पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६३०

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६०६ नवषष्टितमोऽध्यायः ॥५४ गणा अप्सरसां ख्याताः पुष्यास्ते मै चतुर्दश | + आहूताः शोभयन्तश्च गगा होते चतुर्दश ब्रह्मणो मानसाः कन्याः शोभयन्त्यो जनोः सुताः | वेगवन्तत्त्वरिष्टाया ऊर्जायाश्चाग्निसंभवा ( x आयुष्मत्यश्च सूर्यस्य रश्मिजाताः सुभास्वराः । गर्भस्तेजश्च सोमस्य ज्ञेयास्ते कुरवः शुभाः ॥५५ यज्ञोत्पन्नाः शुभा नाम ॠवसामान्यास्तु वह्नयः) । वारिजा ह्यमृतोत्पन्ना अमृता नामतः स्मृताः ॥५६ वायूत्पन्ना सुदा नाम भूमिजाता भवास्तु वै । विद्युतश्च रुचो नाम मृत्योः कन्याश्च भैरवाः शोभयन्त्यश्च कामस्य गणाः प्रोक्ताश्चतुर्दश | सेन्द्रोपेन्द्रः सुरगणे रूपातिशयनिर्मिताः धनुरूपा महाभागा दिव्या नारी तिलोत्तमा | ब्रह्मणश्चाग्निकुण्डाच्च देवनारी प्रभावती || रूपयौवन संपन्ना उत्पन्ना लोकविश्रुता ॥५७ ५८॥ ॥५६ सर्वदा निरत रहनेवाली कही जाती हैं ।४६-५२। उन अप्सराओं के चौदह पवित्रगण (समूह) प्रसिद्ध है । उन चौदह मे से दो गणों के नाम ( १ ) आहूत और ( २ ) शोभयन्त है । ( आहूत गण को अप्सराएँ ) ब्रह्मा की मानस कन्याएँ हैं, शोभयन्त मनु की कन्याएँ है । (३) वेगवन्त नामक गण की अप्सराएं अरिष्टा से उत्पन्न हुई हैं । ऊर्जा के संयोग से (४) अग्निसम्भव नामक गण की उत्पत्ति हुई । सूर्य की किरणों से उत्पन्न होनेवाली ( ५ ) आयुष्मती नामक अप्सराएँ अति प्रकाशमान शरीरवाली थीं । चन्द्रमा का तेज जो, गर्भ में माहित हुआ, उससे कल्याण प्रदायिनी ( ६ ) कुरु नामक अप्पराओं को उत्पन्न हुआ समझिये । यज्ञ से उत्पन्न होनेवाली अप्सराएँ ७ शुभा नामक है, ऋक् एवं साम से उत्पन्न होनेवाली अन्य अप्सराओं के गण ( 5 ) बहिन् नाम से प्रसिद्ध हुये | अमृत से उत्पन्न होनेवाली अप्सराएँ चारिजा' नाम से विख्यात है, उन्हे अमृत नाम से भी स्मरण किया जाता है |५३ ५६ | वायु से उत्पन्न होनेवाली अप्सराएँ (१०) सुदा नामक है, भूमि से उत्पन्न होनेवाली को (११) भवा नाम से जानते है । विद्युत् से उत्पन्न होनेवालो अप्सराएँ (१२) रुचा नामक हैं, मृत्यु की कन्याएँ जो अप्सरा हुईं, उनकी ( १३ ) भैरवा नाम से ख्याति हुई । काम की कन्याएँ जो अप्सरा हुईं, उन्हें (१४) गोभयन्ती नाम से जानते है - अप्सराओं के ये चौदह गण कहे गये है। इन्द्र, विष्णु प्रभृति प्रमुख देवगणों ने इन अप्सराओं को स्वरूप की अतिशयता प्रदानकर निर्मित किया है।५७-५८ इन सब में महाभाग्यशालिनी सुर-नारी तिलोत्तमा परम सुन्दरी कही जाती है। स्वरूप एवं यौवन से सुसमृद्ध लोक विख्यात से + एतदर्धस्थानेऽयं ग्रन्थः - 'आहूता: शोभयन्त्यश्च वेगवत्यस्तथैवच | दुर्मयाश्च युषत्यश्च तथा भेकुरयः शुभाः । वह्नयोत्यमृतासेदा भृवश्च रुचयस्तथा । भैरवाः शोभयन्त्यश्च गणा होते चतुर्दश' इति -ख. घ. पुस्तकयोः । x धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः क. पुस्तके नास्ति । फा०-७७