पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६१४

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सप्तर्षष्टितमोऽध्यायः ॥७५ अनुहादसुती वायुः सिनीवाली तथैव च । तेषां तु शतसाहत्रो गणो हालाहलः स्मृतः विरोचनस्तु प्राह लादिः पञ्च तस्याऽऽत्मजाः स्मृताः । गवेष्ठी कालनेमिश्च जम्भो बाष्कल एव च ॥ शंभुस्तु अनुजस्तेषां स्मृताः प्रह्लादसूनवः ॥७६ ॥७७ ॥७८ ॥७६ यथाप्रधानं वक्ष्यामि तेषां पुत्रान्दुरासदान् । शुम्भश्चैवं निशुम्भश्च विष्वक्सेनो महौजसः गवेष्ठिनः सुता होते जम्भस्य शतदुन्दुभिः । ( तथा दक्षश्च खण्डश्च चत्वारो जम्भसूनवः विरोधश्च मनुश्चैव वृक्षायुः कुशलीमुखः । बाष्कलस्य सुता होते कालनेमिसुताञ्शृणु ब्रह्मजित्क्षत्रजिच्चैव देवान्तकनरान्तकौ । कालनेमिसुता ह्यो ते शंभोस्तु शृणुत प्रजाः धनुको हासिलोमा च नाबलश्च सगोमुखः । गवाक्षश्चैव गोमांश्च शंभोः पुत्राः प्रकीर्तिताः विरोचनस्य पुत्रस्तु बलिरेकः प्रतापवान् ) | बलेः पुत्रशतं जज्ञे राजानः सर्व एव ते 1150 ॥८१ ॥८२ ५६३ भी सव्यसाची ने किया था ।७१-७४। अनुहाद के पुत्र वायु और सिनीवाली हुए, इनके पुत्र पौत्रादिकों की संख्या लाखों तक पहुँच गई, जो सब के सब हालाहल गण के नाम से स्मरण किये जाते है | ७५ | प्रह्लाद का पुत्र विरोचन हुआ, उसके पाँच छोटे भाई कहे जाते हैं, जिनके नाम गवेष्ठी, कालनेमि जम्भ, बाष्कल और शम्भु है - ये पाँच प्रह्लाद के पुत्र कहे गये है |७६ | उन दुधंर्प दैत्य पुत्रों की चर्चा केवल मुख्य मुख्य की गणना करते हुये कर रहा हूँ, उनमें से परमतेजस्वी शुम्भ निशुम्भ और विष्वक्सेन- ये तीन गवेष्ठी के पुत्र हुए, जम्भ का पुत्र शतदुन्दुभि हुआ | जम्भास्य, शतदुन्दुभि, दक्ष और खण्ड - ये चार जम्भ के पुत्र हुये । विरोध, मनु, वृक्षायु और कुशलीमुख – ये चार बाष्कल के पुत्र कहे गये है, अब कालनेमि के पुत्रों का वर्णन सुनिये | कालनेमि के ब्रह्मजित् क्षत्रजित् देवान्तक और नरान्तक नामक पुत्र थे, शम्भु के पुत्रो को सुनिये १७७-८० धनुक, असिलोमा, नावल, सगोमुख, गवाक्ष, और गोमान्, ये शम्भु के पुत्र कहे गये है | विरोचन का केवल एक पुत्र हुआ बलि, जो परम प्रतापी था । उस बलि के सौ पुत्र हुये, जो सब के सब राजा हुए | उन सौ पुत्रो मे चार अत्यन्त प्रवल तथा विक्रमी हुये, जिनमे सबसे ज्येष्ठ सहस्रवाहु बाण था, नाण

धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थो ग. पुस्तके नास्ति । १. किसी-किसी प्रति में 'आत्मजाः' पाठ भी है, जिसके अनुसार 'पाँच पुत्र' अर्थ होगा। किन्तु नामों के अन्त में 'प्रह्लादसूनव: पाठ से इसकी असंगति होती है, क्योंकि ये पाँचों तो विरोचन के पुत्र हुये, और के पौत्र हुए | अत: 'अनुजा : ' पाठ कुछ समीचीन मालूम पड़ता है। आगे चलकर विरोचन के केवल एक पुत्र होने की चर्चा आती हैं, इससे और भी पुष्टि मिलती है । प्रह्लाद के फा०-७५