाने पर एवं उनके भली भांति प्रतिष्ठित हो जाने पर सब के प्रमुख प्रजापति ब्रह्मा ने उन सब के आघिपत्य पर क्रमशः भिन्न-भिन्न को नियुक्त करने का उपक्रम किया |१-२१ समस्त द्विजातियों (ब्राह्मणो) बीरुधों, नक्षत्रों, ग्रहों, यक्षों एवं तपस्याओं के राजा के पद पर सोम (चन्द्रमा) को अभिषिक्त किया। सभी अंगिरा के वंश में उत्पन्न होनेवाली प्रजाओं का राज्यपद बृहस्पति को दिया । भृगु गोत्र मे उत्पन्न होने वाली प्रजाओं का राज्यपद काव्य (शुक्र) को दिया | इसी प्रकार आदित्यो का राज्य पद विष्णु को, मरुतो का चासव को दिया । दैत्यों का राजा दितिनन्दन प्रह्लाद को बनाया, इसी प्रकार साध्यो का राजा नारायण को, रुद्रों का राजा वृपभध्वज ( शंकर ) को तथा दानवों का राजा विप्रचित्ति को नियुक्त किया । जल का राज्यपद वरुण को, राजाओं, यक्षों, राक्षसों, भूपतियो तथा घन-सम्पत्ति का स्वामित्व विश्रवा के पुत्र कुबेर को समर्पित