पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५६९

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वायुपुराणम् यस्माद्भुतस्य लोकस्य अव्यस्य भवतस्तदा । लोकत्रयस्य नाथास्ते तस्मादिन्द्रा द्विजैः स्मृताः प्रधानभूता देवेन्द्रा गुणभूतास्तथैव च । मन्वन्तरेषु ये देवा यज्ञभाजो भवन्ति हि यक्षगन्धर्वरक्षांसि पिशाचोरगदानवाः | महिमानः स्मृता ह्यते देवेन्द्राणां तु सर्वशः देवेन्द्रा गुरवो नाथा राजानः पितरो हि ते । रक्षन्तीमाः प्रजाः सर्वा धर्मेणेह सुरोत्तमाः इत्येतल्लक्षणं प्रोक्तं देवेन्द्राणां समासतः । सप्तर्षीन्संप्रवक्ष्यामि सांप्रतं ये दिवि स्थिताः गाधिज: कौशिको धीमान्विश्वामित्रो महातपः । भार्गवो जमदग्निश्च ऊरुपुत्रः प्रतापवान् बृहस्पतिसुतश्चापि भारद्वाजो महातपाः । औतथ्यो गौतमो विद्वाञ्शरद्वान्नाम धार्मिकः स्वायंभुवोऽत्रिर्भगवान्ब्रह्मकोशस्तु पश्चमः । षष्ठो वशिष्ठपुत्रस्तु वसुमांल्लोकविश्रुतः वत्सारः काश्यपश्चैव सप्तैते साधुसंभताः । एते सप्तर्षयः सिद्धा वर्तन्ते सांप्रतेऽन्तरे इक्ष्वाकुश्चैव नाभागो धृष्टः शर्यातिरेव च । नरिष्यन्तश्च विख्यातो नाम उद्विष्ट एव च ५४५ ।।२० ॥२१ ॥२२ ॥२३ ॥२४ ॥२५ ॥२६ ।।२७ ॥२८ ॥२६ को पालन करने अर्थ में स्मरण करते हैं । यतः वे इन्द्रगण भूतलोक, भव्य लोक एवं भवत् लोक - इन तीनों लोकों के पालक है अतः ब्राह्मण गण उन्हें भूत भव्य और भवत् तीनो का नाथ कहते है । प्रत्येक मन्वन्तर जो देवगण यज्ञ भाग के भोक्ता होते हैं, उन सबों में ये इन्द्र प्रधान तथा गुणों मे भी सर्वश्रेष्ठ होते है । सभी यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, पिशाच, सर्प तथा दानव गण इन्ही देवेन्द्रों की महिमा स्वरूप कहे जाते हैं । वे इन्द्र देवताओं के स्वामी, गुरु, नाथ, राजा एवं पितर- सब कुछ है, वे सुरोत्तम धर्मपूर्वक सभी प्रजाओं का पालन करते हैं 1१६-२३। देवेन्द्रो का यह संक्षिप्त लक्षण मैं बतला चुका अव उन सातों ऋषियो का लक्षण बतला रहा हूँ, जो सम्प्रति स्वर्गलोक में अवस्थित हैं। इन सातो मे परम बुद्धिमान्, कुशिक गोत्रीय, गाधि के पुत्र विश्वामित्र महान् तपस्वी है | भृगु गोत्रीय प्रतापशाली उरु पुत्र जमदग्नि है | बृहस्पति के पुत्र परम तपस्वी भारद्वाज है, परम धार्मिक एवं उतथ्य के पुत्र गौतम शरद्वान है, स्वयम्भू ब्रह्मा के पुत्र ब्रह्मपरायण भगवान् अत्रि इन ऋषियों में पाँचवे ऋपि है, छठें वसिष्ठ के पुत्र लोक विख्यात वसुमान नामक ऋषि हैं, २४ - २७| सातवे कश्यप गोत्रीय वत्सार है— ये सत्पुरुषो द्वारा सम्माननीय इस वर्तमान वैवस्वत मन्वतर के सिद्ध सप्तर्षि हैं । इक्ष्वाकु, नाभाग, घृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, नाभ, उद्विष्ट, करुष, पृषध्र और वसुमान ये नव* वैवस्वत मनु के पुत्र कहे गये है ।

  • गणना से यहाँ पुत्रों की संख्या दस हो रही है । वास्तव में वैवस्वत के दस पुत्र थे, जैसा कि अन्य

पुराणों में वर्णित है । अतः यहाँ नव को जगह दस होना चाहिये | नवमः के स्थान पर 'दशमः' स्मृतः होना चाहिये ।