पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५९५

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५७४ वायुपुराणम् स्वारोचिषे वै तुषिताः सत्याश्चैवोत्तमे पुनः । तामसे हरयो देवा जाताश्चारिष्णवे तु वै ॥ वैकुण्ठाश्चाक्षुषे साध्या आदित्याः सांप्रते पुनः घातामा च मित्रश्च वरुणोंऽशो भगस्तथा । इन्द्रो विवस्वान्पूषा च पर्जन्यो दशमः स्मृतः ततस्त्वष्टा ततो विष्णुरजघन्योऽजघन्यजः । इत्येते द्वादशाऽऽदित्याः कश्यपस्य सुताः स्मृताः सुरभी कश्यपाद्रुद्रानेकादश विजज्ञिरे । महादेवप्रसादेन तपसा भाविता सती अङ्गारकं तथा सर्प निर्ऋति सदसस्पतिम् | अजैकपादहिर्बुध्नमूर्ध्वकेतुं ज्वरं तथा भुवनं चेश्वरं मृत्युं कपालं चैव विश्रुतम् | देवानेकादशैतांस्तु रुद्रांस्त्रिभुवनेश्वरान् ॥ तपसा तेन महता सुरभी तानजोजनत् ततो दुहितरावन्ये सुरभी द्वे व्यजायत । रोहिणी चैव रुद्राभा गान्धारी च यशस्विनी रोहिण्यां जज्ञिरे कन्थाश्चतस्त्रो लोकविश्रुताः । सुरूपा हंसकीला च भद्रा कामदुधा तथा ॥ सुषुवे कामदुधा तु सुरूपा तनयद्वयम् हंसकोला नृमहिषा भद्रायास्तु व्यजायत । विश्रुतास्तु महाभागा गन्धर्वा वाजिनः सुताः ॥६५ ॥६६ ॥६७ ॥६८ ॥६६ ॥७० ।७१ ॥७२ ।७३ उत्पन्न हुए | वे ही स्वाराचिष् मन्वन्तर में तुषित और उत्तम मन्वन्तर में सत्य नाम से आविर्भूत हुए । तामस मन्वन्तर मे हरि गणो के नाम से तथा चारिष्णव मन्वन्तर में वैकुण्ठ नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई, चाक्षुष मन्वन्तर मे उनकी ख्षाति साध्य नाम से तथा इस वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर मे आदित्य नाम से हुई। धाता, अर्थमा, मित्र, वरुण, , अंश, भग, इन्द्र, विवस्वान्, पूषा, पर्जन्य त्वष्टा, और सबसे छोटे विष्णु । इनमे विष्णु सबसे छोटे होते हुए भी सर्वश्रेष्ठ माने गये हैं । ये वारह आदित्य-गण कश्यप के पुत्र कहे गये हैं ।६५-६७ सती सुरभी ने अपनी परमतपस्या द्वारा महादेव को प्रसन्न कर कश्यप के संयोग से ग्यारह रुद्रो को उत्पन्न किया । उनके नाम अङ्गारक, सर्प, निॠति, सदसस्पति, अर्जंकपात्, अहिर्बुध्न, ऊध्वंकेतु ज्वर, भुवन, ईश्वर, मृत्यु और कपाल — है, इन त्रिभुवन में परम ऐववर्यशाली एकादश रुद्रों को अपनी कठोर तपस्या द्वारा सुरभी ने उत्पन्न किया |६८-७०। इन सन्ततियों के अतिरिक्त दो कन्याओं को भी सुरभो ने उत्पन्न किया, जिनमें एक रुद्र के समान कान्तिमती रोहिणी थो और दूसरी परम यशस्विनी गान्धारी थी । रोहिणी में लोक विख्यात चार कन्याएँ उत्पन्न हुई, जिनके नाम सुरूपा, हंसकोला, भद्रा तथा कामदुधा थे । तिनमे सुरूपा और कामदुधा ने दो पुत्रो को उत्पन्न किया ।७१-७२ हंसकीला ने कुछ मनुष्यों और महिष आदि को उत्पन्न किया, भद्रा के गर्भ से महाभाग्यशाली सुविख्यात अश्वों के पुत्र गन्धर्व उत्पन्न हुए । जो मन के समान द्रुतगामी, आकाश मे भी चलने वाले उच्चैःश्रवा प्रभृति श्वेत, शोण, पिशङ्ग, सांरंग, हरित,