पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६४६

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नवर्षाष्टितमोऽध्यायः मृगराजा मृगमन्दाया गवयाश्चापरे तथा । महिषोष्ट्रवराहाश्च खड्गगौर मुखास्तथा हरेस्तु हरयः पुत्रा गोला ङ्गूलतरक्षवः । वानराः किनराश्चैव व्याघ्राः किंपुरुषास्तथा ॥ इत्येवमादयोऽन्येऽपि इरावत्या निबोधत ६२५ ।।२०७

  • इदमधं नास्ति घ. पुस्तके

इति ख. घ. ङ. पुस्तकेषु । फा० ७८ ॥२०८ ॥२०६ ॥२१०

  • सूर्यस्याण्डकपाले द्वे समानीय तु भौवनः । हस्ताभ्यां परिगृह्याथ रथंतरमगायत

साम्ना प्रसूयमानेन सद्य एव गजोऽभवत् । स प्रागच्छदिरावत्यै पुत्रार्थे स तु भौवनः इरावत्याः सुतो यस्मात्तस्मादैरावतः स्मृतः । देवराजोपवाह्यत्वात्प्रथमः स मतङ्गराट् ॥ शुभ्राभ्राभश्चतुर्दंष्ट्रः श्रीमानैरावतो गजः ॥२११ ॥२१२ अप्सुजस्यैकमूलस्य सुवर्णाभस्य हस्तिजः । षड्दन्तस्य हि भद्रस्य औपवाह्यश्च वै बलः तस्य पुत्रोऽञ्जनश्चैव सुप्रतीकोऽथ वामनः | पद्मश्चैव चतुर्थोऽभूद्धस्तिनी चाभ्रमुस्तथा दिग्गजांस्तांच चत्वा ( तु) रः श्वेताऽजनयताऽऽशुगान् । भद्रं मृगं च मन्दं च संकीर्णं चतुरः सुतान् ॥ २१४ ॥२१३ पशु उसी से उत्पन्न हुए । मृगमन्दा के गर्भ से मृगराजों (सिहों) की उत्पत्ति हुई, अन्यान्य मवय (नोलगाय) महिष, ऊँट, वराह, खड्ग (गैंड़ा) तथा गौरमुख नामक वन्य पशु भी उसी से उत्पन्न हुए । २०६-२०७। हरि के गर्भ से बन्दरों की उत्पत्ति हुई तथा लङ्गली बन्दर तरक्षु (भेडिया) अन्यान्य छोटी जातियों के बन्दर, किन्नर, वाघ, किंपुरुष आदि वन्यजीवों की भी उत्पत्ति उसी से हुई, इसके बाद इरावती के पुत्रों को सुनिये । २०८ एक बार भोवन ने सूर्य के दो अण्ड कपालों को लाकर अपने दोनों हाथों से उसे पकड़ कर रथन्तर का गान किया था, उस समय सामवेद के रथन्तर की स्तुति करते समय शीघ्र ही एक हस्ती प्रार्दुभूत हुआ । भौवन ने वैसे पुत्र की कामना से इरावती के साथ समागम किया था, यतः वह इरावती के गर्भ से उत्पन्न हुआ था अतः ऐरावत नाम से प्रसिद्ध हुआ । देवराज इन्द्र के वाहन होने के कारण वह मतङ्गों का प्रथम राजा हुआ, वह ऐरावत श्वेत बादल के समान शुभ्र वर्ण का चार दाँतों वाला, अतिशय शोभा सम्पन्न गजराज है |२०६-२११। एक ही मूल से उत्पन्न हुये, जल सम्भूत, छः दाँतों वाले सुवर्ण के समान कान्तिमान्, भद्र नामक हस्ती पर सवार होने वाला बल था, जो हस्तिज (?) था । उस ऐरावत के अञ्जन, सुप्रतीक, वामन और पद्म ये चार पुत्र थे, हस्तिनी का नाम अभ्रमु था । श्वेता ने उन चार दिग्गजों को उत्पन्न किया, जो अति शीघ्र नमन करने वाले थे, उन चारो पुत्रों के नाम भद्र, मृग, मन्द और संकीर्ण थे । इनमें से एतदर्घस्थान इदमधं पर्वमाना तयोश्चापि प्रथिताः पुरुजः सुतो'