पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६६०

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नवषष्टितमोऽध्यायः ६३८ शैलजालानि व्याप्तानि गारुडस्तैर्महात्मभिः | भासीपुत्राः स्मृता भासा उलूकाः काककुक्कुटाः ॥३३५ मयूराः कलविङ्काश्च कपोता लावतित्तिराः । * क़ौची वार्धोणाञ्येनी कुररान्सारसान्बकान् ॥ इत्येवमादयोऽन्येऽपि कव्यादा ये च पक्षिणः । धृतराष्ट्री च हंसाश्च कलहंसाश्च भामिनी ॥३३७ चक्रवाकांश्च विन्द्वग्रान्सर्वाश्चैवादकाजिहान् । एतानेव विजज्ञेऽथ पुत्रपौत्रमनन्तकम् गरुडस्याऽऽत्मजाः प्रोक्ता इरायाः शृणुत प्रजाः । इरा प्रजज्ञे कन्या वै तिस्रः कमललोचनाः वनस्पतीनां वृक्षाणां वीरुधां चैव मातरः । लता चैवाथ वल्ली च वीरुधा चेति तास्तु वै लता वनस्पतीञ्जज्ञे ह्यपुष्पान्पुलिनस्थितान् | युक्ता पुष्पफलैर्वृक्षाल्लता व संप्रसूयते अथ वल्ली तु गुल्मांश्च त्वक्स/रास्तृणजातयः | वीरुधा तदपत्यानि वंशश्चात्र समाप्यते एते कश्यपदायादा व्याख्याताः स्थाणुजङ्गमाः । तेषां पुत्राश्च पौत्राश्च यैरिदं पूरितं जगत् ॥ ३४३ ॥३३८ ॥३३६ ।।३४० ॥३४१ ॥३४२ के पद्म के समान रंगवाले, उन महाबलशाली गरुड नामक पक्षियों से इस पर्वतों के शिखर जाल भरे पड़े हैं। भासी ६ पुत्र भास नाम से विख्यात हुये। उलूक, काक, कुक्कुर (मुर्गे) मयूर, कलविक ( गवरा, गौरैया) कपोत. लवा, तीतर प्रभृति पक्षी भासी की सन्तति स्मरण किये गये हैं |३३२-३३५३ । क्रौञ्ची ने वार्धीस नामक पक्षियों को उत्पन्न किया । कुरर, सारस, बगले, आदि अन्यान्य जो मांसभक्षी पक्षी हैं, उन्हें श्येनी ने उत्पन्न किया । सुन्दरी घृतराष्ट्री ने हंस कलहंस, चक्रवाक तथा अन्य सभी प्रकार के हिंसक पक्षियों को जन्म दिया। इन सबों के इन पुत्रों के पुत्र पौतों की संख्या असंख्य हुई | ३३६-२३८| गरुड़ की सन्ततियों का विवरण कह चुका अब इरा की सन्ततियों को सुनिये । इरा ने कमल के समान मनोहर नेत्रोंवाली तीन कन्याओं को जन्म दिया, जो सभी प्रकार की वनस्पतियों, वृक्षों और लताओं को माता थी | उनके नाम थे लता, वल्ली औह वीरुघा | जिनमें ने लता ने नदी आदि के तट प्रदेश में स्थित रहने वाले, पुष्परहित वनस्पतियों को उत्पन्न किया, इसके अतिरिक्त पुष्पों और फलों से संयुक्त वृक्षों को लता ने जन्म दिया । वल्ली ने गुल्मों को जन्म दिया, समस्त तृण जाति एवं त्वक् सार (जिनके चमड़े में ही सार हो, बाँस) आदि को भी वल्ली ने उत्पन्न किया । वीरुधा की सन्ततियाँ वीरुधर के नाम से विख्यात हुईं । यह वंश परिचय को कथा यहाँ समाप्त की जाती है। कश्यप एतदर्धस्थाने 'क्रौञ्चा वाघ्रीणसा: श्येना: कुरराः सारसा बकाः' इति ख. ग. घ. ङ् पुस्तकेषु | १. एक विशेष पक्षी । जिसका पैर, शिर और आँखें लाल तथा शेष अंग काले रंग के हो । मार्कण्डेय पुराण में उसका लक्षण इस प्रकार लिखा गया है । 'रक्तपादो रक्तशिरा रक्तचक्षुविहंगमः, कृष्णवर्णेन च तथा पक्षी वार्धीणसो मतः ॥ इसके अतिरिक्त "नीलग्रीवो रक्तशीर्षः कृष्णपादः सितच्छदः । चार्धीणसः स्यात् पक्षीशो मम विष्णोरतिप्रियः” यह एक दूसरा लक्षण भी मिलता है । २. विस्तार के साथ फैलनेवाली लताएं ।