पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५६८

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चतुःषष्टितमोऽध्यायः ध्यायता पुत्रकामेण ब्रह्मणाग्रे विभाषितम् । भूरिति व्याहृतं पूर्व भूर्लोकोऽयमभूत्तदा भूसत्तायां स्मृती धातुस्तथाऽसौ लोकदर्शने | भूतत्वाद्दर्शनत्वाच्च भूर्लोकोऽयमभूत्ततः ॥ अतोऽयं प्रथमो लोको भूतत्वाद्सद्विजैः स्मृतः ॥१२ ॥१३ ॥१४ ॥१५ भूतेऽस्मिन्भवदित्युक्तं द्वितीयं ब्रह्मणा पुनः | भवत्युत्पद्यमानेन कालशब्दोऽयसुच्यते भवनातु भुवर्लोको निरुक्तज्ञैनिरुच्यते । अन्तरिक्षं भुवस्तस्माद्वितीयो लोक उच्यते उत्पन्ने तु सुवर्लोके तृतीयं ब्रह्मणा पुनः । सव्येति व्याहृतं यस्माद्भव्यो लोकस्तदाऽभवत् अनागते भव्य इति शब्द एष विभाव्यते । तस्माद्भच्यो चसौ लोको नामतस्तु दिवं स्मृतम् स्वरित्युक्तं तृतीयोऽन्यो भाव्यो लोकस्तदाऽभवत् । भाव्य इत्येष धातुर्वै भाव्ये काले विभाव्यते ॥ १७ भूरितीयं स्मृता भूमिरन्तरिक्षं भवं स्मृतम् | दिव्यं स्मृतं तथा भाव्यं त्रैलोक्यस्यैष संग्रहः त्रैलोक्ययुक्तैर्व्याहारैस्तिलो व्याहृतयोऽभवन् । नाथ इत्येष धातुर्वै धातुज्ञैः पालने स्मृतः ॥१६ ॥१८ ॥१६ ५४७ ॥११ किया गया है । स्वर्गलोक भव्य नाम से स्मरण किया गया है, उनके लक्षणों को बतला रहा हूँ । पुत्र उत्पन्न करने की इच्छा से ब्रह्मा ने ध्यानावस्थित होकर सर्वप्रथम 'भू: ' इस अक्षर का उच्चारण किया, उसी समय यह भूलोक हुआ । भू धातु का सत्ता अर्थात् विद्यमान रहने अर्थ में प्रयोग होता है तथा लोक दर्शन, ( लोगो के देखने योग्य ) अर्थ में भी उसकी प्रसिद्धि है, विद्यमान रहने एवं लोगों के दृष्टिगोचर होने के कारण यह भूमि भूलोक नाम से प्रसिद्ध हुई । यही कारण है कि ब्राह्मणो ने इसे विद्यमान होने के कारण प्रथम लोक माना है |१०-१२॥ इस भूलोक के आविर्भाव हो जाने पर ब्रह्मा ने फिर 'भवत्' ऐसा दूसरा उच्चारण किया । उत्पन्न (उच्चारित) होने वाले इस भवत् शब्द के द्वारा वर्तमान काल में होने वाले का अवगम (बोध) होता है, निरुक्त के जानने वाले लोग भवन ( होने वाले ) इस शब्द से भुवर्लोक की निरुक्ति करते हैं । अतः अन्तरिक्ष द्वितीय भुवर्लोक के नाम से कहा जाता है । १३-१४ भुवर्लोक के आविर्भूत हो जाने पर ब्रह्मा ने 'भव्य' इस तृतीय शब्द का उच्चारण किया, जिससे भव्यलोक का अविर्भाव हुआ । यह भव्य शब्द भविष्यत्काल के अर्थ में आता है, इसी से यह लोक भव्य लोक हुआ. नाम से यह दिव (स्वर्ग) लोक से स्मरण किया जाता है। तदन- न्तर ब्रह्मा ने अन्य तीसरे 'स्वः' इस शब्द का उच्चारण किया, जिससे भाव्य लोक का प्रादुर्भाव हुआ | भाव्य इस धातु का भविष्यत्काल के अर्थ में प्रयोग होता है । यह भूमि भूलोक के अर्थ मे, अन्तरिक्ष भुवलोक के अर्थ में तथा स्वर्गलोक भाव्य लांक के अर्थ मे कहे गये है — यही तीनो लोकों के समूह है ।१५-१८॥ इन्हीं तीनों लोकों के संयुक्त उच्चारणों से तीनों (भू: भुव: स्व:) महाव्याहृतियाँ हुई | धातु के जानने वाले लोग नाथ धातु १. प्रकृति प्रत्यय मादि अवयवो के अर्थ को निचोड़ कर एक अर्थ को प्रतिपादन करने वाला वेद का एक अङ्ग अथवा व्याकरण |