पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५९०

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षट्षष्टितमोऽध्यायः चित्तिईयो नयश्चैव हंसो नारायणस्तथा । प्रभवोऽथ विभुश्चैव साध्या द्वादश जज्ञिरे स्वायंभुवेऽन्तरे पूर्वं ततः स्वारोचिषे पुनः । नामान्यासन्पुनस्तानि तुषितानां निबोधत प्राणोऽपानस्तथोदानः समानो व्यान एव च । चक्षुः श्रोत्रं तथा प्राणः स्पर्शो बुद्धिर्मनस्तथा प्राणापानावुदानश्च समानो व्यान एव च । नामान्येतानि पूर्वं नु तुषितानां स्मृतानि ह वसोस्तु वसवः पुत्राः साध्यानां मनुजाः स्मृताः । धरो ध्रुवश्च सोमश्च आपश्चैवानलोऽनिलः || प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवोऽष्टौ प्रकीर्तिताः धरस्य पुत्रो द्रविणो हुतहव्यवहस्तथा । ध्रुवपुत्रो भवो नाम्ना कालो लोकप्रकालनः सोमस्य भगवावर्चा बुधव ग्रहबोधनः । रोहिण्यां तौ समुत्पन्नौ त्रिषु लोकेषु विश्रुतौ धारोमिंकलिलाश्चैव त्रयश्चन्द्रमसः सुताः । आपस्य पुत्रो वैतण्डयः शमः शान्तस्यैव च ५६६ ॥१६ ॥१७ ॥१८ ॥१६ ।।२० ॥२१ ॥२२ ॥२३ हंस, नारायण, प्रभव तथा विभु - ये बारह देवगण साध्य नाम से उत्पन्न हुए थे |१३-१६। पूर्व कालीन स्वायम्भुव मन्वन्तर में तथा पुनः स्वारोचिष मन्वन्तर में वे ही देवगण जव तुपित नाम से विख्यात होते है उस समय के उनके नाम बतला रहा रहा हूँ, सुनिये | उनके नाम प्राण, अपान, उदान समान, व्यान, चक्षु, श्रोत्र, रसन' घ्राण, स्पर्श, बुद्धि और मन हैं । पूर्व काल में उन तुषितों के नाम प्राण, अपान उदान, समान और व्यान ही था ।१७-१९ | वसु के धर्म के संयोग से वसुगण उत्पन्न हुए जो साध्यो के अनुज रूप मे स्मरण किये जाते है । धर, ध्रुव, सोम, आप, अनल, अनिल, प्रत्यूष और प्रभास - ये माठ वसुगण के नाम से विख्यात है | २० | घर के द्रविण और हुतहव्यवाह नामक पुत्र हुए | ध्रुव के पुत्र का नाम भव हुआ जो समस्त लोक के संहारको काल नाम से प्रसिद्ध हुए। सौम के पुत्र परमऐश्वर्यशाली वर्चा और बुध हुए, जिनमे बुध नव ग्रहों में परिगणित हुए । सोम के ये दोनो त्रैलोक्य विख्यात पुत्र रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । इन दोनों के अतिरिक्त धारा, उर्मि और कलिल (?) नामक तीन अन्य पुत्र भी चन्द्रमा के थे। आपके पुत्र ‘वैतण्ड्य, शम और शान्त थे । अग्नि के कुमार नामक पुत्र का जन्म सरपतो वे समूह में १. आनन्दाश्रम की प्रति में 'चक्षुः श्रोत्रं तथा प्राण.' यह पाठ अशुद्ध प्रतीत होता है क्योकि 'प्राणोंऽपान- स्तथोदान : ' में 'प्राण' की गणना हो जाती है । अतएव 'चक्षुः श्रोत्रं रसो घ्राणः' यह पाठ शुद्ध हे जो बंगला प्रति मे मिलता है । आनन्दाश्रम के पाठ से देवताओं की संख्या भी ग्यारह ही होती है, जब कि बारह होनी चाहिये । २ आनन्दाश्रम की प्रति मे 'मनुज' यह पाठ अति नामक है । फा०-७२