पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६१३

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५६२ वायुपुराणम् एवंप्रभावो दैत्येन्द्रो हिरण्यकशिपुद्विजाः । तस्याऽऽसोन्नरसिंहः स विष्णुर्भृत्युः पुरा किल ॥ नखैस्तु तेन निभिनानार्द्रशुष्का नखाः स्मृताः ॥६६ ॥६७ ॥६८ ॥६६ हिरण्याक्षसुताः पश्च विक्रान्ताः सुमहाबलाः । उत्कुरः शकुनिश्चैव कालनाभस्तथैव च महानाभश्च विक्रान्ती भूतसंतापनस्तथा । हिरण्याक्षसुता होते देवैरपि दुरासदाः तेषां पुत्राश्र पौत्राव वाडेयः स गणः स्मृतः । शतं तानि सहस्राणि निहतास्तारकामये हिरण्यकशिपोः पुत्राश्चत्वारस्तु महाबलाः । प्रह्लादः पूर्वजस्तेषामनुह्लादस्तथैव च ॥ संहादच हृदश्चंव हृदपुत्राशिबोधत हादो निसुन्दश्च तथा हृदपुत्रौ बभूवतुः । सुन्दोपसुन्दौ विक्रान्तौ निसुन्दसनयावुभौ ब्रह्मघ्नस्तु महावीर्यो नूकस्तु हृवदायिनः | मारीचः सुन्दपुत्रस्तु ताडकामुपपद्यते ताडका निहता साथ राघवेण बलीयसा | सूको विनिहतश्चापि किराते सव्यसाचिना उत्पन्ना महता चैव तपता भाविताः स्वयम् । तिनः कोटयस्तु तेषां वै मणिवर्तनिवासिनाम् ॥ अवध्या देवतानां वै निहताः सव्यसाचिना ।७४ ॥७० ॥७१ ॥७२ ।।७३ नमस्कार करते थे ।' हे विप्रवृन्द ! वह दैत्येन्द्र हिरण्यकशिपु सचमुच ऐसा ही प्रभावशाली था । यह सर्वप्रसिद्ध बात है कि प्राचीन काल मे उस हिरण्यकशिपु के मृत्यु स्वरूप नरसिंह रूपधारी भगवान् विष्णु स्वयमेव हुए । उन्होने अपने नखो से उस दैत्यराज की छाती फाड़ डाली थी, किन्तु उनके नख न तो गीले हुये न सूखे ही रहे, ऐसा कहा जाता है। हिरण्याक्ष के पाँच महावलवान् एव विक्रमशाली पुत्र हुए, जिनके नाम उत्कुर, शकुनि, कालनाभ महामाभ तथा भूतसन्तापन थे । हिरण्याक्ष के ये पुत्र देवताओ द्वारा भी पराजित नही किये जा सकते थे ।६५-६८। उन पुत्रों के जो पुत्र पौत्रादि हुये वे वाडेयगणों के नाम से विख्यात हुये, उनको संख्या एक लाख की थी, जो सब के सब तारकामय नामक संग्राम में नष्ट हुये । हिरण्यकशिपु के चार महाबलवान् पुत्र हुए, जिनमे सबसे बडे का नाम प्रह्लाद हुआ, प्रह्लाद से छोटे भाई का माम अनुह्लाद था, दो उससे भी छोटे जिनके नाम सह्लाद और ह्रद थे । अव ह्रद के पुत्रो को सुनिये |६६ - ७० ह्रद के ह्राद और निसुन्द नामक दो पुत्र हुए । तिनमें निसुन्द के सुन्द और उपसुन्द दो पुत्र हुए । ह्रद के उत्तराधिकारी सुन्द के पुत्र महाबलशाली ब्रह्मन, मूक और मारीच हुए जो ताड़का से उत्पन्न हुये थे । वह ताड़का बलवान् रामचन्द्र के हाथों मारी गई, मूक को किरातयुद्ध में सव्यसाची अर्जुन ने मारा था । इन मणिवतं निवासी दैत्यों के वंशधर तीन कोटि तक पहुँच गये, जो अपनी अपनी घोर तपस्था से परम तेजस्वी तथा देवताओं से अवध्य थे, उन सब का संहार १. हिरण्यकशिपु ने ब्रह्मा से यह भी वरदान याचना की थी कि उसकी मृत्यु न गोली वस्तु के द्वारा हो न सुखी । इसी से भगवाबू के नख न गीले हुये न सूखे ।