पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५९४

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षट्षष्टितमोऽध्यायः अदितिदितिर्दनुः काला अरिष्टा सुरसा तथा । सुरभिविनता चैव ताम्रा क्रोधवशा इरा || कद्रुर्मुनिश्च धर्मज्ञः प्रजास्तासां निवोधत चारिष्णवेऽन्तरेऽतीते ये द्वादश पुरोगमा: । वैकुण्ठा नाम ते साध्या वभूवुश्चाक्षुवेऽन्तरे उपस्थितेऽन्तरे ह्यस्मिन्पुनर्वैवस्वतस्य | आराधिता ह्यदित्या ते समेत्याऽऽहुः परस्परम् एतामेव महाभागामदिति संप्रविश्य वै । वैवस्वतेऽन्तरे ह्यस्मिन्योगादर्धेन तेजसः गच्छामः पुत्रतामस्यास्तन्नः श्रेयो भविष्यति । अदित्यास्तु प्रसूतानामादित्यत्वं भविष्यति एवमुक्त्वा तु ते सर्वे चाक्षुषस्यान्तरे मनोः । जज्ञिरे द्वादशाऽऽदित्या मारीचात्कश्यपात्पुनः शतक्रतुश्च विष्णुश्च जज्ञाते पुनरेव हि । वैवस्वतेऽन्तरे ह्यस्मिन्नरनारायणौ सुरौ लेषामपि हि देवानां निधनोत्पत्तिरुच्यते । यथा सूर्यस्य लोकोऽस्मिन्नुदयास्तमयावुभौ ॥ प्रजापतेश्च विष्णोश्च भवस्य च महात्मनः श्रेष्ठानुश्रविके यस्माच्छक्ताः शब्दादिलक्षणे । अष्टात्मकेऽणिमाद्ये च तस्माले जज्ञिरे सुराः इत्येष विषये रागः संभृत्याः कारणं स्मृतम् | ब्रह्मशापेन संभूता जयाः स्वायंभुवे जिताः ५७३ ॥५५ ।।५६ ॥५७ ।।५८] ॥५६ ॥६० ॥६१ ॥६२ ॥६३ ॥६४ थीं ।५३-५४। उनके नाम अदिति, दिति, दनु काला, अरिष्टा सुरसा, सुरभि, बिनता ताम्ना, क्रोधवशा, इरा दू और मुनि । इन्हें धर्मज्ञ कश्यप ने ग्रहण किया था इनकी सन्ततियों का विवरण सुनिये । चारिष्णव मन्वन्तर में जो पुरोगामी वैकुण्ठ नामक देवगण थे वे चाक्षुष मन्वन्तर में साध्य नाम से विख्यात हुए |१५-५६॥ चैवस्वत मन्वन्तर में वे देवगण अदिति द्वारा अति आगधित हुए जिससे एकत्र होकर उन्होंने आपस में यह परामर्श किया कि वैवस्वत मन्वन्तर में हम लोग योगाभ्यास के बल से इस अदिति के गर्भ मे अपने अर्ध तेजोवल से संयुक्त हो प्रविष्ट होकर पुत्र रूप में उत्पन्न होंगे, जिससे हम लोगों का कल्याण होगा। अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण हम लोग आदित्य नाम से प्रख्यात होगे १५७ ५६। इस प्रकार परस्पर परामर्श निश्चित कर वे देवगण पुनः चाक्षुप मन्वन्तर में मरीचि पुत्र कश्यप के संयोग से बारह आदित्य गणों के रूप में प्रादुर्भूत हुए | शतऋतु इन्द्र और विष्णु - ये दो देवश्रेष्ठ इस वैवस्वत मन्वन्तर में नर नारायण के रूप में उत्पन्न हुए। इस प्रकार उन देवताओं का भी जन्म मरण कहा जाता है। जैसे इस लोक मे सूर्य का उदय और अस्त होता है उसी प्रकार प्रजापति ब्रह्मा, विष्णु एवं महात्मा शंकर का आविभाव एक तिरोभाव होता है। शब्दादि प्रधानविषय समूहों मे एवं अणिमा आदि अष्ट प्रकार की ऐश्वर्यमयी विभूतियों में समर्थ देवगण इसीलिये जन्मधारण करते है | विषयो मे अनुराग का रखना ही सम्भूति (जन्म का कारण माना गया है ।६०-६४। स्वायम्भुव मन्वन्तर में ब्रह्मशाप के कारण जय नामक देवगण जित नाम से