पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६१७

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५६६ वायुपुराणम् तस्याः शरीरं विवृतं विवेशाथ पुरंदरः । प्रविश्य चामितं दृष्ट्वा गर्भमिन्द्रो महौजसम् ॥ अभिनत्सप्तधा तं तु कुलिशेन महायशाः भिद्यमानस्तदा गर्भो वज्रेण शतपर्वणा | रुरोद सस्वरं भीमं वेपमानः पुनः पुनः ॥ मा रोदोरिति तं गर्भ शक्तः पुनरभाषत तं गर्भ सप्तधा कृत्वा ह्येकैकं सप्तधा पुनः । कुलिशेन विभेदेन्द्रस्ततो दितिरबुध्यत न हन्तव्यो न हन्तव्य इत्येवं दितिरब्रवीत् । निष्पपातोदराद्वज्त्री मातुर्वचनगौरवात् ॥ प्राञ्जलिर्वज्ञसहितो दिति शक्नोऽभ्यभाषत अशुचिर्देवि सुप्ताऽसि पादयोर्गतमूर्धजा। तदन्तरमहं लब्ध्वा शक्रहन्तारमाहवे ॥ भिन्नवान्गर्भमेतं ते बहुधा क्षन्तुमर्हसि ॥१०२ ।।१०३ ॥१०४ ॥१०५ ॥१०६ ॥१०७ ॥१०८ तस्मस्तु बिफले गर्भे दितिः परमदुःखिता। सहस्राक्षं ततो वाक्यं सा सानुनयमब्रवीत् ममापराधाद्गर्भोऽयं यदि ते विफलीकृतः । नापराधोऽस्ति देवेश ऋषिपुत्र महाबल शत्रोर्वधे न दोषोऽस्ति तेन त्वां न शपामि भोः । प्रियं तु कर्तुमिच्छामि श्रेयो गर्भस्य मे कुरु ॥१०६ भवन्तु मम पुत्राणां सप्त स्थानानि वै दिवि | वातस्कन्धानिमान्सप्त चरन्तु मम पुत्रकाः || मरुतश्चेति विख्याता गणास्ते सप्त सप्तकाः ॥११० होकर वहाँ महान् तेजस्वी एवं अपरिमित उस गर्भ शिशु को देखा अपने वज्र से सात भागों में काट डाला । इन्द्र द्वारा वज्र से काटते समय वह गर्भ डर के मारे काँपने लगा और बारम्बार भयानक स्वर रोदन करने लगा | इन्द्र ने उस गर्भ से कहा कि मत रोओ | और ऐसा कहकर उसे सात टुकड़ों में काटकर फिर से एक-एक टुकड़े को सात-सात भागों में वज्र से काट दिया तब तक दिति जग गई । और ऐसा कहने लगो मत मारो, म मारो ।' माता की आज्ञा का गौरव रखने के लिए इन्द्र वज्र समेत उदर से बाहर निकले और हाथ जोड़कर दिति से बोले, हे देवि ! तुम अपवित्र अवस्था में सो गई थी, तुम्हारे केश दोनों पैरो पर विखरे हुए थे, ऐसे अवसर को पाकर मैंने युद्ध मे इन्द्र का ( मेरा ) संहार करनेवाले इह गर्भस्थ शिशु को अनेक टुकड़ो मे काट डाला, मुझे क्षमा करो |१०२-१०६ । उस गर्भ के निष्फल हो जाने पर दिति को बड़ा दुःख हुआ और उसने अनुनय पूर्वक संहस्र नेत्र इंन्द्र से कहा, देवेश ! यदि मेरे हो अपराध से यह मेरा गर्भ निष्फल हुआ है तो हे ऋषिपुत्र ! महावलवान् ! इसमें तुम्हारा कोई अपराध नहीं है, क्योकि शत्रु का वध करने मे कोई दोष नहीं है, इसीलिए मैं तुम्हे शाप नहीं दे रही हूँ प्रत्युन तुम्हारा मंगल करने की मेरी इच्छा है, मेरे इस गर्भ का कल्याण करो ।१०७-१०६। स्वर्ग मे मेरे इन पुत्रों का सात स्थान प्राप्त हो, मेरे ये पुत्र वायु के सात स्कन्धों में मरुत् नाम से विचरण करें, उनके एक-एक गण में सात-सात म॑रुत् हों । इनका पहला स्कुन्न पृथ्वी तल पर हो, दूसरा सूर्य