पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६४५

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६२४ वायुपुराणम् ॥२०० अनाभिभाष्या विक्रान्ताः सर्वलोकनमस्कृताः | सूक्ष्मास्त्वौजस्विनो मेध्या वरदा यज्ञियाश्च ये ॥१६६ देवानां तुल्यधर्माणां ह्यसुराः सर्वशः स्मृताः । त्रिभिः पादैस्तु गन्धर्वा देवैर्हीनाः प्रभावतः गन्धर्वेभ्यस्त्रिभिः पादैर्होना वै सर्वगुह्यकाः | प्रभावतुल्या यक्षाणां विज्ञेयाः सर्वराक्षसाः ॥ ऐश्वर्यहीना यक्षेभ्यः पिशाचास्त्रिगुणं पुनः एवं धनेन रूपेण आयुषा च बलेन च । धर्मेश्वर्येण बुद्धया च तपःश्रुतपराक्रमैः देवासुरेभ्यो होयन्ते त्रोन्पादान्वं परस्परम् | गन्धर्वाद्याः पिशाचान्ताश्चतस्रो देवयोनयः सूत उवाच अतः शृणुत भद्रं वः प्रजाः क्रोधवशात्मका: । क्रोधायां कन्यका जज्ञे द्वादश ह्यात्मसंभवाः || या भार्या : पुलहस्याऽऽसन्नामतस्ता निबोधत मृगी च मृगमन्दा च हरिभद्रा इरावती । भूता च कपिशा दंष्ट्रा निशा तिर्या तथैव च ॥ श्वेता चैव स्वरा चैव सुरसा चेति विश्रुताः मृग्यास्तु हरिणाः पुत्राः मृगाश्चान्याः शशारतथा । न्यङ्कवः शरभा ये च रुरवः पृषताश्च ये ॥२०१ ॥२०२ ॥२०३ ॥ २०४ ।२०५ ॥२०६ एवं इच्छानुसार स्वरूप धारण करनेवाले अनुपम शक्तिशाली, विक्रमी, सभी लोकों द्वारा पूजनीय, सूक्ष्म स्वरूप धारण करनेवाले, तेजस्वी, यक्षादि के योग्य, वरदान देनेवाले, यक्ष परायण एवं देवताओं के समान धर्मात्मा होते है, वे सब असुर नाम से स्मरण किये जाते हैं |१६४-१९९३ । गन्धर्व लोग प्रभाव में देवताओं की अपेक्षा तीन पादों से (तीन चौथाई १) हीन होते हैं। सभी गुह्य ( यक्ष ) गन्धर्वो की अपेक्षा प्रभाव आदि में तीन पदो से होन होते हैं, इन्हीं यक्षों के समान प्रभावशाली सब राक्षस होते हैं। इन यक्षों से गुण में तीन गुने हीन पिशाच होते हैं । इस प्रकार घन से, रूप से, आयु से, वल से, धर्म, ऐश्वर्य से, बुद्धि से, तपस्या से, शस्त्र बल से एवं पराक्रम से गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और पिशाच – ये चार देवयोनियों में उत्पन्न वाले देवताओं और असुरो की अपेक्षा परस्पर हीन होते हैं |२००-२०३॥ सूत ने कहा:- ऋषिवृन्द ! अब इसके उपरान्त आप लोग क्रोध के वश में रहनेवाली प्रजाओं का विवरण सुनिये, इससे आप लोगो का कल्याण होगा । क्रोधा में बारह स्वयम् उत्पन्न होनेवाली कन्याएँ उत्पन्न हुई और वे सब पुलह ऋषि की पत्नियाँ हुई, उनके नाम सुनिये |२०४-२०५। मृमी, मृगमन्दा, हरिभद्रा, इरावती, भूता, कपिशा, दंष्ट्रा, निशा, तिर्या, श्वेता, स्वरा, और सुरसा - नाम से विख्यात है । तिनमें से मृगी के पुत्र हरिण हुए, अन्यान्य मृग, शश (खरगोश ) यंकू (बारहसिंगा ) शरभ, रुरु और पृषत् नामक