पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५८४

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पञ्चषष्टितमोऽध्यायः तथैवान्यानि मुदितो गतिमन्ति ध्रुवाणि च । मानसान्येव भूतानि सिसृक्षुविविधाः प्रजाः ऋऋषीन्देवान्सगन्धर्वान्मनुष्योरगराक्षसान् | यक्षभूतपिशाचांश्च वयःपशुमृगांस्तथा यदाऽस्य मनसा सृष्टा न व्यवर्धन्त ताः प्रजाः । अपर्ध्याता भगवता महादेवेन धीमता मैथुनेन च भावेन सिसृविविधाः प्रजाः | असिक्नी चावहत्पत्नीं वीरणस्य प्रजापतेः सुतां सुमहता युक्तां तपसा लोकधारिणीम् । यया धृतमिदं सर्वे जगत्स्थावरजङ्गमम् अत्राप्युदाहरन्तीमौ श्लोकौ प्राचेतसे प्रति । दक्षस्योद्वहतो भार्यामसिवनीं वीरणीं पराम् कूपानां नियुतं दक्षः सर्पिणां साभिमानिनाम् । नदीगिरीषु सर्पस्ताः पृष्ठतोऽनुययौ प्रभुः तं दृष्ट्वा ऋषिभिः प्रोक्तं प्रतिष्ठास्यति वै प्रजाः । प्रथमाऽत्र द्वितीया तु दक्षस्येह प्रजापतेः तथाऽगच्छद्यथाकालं तूपानां नियुते तु सः | असिक्नों वैरिणीं यत्र दक्षः प्राचेतसोऽवहत् अथ पुत्रसहस्रं स वैरिण्याममितौजसा । असिक्त्यां जनयामास दक्षः प्राचेतसः प्रभुः ५६३ ॥१२५ ॥१२६ ॥१२७ ॥१२८ ॥१२६ ॥१३० ॥१३१ ॥१३२ ॥१३३ ॥१३४ सौन्दर्य एवं तेज में अपने ही समान परम ऐश्वर्यशाली, विभूतियों रूप में विभक्त किया। इस प्रकार उस समय अति प्रमुदित होकर इन सत्रो के अतिरिक्त विविध प्रजाओं की सृष्टि की अभिलाषा में अन्यान्य चराचर जीव जन्तुओ को मानसिक संकल्पों द्वारा उत्पन्न कर ऋपियों, देवताओं, गन्धर्वो, मनुष्यो, सर्पो, राक्षसों, यक्षो, भूतों, पिशाचों, पक्षियों, पशुओं तथा मृगादिकों को भी उत्पन्न किया । १२३-१२६। किन्तु मानसिक सकल्प द्वारा सृष्टिकर्म करने पर जब प्रजाओं को यथेष्ट वृद्धि नही हुई तब परम बुद्धिमान भगवान् महादेव के बुरा भला कहन पर सम्भोग कर्म द्वारा विविध प्रजाओ की सृष्टि का विचार किया और इसके लिए वीरण नामक प्रजापति की पुत्री असिन्नी की पत्नी के रूप में अंगीकार किया, वह असिषनी अपनी घोर तपस्या व वल से समस्त लोक का पालन करनेवाली तथा समस्त स्थावर जगात्मक जगन्मण्डल को धारण करनेवाली थी ।२२७-१२९ । इस विषय में लोग प्राचेतस दक्ष के लिये इन दो श्लोको (छन्दो) को कहा करते है, जिनका आरोप इस प्रकार है । परम श्रेष्ठ वीरण की पुत्री असिवनी को उदाहित करते (व्याहते ) समय दक्ष ने दस लक्ष गमनशील अभिमानी कूपो का निर्माण किया, जो नदियों और पर्वतों मे लीन हुए, ऐश्वर्यशाली दक्ष ने उन सबों का अनुसरण किया। दक्ष को इस प्रकार परम ऐश्वर्य सम्पन्न देखकर ऋषियों ने कहा कि इसके द्वारा प्रजाओ की प्रतिष्ठा होगी। इस प्रकार प्रजापति दक्ष की प्रथम सृष्टि सन्तति रूप मे तथा द्वितीय प्रजा में परिणत हुई । इस प्रकार दस लक्ष कूपो का निर्माण कर यथासमय वीरण पुत्री असिवनी को दक्ष ने वरण किया। अमित तंजस्वी प्राचेतस दक्ष ने उस वीरण पुत्री असिवनी मे एक सहस्र पुत्रों को उत्पन्न किया । प्रजाओं की वृद्धि की इच्छा रखनेवाले उन दक्ष पुत्रो को देखकर ब्रह्मा के पुत्र कलहप्रिय देवर्षि