पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६२८

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नवषष्टितमोऽध्यायः समुद्रसेनः कालिन्दो महानेत्री महावलः | सुवर्णघोषः सुग्रीवो महाघोषश्च वीर्यवान् इत्येवमादिहि गणः किनराणां महात्मनात् । ह्याननानां विद्भिविस्तीर्णः परिकीर्त्यते तयां समुत्थितेनैव विक्कांप्तेन महत्मना । उत्पादिता नरमुखाः किनराः शांशपायनाः हरिषेणः सुषणश्च वारिषेणश्च वीर्यवान् । रुद्रदत्तेन्द्रदत्तौं च चन्द्रद्रुममहाद्रुमौ बिन्दुश्च बिन्दुसारश्व चन्द्रवंशाश्च किनराः । इत्येते किनराः श्रेष्ठा लोके ख्याताः सुशोभनाः नृत्यगीतप्रगल्भानामेतेषां द्विजसत्तमाः । लोकें गणशतान्धेव किनराणां महात्मनाम् यक्षां वक्षोपशान्तश्च लौहेया रूपशालिनी | दुहिता सुरविन्देति प्रकाशा सिद्धसंमता उपायाकेतनस्याहि स्वयमुर्तपादितो गणः । कलेकेन भूतानां तेषां नामानि मे शृणु भूता भूतगणैज्ञेयो आदेशक निवेशकाः । * सुतारः कालभवनानिर्देशक विदेशकाः ॥ इत्येव॑मादिहि गणो भूमिगोजरकः स्मृतः विज्ञेयं इह लोकेऽस्मिन्भूतानां भूतनायकः | ये तूत्कृष्टा भवन्त्येषा मम्बरान्तरचारिणां ॥ वृक्षाग्रमात्रमार्काशं ते चरन्ति न संशयः॑ तत्रेमे वेवगन्धर्वाः प्रायेण कथिता मया । देवोपस्थाननिरता विज्ञेयास्ते यशस्विनः "

J ६०७ ॥३२ ॥३३ ॥३४ ॥३७ ॥३८ ॥३ ॥४० live ॥४२ - (1

. सुग्रीत्र, पराक्रमी म्हाघोष आदि महात्मा किन्नरों के गुण है, जो अश्वमुख धारी नाम से प्रसिद्ध हैं, विद्वान् लोग इन किन्नरों का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं | २६-३३॥ हे शांशपायन अदि प्रमुख ऋषिगण ! उन्हीं महात्मा विक्रान्त के संयोग से मनुष्यमुखधारी किन्नरों की भी उत्पत्ति हुई । जिनके नाम हरिषेण, सुषेण बलवान् वारिषेण रुद्रदत्त, इन्द्रद्रुम, महाद्रुम विन्दु और विन्दुसार- ये चन्द्रवंशीय किन्नर है. ये सुन्दर एवं श्रेष्ठ किन्नरगण लोक में प्रसिद्ध है । ३४-३६ | हे द्विजवर्यवृन्द ! नृत्य एवं गीत मे प्रवीण इन महात्मा किन्नूरों के गण सैकड़ों की संख्या मे उत्पन्न हुए । यक्षोपशान्त (?) यक्षगण लौहेय नाम से प्रसिद्ध हुये | गुन्दरी सुरविन्दा नमक कन्या, जो सिद्धों को सम्माननीय एवं प्रकाश युक्त थी । करालक ने उपायाकेतन (?) नामक भूतों के गणों को स्वयम् उत्पन्न किया था, उनके नामों को मुझसे सुनिये | वे भूतगण आवेशक, निवेशक, सुतार, कालभवन, निर्देशक और विशेषक-आदि नामों से पृथ्वी पर दिखाई पड़नेवाले माने जाते है। इन आकाश के मध्य में विचरण करनेवाले भूतगणों में जो श्रेष्ठ होते है, उन्हें इस लोक में भूतनायक नाम से जानना चाहिये, वे वृक्षों के शिखर पर्यन्त आकाश प्रदेश में विचरण करते हैं – इसमें सन्देह नही ३३७-४१। इस प्रसङ्ग में प्रायः देवताओं के गन्धर्वो का विवरण मैं कह चुका, उन देवगन्धर्वो को परमयशस्वी एवं देवताओं की पूजा }' इदमधं नास्तिक पुस्तके