पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६६१

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वायुपुराणम् सगैंक देशस्य कीर्तितोऽवयवो मया | मारीचोऽयं प्रजासर्गः समासेन प्रकीर्तितः ॥ न शक्यं व्यासतो वक्तुमपि वर्षशर्तोद्विजाः ॥३४४ ॥३४५ ॥३४६ अदितिर्धर्मशीला तु बलशीला दितिः स्मृता । तपःशीला तु सुरभिर्मायांशीला दनुः स्मृता [+ सुनिश्च गन्धशोला वै प्राबाध्ययनशालिनी | गोतशोला त्वरिष्टाऽथ क्रोधशीला खशा स्मृता ] क्रूरशीला तथा कद्रुः कौञ्च्यथ श्रुतिशालिनी | इराऽनुग्रहशीला तु दनायुर्भक्षणे रता वाहशीला तु विनता ताम्रा वै पाशशालिनी | स्वभावा लोकमातृणां शीलान्येतानि सर्वशः ॥३४७ धर्मतः शोलतो बुद्धया क्षमया बलरूपतः । रजःसत्त्वतमोवृत्ता धार्मिकाधामिकास्तु वै मातृतुल्याश्चाभिजाताः कश्यपस्याऽऽत्मजाः प्रजाः । देवतासुरगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः ॥ पिशाचाः पशवश्चैव मृगाः पतगवीरुधः ॥३४८ यस्माद्दाक्षयणीष्वेते जज्ञिरे मानुषीष्विह | मन्वन्तरेषु सर्वेषु तस्माच्छ्रे ष्ठास्तु मानुषाः ६४० ॥ ३४ ॥३५० के वंश में उत्पन्न होनेवाले स्थावर जंगम जीव निकाय की सृष्टि को मै सुना चुका, इनके पुत्रो एवं पौत्रों का परिचय सुना चुका, जो इस समस्त जगन्मण्डल को छेके हुये है । इस विस्तृत प्रजा सृष्टि के एक अंश का लघु परिचय मै आप लोगो को करा चुका | मरीचि पुत्र कश्यप की प्रजाओ का सृष्टि-विस्तार इस प्रकार संक्षेप मे कहा जा चुका । द्विजगण ! इस सृष्टि-क्रम को विस्तार के साथ सैकड़ों वर्षों में नहीं कहा जा सकता ।३३९-३४३। कश्यप की स्त्रियो मे अदिति धर्मशील एवं दिति बलशील कही जाती है। इसी प्रकार सुरभि तपस्या में निरत रहनेवाली तथा दनु मायाविना कही गई है । मुनि अध्ययन करनेवाली तथा गन्धशीला हे | अरिष्टा गान करने वाली तथा खशा क्रोध करनेवाली कही जाती है | ३४४-३४५। कद्रु परम क्रूर प्रकृति की तथा क्रौश्ची वेदों का अध्ययन करनवाली अथवा बहुत अधिक सुननेवाली कही जाती है। इसी प्रकार इरा को लोग अनुग्रह करनेवाली तथा दनायु को भक्षण करनेवाली बतलाते हैं । विनता भार वहन करनेवाली और ताम्रा पाश घारण करनेवाली कही जाती है । लोकमाताओं के यही स्वभाव हैं, उनके शोल सदाचारांदि का समष्टि मे यही परिचय है | इन सवों के धर्म, शील सदाचारादि, बुद्धि, क्षमा, बल एवं स्वरूप से राजसी, तामसी एव मात्त्विकी प्रवृत्तियाँ उनमे पाई जाती है, और इस प्रकार वे धार्मिक और अधार्मिक दोनो प्रकार के विचारोवाली कही जाती है ।३४६-३४८। कश्यप की ये समस्त प्रजाये अपनी-अपनी माताओ के समान स्वभाववाली तथा कुलीन थी | देवता, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, सर्प, पिशाच, पशु, मृग, पक्षी और लता वल्ली आदि सभी प्रजायें इस प्रकार की कही जाती हैं । यतः ये प्रजायें दक्ष की मानुषी कन्याओं मे उत्पन्न हुईं अत सभो मन्वन्तरों मे मनुष्य सर्वश्रेष्ठ माने अतुर, + धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थो ग. पुस्तके नास्ति |