पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५९८

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

षट्षष्टितमोऽध्यायः एका तु कुरुते तासां राजसी सर्वतः प्रजाः । एका चैवार्णवस्था तु साऽनुगृह्णाति सात्त्विकी || एका सा क्षिपते काले तामसी ग्रसते प्रजाः रजसा तु समुद्रितो ब्रह्मा संभवते यदा | पुरुषाख्या तदा तस्य सात्त्विकी विनिवर्तते यदा भवति कालात्मा उद्रेकात्तमसस्तु सः । ब्रह्माख्या सा तदा त्वस्य राजसी विनिवर्तते सत्त्वोद्रेकात्तु पुरुषो यदा भवति स प्रभुः । कालाख्या सा तदा तस्य पुनर्न भवतीति वै क्रमात्तस्य निवर्तन्ते रूपं नाम च कर्म च । त्रैलोक्ये वर्तमानस्य सर्गानुग्रह निग्रहैः यदा भवति ब्रह्मा च तदा चान्तरमुच्यते । यदा च पुरुषो ब्रह्मा न चैव पुरुषस्तु सः [+ यदा च पुरुषो भवति ब्रह्मा न भवते तदा । यदा भक्षद्भवति हि तदा न पुरुषस्तु सः यदा भद्रो भवेद्भूयो ब्रह्मा न भवते तदा । यदा न भवति ब्रह्मा न चैव पुरुषस्तु सः ] मणिविभजते वर्णान्विचित्रान्स्फटिके यथा । वैमल्यादाश्रयवशात्तवर्णः स्यात्तदञ्जनः तदा गुणवणात्तस्य स्वयंभोरनुरञ्जनम् । एकत्वे च पृथक्त्वे च प्रोक्तमेतन्निदर्शनम् ५७७ + धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः क ख. पुस्तकयोर्नास्ति । फा०-७३ ॥६१ ॥६२ ॥६३ ॥६४ ॥६५ ॥६६ ॥६७ ॥६८ HEE ॥१०० तीसरी जो तमोगुण सम्पन्न मूर्ति है वह उस समय उपस्थित होने पर सभी प्रजाओं को विनष्ट करती है। जिस समय रजोगुण के उद्रेक से संयुक्त होकर ब्रह्मा की मूर्ति आविर्भूत होती है उस समय सत्त्वगुणमयी पुरुष को मूर्ति तिरोभूत (निवृत्त) हो जाती है । इसी प्रकार जिस समय तमोगुण के आधिक्य से संयुक्त होकर काल की मूर्ति प्रकट होती है उस समय रजोगुण सम्पन्न ब्रह्मा की मूर्ति निर्वार्तत हो जाती है |१०-६३ एव सत्त्वगुण के उद्रेक से जिस समय भगवान् की पुरुषमूर्ति प्रकट होती है उस समय उनकी काल संज्ञक मूर्ति अविर्भूत नही होती । इस प्रकार इस त्रैलोक्य मे वर्तमान उन भगवान् के नाम, कर्म एवं रूप क्रमशः सृष्टि के अनुग्रह ( पालन) एव निग्रह ( संहार) के बन्धनों के कारण निर्वार्तत होते रहते हैं। जिस समय ब्रह्मा की सत्ता रहती है उस समय पुरुष मूर्ति या रुद्र मूर्ति का अस्तित्व नहीं रहता, इसी प्रकार जिस समय पुरुष की सत्ता रहती है उस समय ब्रह्ममूर्ति तथा रुद्रमूर्ति की सत्ता नहीं रहती तथा जिस समय रुद्रमूर्ति विद्यमान रहती है उस समय ब्रह्ममूर्ति तथा पुरुष मूर्ति का अस्तित्व नही रहता |१४-१८ | निर्मल स्फटिक मणि में जिस प्रकार आश्रय भेद एवं निर्मलता के कारण विविध प्रकार के रंग अनुरंजित होकर रक्त पीतादि विविध रूपों में लक्षित होते हैं, उसी प्रकार भगवान् स्वयम्भू सत्त्व, रजस् एवं तमोगुण के कारण विष्णु, ब्रह्मा एवं रूद्र में प्रकट होते है। उनके एक रूप एवं भिन्न-भिन्न रूप होने के सम्बन्ध में यह निदर्शन ( उदाहरणे) मैं बतला रहा हूं ।६६-१००१ जिस प्रकार एक ही