पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५९६

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षट्षष्टितमोsध्याय: ५७५ उच्चैःश्रवास्तदा जाताः खेचरास्ते मनोजवाः । श्वेताः शोणाः पिशङ्गाश्च सारङ्गा हरितार्जुनाः ॥ रुद्रा देवोपदाह्यास्ते गन्धर्वयोनयो हयाः ॥७४ ॥७५ ॥७६ भूयो जज्ञे सुरभ्यास्तु श्रीमांश्चन्द्राभसुप्रभः । *वृषो दक्ष इति ख्यातः कण्ठेमणिदलप्रभः स्रग्वी ककुझी द्युतिमानमृतालयसंभवः । सुरभ्यनुमते दत्तो ध्वजो माहेश्वरस्तु सः इत्येते कश्यपसुता रुद्रादित्याः प्रकीर्तिताः । धर्मपुत्राः स्मृताः साध्या विश्वे च वसवस्तथा अरिष्टनेमिपत्नीनामपत्यानीह षोडश | बहुपुत्रस्य विदुषश्चतस्रो विद्युतः स्मृताः || प्रत्यङ्गिरसजाः श्रेष्ठा ऋचो ब्रह्माषिसत्कृताः ॥७७ कृशाश्वस्य तु देवर्षेर्देवप्रहरणाः स्मृताः । एते युगसहस्त्रान्ते जायन्ते पुनरेव हि सर्वे देवगणा विप्रास्त्र स्त्रशत्तु च्छन्दजाः । एतेषामपि देवानां निरोधोत्पत्तिरुच्यते यथा सूर्यस्य लोकेऽस्त्रिदयास्तमयावुभौ । एते देवनिकायास्ते संभवन्ति युगे युगे ऋषय ऊचु: साध्याश्र्व वसवो विश्वे रुद्रादित्यास्तथैव च । आभिजात्या प्रभावैश्च कर्मभिश्चैव विश्रुताः ॥७८ ॥७६ ||८० ॥८१ ॥८२ अर्जुन एवं रुद्र वर्ण के थे । ये हय गन्धर्व योनि में उत्पन्न हुए और देवताओं के वाहन का कार्य सम्पन्न किया। तदनन्तर सुरभी के गर्भ से श्रीमान्, चन्द्रमा की कान्ति के समान निर्मल कण्ठ में नीलमणि के बने हुए शुभ पत्र की शोभा से समन्वित, दक्ष नाम का एक वृषभ उत्पन्न हुआ, जो सुन्दर माला से सुशोभित, बहुत बड़े डिल्लों वाला, परम कान्तिमान् था | अमृत के आगार से समुत्पन्न वह वृषभ सुरभी की अनुमति से महादेव के वाहन पद पर प्रतिष्ठित हुआ १७३-७६। कश्यप के पुत्रों का वर्णन कर चुका, आदित्य और रुद्र गणों का परिचय दे चुका, ये साध्यगण, विश्वेदेव गण तथा वसु गण - सभी धर्म के पुत्र कहे गये है | अरिष्टनेमि की स्त्रियो की सोलह संततियाँ उत्पन्न हुई । विद्वान् बहुपुत्र को चार सन्ततियाँ हुई । जो विद्युत् नाम से स्मरण की जाती है। ब्रह्मषियो द्वारा सत्कार पानेवाली श्रेष्ठ ऋचाएँ प्रत्यगिरसजात है । देवर्षि कृशाश्व के पुत्रगण देवप्रहरण के नाम से स्मण किये गये हैं। वे प्रति एक सहस्र युग के व्यतीत होने पर पुन. उत्पन्न होते हैं । विप्रवृन्द ! ये तैंतीस गणो में विभक्त देवगण छन्दोजात माने गये है इन देवताओं की भी उत्पत्ति एवं विनाश कहा जाता है । जिस प्रकार लोक में प्रतिदिन सूर्य का उदय एवं अस्त होता है उसी प्रकार ये देवगण भी प्रत्येक युगो मे उत्पन्न होते है |७७-८१ । ऋषियों ने कहा—साध्य, वसु, विश्व, रुद्र और आदित्य ये सब देवगण किस प्रभाव एवं कर्म के

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