पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६३१

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६१० वायुपुराणम् वेदीतलसमुत्पन्ना चतुर्वक्त्रस्य धीमतः । नाम्ना वेदवती नाम सुरनारी महाप्रभा तथा यमस्य दुहिता रूपयौवनशालिनी | वरहेमनिभा हेमा देवनारी सुलोचना इत्येते बहुसाहस्रं भास्वरा ह्यप्सरोगणाः । देवतानामृषीणां च पत्म्यस्ता मातरश्न ह सुगन्धाश्चम्पवर्णाश्च सर्वाश्चाप्सरसः समाः | संप्रयोगे तु कान्तेन माद्यन्ति मदिरां विना ॥ तासामाप्यायते स्पर्शादानन्दश्च विवर्धते (* पर्वते नारदे पूर्वं रेतः स्कन्नं प्रजापतेः । पर्वतस्तत्र संभूतो नारदश्चैन तावुभौ तयोर्यवीयसो चैव तृतीया रुन्धती स्मृता | देवरुख्यो ( ? ) सूर्यजन्म तस्मिन्नारदपर्वतौ ) विनतायास्तु पुत्रौ द्वावरुणा गरुडश्च ह । षट्त्रिंशत्तु स्वसारश्च यवीयस्यस्तु ताः स्मृताः गायत्र्यादीनि च्छन्दांसि सौपर्णेयाश्च पक्षिणः | हव्यवाहानि सर्वाणि दिक्षु संनिहितानि च कण्डूर्नागसहस्रं वै चराचरमजीजनत् । अनेक शिरसां तेषां खेचराणां महात्मनाम् ॥ बहुधा नामधेयानां प्रायशस्तु निबोधत ॥६० ॥६१ ॥६२ ॥६३ ॥६४ ॥६५ ॥६६ ॥६७ ॥६८ देवनारी प्रभावती ब्रह्मा के अग्निकुण्ड से उत्पन्न कहो जाती है । परमकान्तियुक्त सुर-नारी वेदवती बुद्धिमान् श्चतुर्मुख ब्रह्मा जो के वेदी तल से उत्पन्न हुई | स्वरूप एवं यौवन से दोनों सुसम्पन्न हेमानामक सुन्दरी जिसके शरीर की आभा तपाये हुये सुवर्ण के समान मनोहर थी, एवं जिसकी आँखें अति सुन्दर थी, यम की पुत्री थो । इस प्रकार को अनेक सहस्र तेजस्विनी अप्सराओं के समूह हुये, जो विविध देवताओ एवं ऋषियों को पत्नो एवं माता हुईं । ये सभो अप्सराये एक समान चम्पा के पुष्प की भांति गौरवर्ण को एवं सुगन्धित शरीर वाली थी, विना मद्यपान किये ही ये अपने प्रियतम के सहवास में मदोन्मत्त की भांति हो जाती है। इनके स्पर्श करने से प्रियजन सन्तुष्ट होकर आनन्द से विभोर हो उठते हैं ५६-६३ । प्राचीनकाल मे नारद नामक पर्वत पर प्रजापति ब्रह्मा का वीर्य स्खलित हुआ, जिससे वहाँ नारद और पर्यंत नाम के दो ऋषि उत्पन्न हुये । इन दोनों भाइयों को छोटी बहिन अरुन्धती के नाम से स्मरण की जाती है, जो ब्रह्मा की तीसरी सन्तति के रूप मे उत्पन्न हुई |६४३। उसी पर्वत पर देवरुख्य (?) सूर्य नारद और पर्वत पर इन सब का जन्म हुआ था । विनता के अरुण और गरुड़ नामक दो पुत्र हुये । इन दोनों की सहोदरा छत्तीस छोटी चहिने भी कही जाती हैं । गायत्री आदि छन्द, पंख से उड़नेवाले समस्त पक्षीगण, विभिन्न दिशाओं मे सन्निहित सभी हव्यवाहगण- ये सब भी विनता ही के गर्भ से प्रार्दुभूत हुए | कद्रू ने चलने वाले एवं न चलनेवाले सहस्रो नागो को उत्पन्न किया | उन महात्मा आकाशणमी, अनेक शिरोंवाले मागो मे से प्राय: कुछ के नामो को मैं बतला रहा

  • धनुदिचह्नान्तर्गतग्रन्थः क. पुस्तके नास्ति |