पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५९३

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५७२ वायुपुराणम् सर्वग्रहाणां त्रीण्येव स्थानानि विहितानि च । दक्षिणोत्तरमध्यानि तानि विद्याद्ययाक्रमम् स्थानं जारद्गवं मध्ये तथैरावतभुत्तरम् | वैश्वानरं दक्षिणतो निदिष्टमिह तत्त्वतः अश्विनी कृत्तिका याम्या नागवीथिरिति स्मृता । पुष्योऽश्लेषापुनर्वसू वोथिरैरावती मता ॥ तिलस्तु वीथयो होता उत्तरो मार्ग उच्यते ||४८ ॥४६ ॥५१ पूर्वोत्तरे फाल्गुन्यौ च मधा चैवार्यमी स्मृता । हस्तचित्रे तथा स्वाती गोदीथोत्यभिशविता ज्येष्ठा विशाखाअनुराधा वीथि जारद्गवी स्मृता । एतास्तु वोथयस्तित्रो मध्यमो मार्ग उच्यते ॥५ मूलं चाऽऽपाढे द्वे चापि अजवोथ्यभिशव्दिपा । श्रवणं च धनिष्ठा च गार्गी शतभिषक्तया वैश्वानरी भाद्रपदे रेवती चैव फीतित्ता | स्मृता वोथ्यस्तु तिस्रस्ता मार्गो व दक्षिणो युधः सप्तविंशत्तु याः कन्या दक्षः सोमाय ता ददौ । सर्वा नक्षत्रनाम्भ्यस्ता ज्योतिषे चैव कीर्तिताः ॥ तासामपत्यान्यभवन्दीप्तान्यमिततेजसा ॥५२ यास्तु शेषास्तदा कन्याः प्रतिजग्राह कश्यपः । चतुर्दश महाभागाः सर्वास्ता लोकमातरः ॥४६ 1180 ॥५३ ॥५४ के मापक मात्र हैं, और ये देवता रूप में स्मरण किये गये है।४३-४५॥ सभी यहीं के तीन स्थान माने गये है, दक्षिण, उत्तर और मध्य - उन्हे क्रमानुसार इस प्रकार जानिये | मध्य मार्ग मे जारद्भव नामक स्थान है, उत्तर में ऐरावत नामक स्थान है, इसी प्रकार दक्षिण मे घंटवानर नामक स्थान को सत्ता निश्चित को की गई है। अश्विनी, भरणी और कृत्तिका – ये तीन नागवीथी के नाम से स्मरण किये गये है। पुनर्वसु, पुण्य और श्लेपा- ये ऐरावती वीथी माने गये है। ये तीन वीथियाँ है, जिनका उत्तर मार्ग कहा जाता है । ४६-४८। मघा, पूर्वंफाल्गुनी इनकी आर्यमी बोथी है, हस्त, चित्रा और स्वाती की गोवीथो कही गई है। विशाखा, ज्येष्ठा और अनुराधा की जारद्गवी वोथी है— इन तीन वोथियो का मध्यम मार्ग कहा गया है।४६-५०१ मूल पूर्वाषाढ और उत्तराषाढ की अजवीथी संज्ञा दी गई है, श्रवण, घनिष्ठा और गतभिषु को गार्गी वीथि है। पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद गोर रेवती की वैश्वानरी वीथो कही गई है। इन तीन वीथियों का पण्डितो ने दक्षिण मार्गं बतलाया है | ५१-५२। ये सत्ताईस जो दक्ष की कन्याएँ थी उन्हें दक्ष ने चन्द्रमा को समर्पत किया । चे सभो नक्षत्र नामवाली एवं ज्योतिष शास्त्र मे सुप्रसिद्धि प्राप्त करने वाली है। इन देक्ष कन्याओं में अमित तेजस्वी सन्ततियाँ उत्पन्न हुईं | इन नक्षत्र संज्ञक कन्याओं के अतिरिक्त जो परम भाग्य - शालिनी चौदह कन्याएँ दक्ष की शेष बची उन्हे कश्यप ने अङ्गीकार किया, मव की सन लोकमाता १. ऊपर दो वोथियो का परिचय दिया गया है । परन्तु लिखते तीन हैं, इससे मालूम होता है कि रोहिणी, मृगशिरा और आर्द्रा ~~ इन तीन नक्षत्रों की एक और वीथी है ।