पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५९२

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षट्षष्टितमोऽध्यायः ॥४० पृथिवीविषयं सर्वमरुन्धत्यां व्यजायत । एष सर्गः समाख्यातो विद्वान्धर्मस्य शाश्वतः मुहूर्ताश्चैव तिथ्यश्च पतिभिः सह सुव्रताः । नामतः संप्रवक्ष्यामि ब्रुवतो मे निबोधत अहोरात्रविभागश्च नक्षत्राणि समासतः | मुहूर्ताः सर्वनक्षत्रा अहोरात्रविदस्तथा अहोरात्रकलानां तु षट्शतीत्यधिका स्मृता । रवेर्गतिविशेषेण सर्वेषु ऋतुमिच्छतः ततो वेदविदश्चैतां तिथिमिच्छन्ति पर्वसु । अविशेषेषु कालेषु योज्यः स पितृदानतः रौद्रः सार्वस्तथा मैत्रः पिण्डयवासव एव च । आप्योऽथ वैश्वदेवश्च ब्राह्मो मध्याह्न संश्रिताः प्राजापत्यस्तथा ऐन्द्रस्तथेन्द्रो निर्ऋतिस्तथा । वारुणश्च तथार्ग्यम्णो भागाश्चापि दिनाश्रिताः एते दिनमुहूर्ताच दिवाकरविनिर्मिताः । शंकुच्छायाविशेषेण वेदितव्याः प्रमाणतः अजास्तथाऽहिर्बुध्नश्च पूषा हि यमदेवताः | आग्नेयश्चापि विज्ञेयः प्राजापत्यस्तथैव च ब्रह्मसौम्यस्तथाऽऽदित्यो बार्हस्पत्योऽथ वैष्णवः | सावित्रोऽथ तथा त्वष्ट्रो वायव्यश्चेति संग्रहः ॥४४ एकरात्रिमुहूर्ताः स्युः क्रमोक्ता दश पञ्च च । इन्दोर्गत्युदया ज्ञेया नालिकाः पादिकास्तथा ॥ कालावस्थास्त्विमास्त्वेते मुहूर्ता देवताः स्मृताः ॥४१ ॥४२ ॥४३ ५७१ ॥३५ ॥३६ ॥३७ ॥३८ ॥३६ ॥४५ हुई | ३३-३४। इनके अतिरिक्त पृथ्वी के अन्यान्य जीवगण अरुन्धती से उत्पन्न हुए। परमविद्वाम् धर्म की सृष्टि के इस सनातन क्रम को मैं भली-भांति कह चुका | अब इसके उपरान्त सभी प्रकार के मुहूर्तो, शुभव्रत की निधियों एवं उनके स्वामियों का नामोल्लेखपूर्वक वणन कर रहा हूँ, सुनिये |३५-३६। उसी के प्रसंग में दिन और रात के विभाग, सभी नक्षत्रों के विस्तार एवं उनको गति एवं दिन रात मे आनेवाले मुहूतं आदि का भी संक्षेप में वर्णन कर रहा हूँ । एक दिन और रात के भीतर छः सौ से अधिक कलाये मानी गई है । सूर्य की गति की विशेषता के आधार पर ऋतुओ का प्रार्दुभाव होता है, और उन्ही ऋतुओं में सभी प्रकार के मुहूर्तो को स्थिति है । वेदों के तत्त्वों के जानवाले उन्ही मूर्ती एवं पर्वो के आधार पर तिथियों एवं नक्षत्रों की कल्पना करते है एवं तिथि आदि के भेद के अनुसार विभिन्न विभिन्न कालों में पितृदान आदि की व्यवस्था करते है, रोद्र, सावं, मैत्र, पिण्ड्य, वासव, आप्य, वैश्वदेव, ब्राह्म, मध्याह्न प्राजापत्य, ऐन्द्र, इन्द्र निऋति, वारुण, आयंग्ण एवं भाग - ये दिवस काल पर आश्रित रहनेवाले मुहूर्त है । ये ( दिवस कालीन मुहूर्त) सूर्य द्वारा निर्मित होते हैं । शंकु (कील ) आदि गाडकर उसकी छाया से इन सबों का प्रमाण देखा जा सकता है | ३७-४२ | अज, अहि, बुध्न, पूषा, यमदेवता, आग्नेय प्राजापत्य, ब्राह्म, सौम्य, आदित्य, वार्हस्पत्य, वैष्णव, सावित्र, त्वाष्ट्र और वायव्य ये पन्द्रह कम से एक रात्रि में वर्तमान रहनेवाले मुहूर्त है | चन्द्रमा की गति से इनका उदय एवं इनके अशों का ज्ञान होता है। ये मुहूर्त समय की विशेष अवस्था