पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५९९

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

५७८ वायुपुराणम् एको भूत्वा यथा मेघः पृथक्त्वेनावतिष्ठते । रूपतो वर्णतश्चैव तथा गुणवशात्तु सः भवत्येको द्विधा चैव त्रिधा सूतिविनाशनात् । एको ब्रह्माऽन्तकृच्चैव पुरुषश्चेति ये त्रयः एकस्यैताः स्मृतास्तिकास्तनवस्तु स्वयंभुवः । ब्राह्मी च पौरुषो चैव अन्तकारी च ते त्रयः तत्र या राजसी तस्य तनुः सा वै प्रजाकरी | या तामसी तु कालाख्या प्रजाक्षयकरो तु सा ॥ सात्त्विकी पौरुषी या तु सानुग्रहकरी स्मृता ॥१०१ ॥१०२ ॥१०३ ॥१०४ राजस्या ब्रह्मणोंऽशेन मरीचिः कश्यपोऽभवत् । तामसी चान्तकृद्या तु तदंशेनाभवद्भवः ॥१०५ सात्त्विको पौरुषी या सा तस्यांशो विष्णुरुच्यते । त्रैलोक्ये ताः स्मृतास्तिस्तनवस्तु स्वयंभुवः ॥१०६ नानाप्रयोजनार्थी हि कालोऽवस्थां करोति यः । ब्रह्मत्वेन प्रजाः सृष्ट्वा विष्णुत्वेनानुगृह्य च ॥ वैष्णव्याऽनुगृहीतास्ता रौद्याऽनुग्रसते पुनः ।।१०७ ॥१०८ एकः स्वयंभुवः कालस्त्रिभिस्त्रीन्वै करोति सः । सृजते चानुगृह्णाति प्रजाः संहरते तथा इत्येताः कथितास्तिस्त्रस्तन वस्तु स्वयंभुवः । प्राजापत्या च रौद्री च वैष्णवी चैव ताः स्मृताः ॥१० मेघ रूप एवं वर्णं को विभिन्नता के कारण पृथक्-पृथक् दिखाई पड़ता है उसी प्रकार उन सत्त्व, रजस् एवं तमोगुणों के कारण वह स्वयम्भू एक होकर भी पृथक्-पृथक् रूपों में दिखाई पड़ता है। वह एक ही स्वयम्भू ब्रह्मा, पुरुष व काल रूप इन तीन आकारों में व्याप्त है । उस एक स्वयम्भू की ही ये तीन मूर्तियाँ हैं, जिनमें एक ब्राह्मी, दूसरी पौरुषी और तीसरी अन्तकारी - (काल की) मूर्ति है | इन तीनों मूर्तियों मे जो रजोगुण सम्पन्न है वह प्रजाओं को उत्पन्न करनेवालो है, जो तमोगुण सम्पन्न है वह फाल मूर्ति के नाम से विख्यात है, उसका कार्य प्रजाओं का विनाश करना है | तीसरी सत्त्वगुणमयी जो पौरुपी मूर्ति है वह प्रजाओं का पालन करनेवाली मानी गई है ।१०१-१०४। उस रजोगुणमयी मूर्ति से ब्रह्मा के अंश द्वारा मरीचि और कश्यप की उत्पत्ति हुई | सृष्टि का विनाश करनेवालो जो तमोगुणमयी मूर्ति है उससे भव (रुद्र) की उत्पत्ति हुई, सत्त्वगुणमयी जो पौरुषी मूर्ति है उससे विष्णु का आविर्भाव कहा जाता है । इस प्रकार त्रैलोक्य में स्वयम्भू की ये तीन मूर्तियां स्मरण की गई है । ये मूर्तियाँ समय के अनुरूप प्रजावर्ग के विविध प्रयोजनो को सम्पन्न करनेवाली है, सर्वप्रथम ब्रह्मवल का आश्रय ले समस्त प्रजाओं की सृष्टिकर विष्णु के अंश का आश्रय ग्रहणकर विधिवत् पालनकर, रुद्र के अंश से पुनः उनका विनाश करती हैं | कालस्वरूप एकमात्र स्वयम्भू हो अपनी इन तीनों मूर्तियों के द्वारा तीनों कार्यों को सम्पन्न करता है, अर्थात् प्रजाओं की सृष्टि करता हैं, उनका पालन करता है एवं विनाश भी करता है |१०५-१०८। स्वयम्भू की उन तीनों मूर्तियों का वर्णन कर चुका जो ब्राह्मी, वैष्णवी तथा रौद्री के नाम से विख्यात हैं। सांख्य एवं योग के अभ्यास करनेवाले, स्वयम्भू के ·