पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५८५

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५६४ वायुपुराणम् तांस्तु दृष्ट्वा महातेजाः स विवर्धयिषूप्रजाः । देवर्षिः प्रियसंवादो नारदो ब्रह्मणः सुतः ॥ नाशाय वचनं तेषां शापायैवाऽऽत्मनोऽब्रवीत् ॥ यः स वै प्रोच्यते विप्रः कश्यपस्येति कृत्रिमः | दक्षशापभयाद्भीतो ब्रह्मर्षिस्तेन कर्मणा यः कश्यपसुतस्याथ परमेष्ठी व्यजायत । मानसः कश्यपस्येह दक्षशापभयात्पुनः तस्मात्स कश्यपस्याथ द्वितीयं मानसोऽभवत् । स हि पूर्वसमुत्पन्नो नारदः परमेष्ठितः येन दक्षस्य पुत्रास्ते हर्यश्वा इति विश्रुताः । निन्दार्थं नाशिताः सर्वे विनष्टाश्च न संशयः तस्योद्यतस्तदा दक्षः क्रुद्धो नाशाय वै प्रभुः । ब्रह्मर्षोन्वं पुरस्कृत्य याचितः परमेष्ठिना ततोऽभिसंधितं चक्रे दक्षस्तु परमेष्ठिना | कन्यायां नारदो मह्यं तव पुत्रो भव भवत्विति ततो दक्षः सुतां प्रादात्प्रियां वै परमेष्ठिने । तस्मात्स नारदो जज्ञे भूयः शान्तो भयादृषिः तदुपश्रुत्य प्रियास्ते जातकौतूहलाः पुनः । अपृच्छन्वदता श्रेष्ठं सूतं तत्त्वार्थदशनम् ऋषय ऊचु: कथं विनाशिताः पुत्रा नारदेन महात्मना । प्रजापतिसुतास्ते वै प्रजाः प्राचेतसात्मजाः ।।१३५ ॥१३६ ॥१३७ ॥१३८ ॥१३६ ॥१४० ॥१४१ ॥ १४२ ॥१४३ ॥१४४ नारद ने उनके विनाशार्थ एवं अपने शाप के लिए उनसे दुष्ट परामर्श पूर्ण बातें कीं |१३०-१३५१ विप्रवर्ण्य नारदजी, जिस कारण कश्यप के पुत्र कहे जाते हैं, उसका मूल कारण उनको यही करतूत है । उस परामर्श रूप निन्द्य कार्य के कारण दक्ष के शाप से भयभीत होकर ब्रह्मनिष्ठ ब्रह्मर्षि नारद कश्यप सुत के रूप मे अवतीर्ण हुए। फिर दक्ष-गाप के भय से कश्यप के यहाँ मानसपुत्र रूप में अवतीर्ण होना उनका द्वितीय जन्म था । ये नारदजी सर्वप्रथम परमेष्ठी ब्रह्मा के पुत्र रूप में उत्पन्न हुए थे। प्राचीन काल मे दक्ष प्रजापति के हर्यश्व नाम से विख्यात समस्त पुत्रों को निन्दा के लिये उन्होने नष्ट किया था, इसमे सन्देह नही ११३६ १३९। अपने पुत्रो का विनाश देख नारद का नाश करने के लिए जब प्रभु दक्ष उद्यत हुए तो समस्त ब्रह्मर्षियो को आगे करके परमेष्ठी पितामह ने दक्ष से इनके लिए याचना की । उस समय दक्ष के साथ पितामह की यह शर्त तय हुई कि ‘मेरे उद्देश्य से दी गई कन्या मे नारद तुम्हारे पुत्र रूप मे उत्पन्न होगे । तब दक्ष ने अपनी प्रिय कन्या परमेष्ठी को दी, जिसके गर्भ से पुनः भयभीत नारदजी शान्त रूप मे उत्पन्न हुए | ऐसी ऋपियों को बड़ा कौतूहल हुआ । उन्होंने तत्त्वार्थदर्शी, व्याख्याताओ में सर्वश्रेष्ठ सूत से पूछा | १४०१४३ सुन उन ऋऋषियों ने कहा- सूतजी ! महात्मा नारद ने किस लिये प्राचेतस दक्ष प्रजापति के उन पुत्रों एवं प्रजाओं का विनाश किया ?” ऋषियों की ऐसी जिज्ञासा भरी कल्याणपूर्ण बातें सुन सूत ने उनसे सर्वगुण