पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६२९

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६०८ वायुपुराणम् नारायणं सुरगुरुं विरजं पुष्करेक्षणम् । हिरण्यगर्भं च तथा चतुर्वक्त्रं स्वयंभुवम् शंकरं च महादेवमीशानं च जगत्प्रभुम् । इन्द्रपूर्वास्तथाऽऽदित्यान्रुद्रांश्च वसुभिः सह उपतस्थुः सगन्धर्वा नृत्यगीतविशारदाः । त्रिदशाः सर्वलोकस्था निपुणा गीतवादिनः हँसो ज्येष्ठः कनिष्ठोऽन्यो मध्यमौ च हहा हुहुः । चतुर्थी धिषणश्चैव ततो वासिरुचिस्तथा षष्ठस्तु तुम्बुरुस्तेषां ततो विश्वावसुः स्मृतः । इमाश्चाप्सरसो दिव्या विहिताः पुण्यलक्षणाः सुषुवेऽष्टौ महाभागा वरिष्ठा देवपूजिताः । अनवद्यामनवशामन्वतां मदनप्रियाम् ॥ अरूपां सुभगां भासीमरिष्टाऽष्टी व्यजायत मनोवती सुकेशा च तुम्बुरोस्तु सुते उभे । पञ्चचूडास्त्विमा दिव्या दैविक्योऽप्सरसो दश मेनका सहजन्या च पणिनी पुञ्जिकस्थला | घृतस्थला घृताची च विश्वाची पूर्वचीत्यपि ॥ प्रम्लोचेत्यभित्रिख्याताऽनुम्लोचन्ती तथैव च अनादिनिधनस्याथ जज्ञे नारायणस्य या | उरोः सर्वानवद्याङ्गो उर्वश्येकादशी स्मृता मेनस्य मेनका कन्या ब्रह्मणो हृष्टचेतसः । सर्वाश्च ब्रह्मवादिन्यो महायोगाश्च ताः स्मृताः ॥४३ ॥४४ ॥४५ ॥४६ ।।४७ ॥४८ ॥४६ ॥५० ॥५१ ॥५२ में सर्वदा रत रहनेवाला समझिये | नृत्य एवं गोत में सुनिपुण, सभी लोकों में निवास करनेवाले, व्यवहार कुशल देवगण इन गन्धर्वो के साथ सुरगुरु, कमलनेत्र, सत्त्वगुणमय भगवान् नारायण, स्वयम् उत्पन्न होनेवाले चतुर्मुख हिरण्यगर्म ब्रह्मा, चराचर जगत् के प्रभु एवं कल्याणकर्ता ईशान महादेव, इन्द्र, आदित्यगण रुद्रगण एष वसुगण — इन सब की उपासना करते थे । महाभाग्यशालिनी देवताओं द्वारा पूजित वरिष्ण ने आठ पुत्रों को उत्पन्न किया। जिनमे सब से श्रेष्ठ का नाम हंस था, कनिष्ठ का नाम अन्य (?) था, हहा हूहू ये दोनों मझले थे, धिपण चौथा था, इसके बाद वासिरुचि की उत्पत्ति हुई, इनमे तुम्बुरु छठवाँ पुत्र था, इसके बाद विश्वावसु नामक पुत्र हुआ । निम्नलिखित पुण्यलक्षणों से समन्वित दिव्य अप्सराएँ इनको अर्धाङ्गिनी के रूप में थी, जिनके नाम वरिष्ठा, अनवद्या, अनवशा, अन्वता, मदनप्रिया, अरूपा, सुभगा और भासी इन सब को अरिष्टा ने उत्पन्न किया |४२-४८ तुम्बुरु की मनोवती और सुकेशा नामक दो पुत्रियाँ हुई । इनके अतिरिक्त ये निम्नलिखित पंचचूड एव दैविको नाम से विख्यात दस दिव्यगुण युक्त स्वर्गीय अप्सराएं है, जिनके नाम हैं, मेनका, सहजन्या, पणिनी, पुञ्जिकस्थला घृतस्थला, घृताचो विश्वाची, पूर्वची, प्रम्लोचा और अनुम्लोचन्ती । इन दसों दिव्य अप्सराओं के अतिरिक्त अनादि निधन ( जिनका कभी जन्म-मरण नही होता) भगवान नारायण के करुभाग से सभी अंगों से निर्दोष एवं अनुपम सुन्दरी उर्वशी नामक जो एक अप्सरा उत्पन्न हुई, वह स्वर्ग की ग्यारहवी अप्सरा कही जाती है। ब्रह्मज्ञान- परायण, प्रसन्न चित्त रहनेवाले मेन को कन्या मेनका थी—ये सभी अप्सराएँ ब्रह्मवादिनी एवं योगाभ्यास मे