पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५५४

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द्विषष्टितमोऽध्यायः पृथोस्तवार्थं तौ तत्र तमाहूतौ सुरषिभिः | तावूचुर्मुनयः सर्वे स्तूयतासेष पार्थिवः ॥ कर्मैतदनुरूपं वा पात्रं स्तोत्रस्य चाप्ययम् तावचतुस्तदा सर्वास्तानृषीन्सुतमागधौ | आवां देवानृषींश्चैव प्रोणयावः स्वकर्मभिः न चास्य कर्म वै विद्वो न तथा लक्षणं यशः । स्तोत्रं येनास्य कुर्यावो राज्ञस्तेजस्विनो द्विजाः ऋषिभिस्ती नियुक्तौ तु भविष्यैः स्तूयतामिति । दानधर्मरतो नित्यं सत्यवाक्संजितेन्द्रियः ॥ ज्ञानशीलो वदान्यस्तु संग्रामेष्वपराजितः यानि कर्माणि कृतवान्पृथुश्चापि महाबलः । तानि शीलेन बद्धानि स्तुवद्भिः सूतभागधैः ततस्तवान्ते सुप्रीतः पृथुः प्रादात्मजेश्वरः । अनूपदेशं सुताय सागधान्मागधाय च तदा वै पृथिवीपालाः स्तूयन्ते तमागधैः | आशीर्वादैः प्रबोध्यन्ते सूतमागधबन्दिभिः तं दृष्ट्वा परनप्रीताः प्रजा ऊचुर्महर्षयः । एष वो वृत्तिदो वैन्यो भवत्विति नराधिपः ततो वैन्यं महाभागे प्रजाः समभिदुद्रुवुः । त्वं नो वृत्ति विधत्स्वेति महर्षेर्वचनात्तदा ॥ सोऽभिद्रुतः प्रजाभिस्तु प्रजाहितचिकीर्षया ५३३ ॥१४४ ॥१४५ ॥१४६ ॥१४७ ॥१४८ ॥१४६ ॥१५० ॥१५१ ॥१५२ कि राजा की स्तुति करो और इसके अनुरूप जो भी कार्य करने पड़े करो, यह तुम्हारी स्तुति करने के सर्वथा योग्य है । ऐसा कहने पर सूत और मागध ने वहाँ समुपस्थित सभी ऋषियों से कहा, हम दोनों अपने-अपने कार्यों से सभी देवताओं और ऋषियों को प्रसन्न रखेंगे; १९४१-१४५। द्विजगण ! किन्तु हम लोग महाराज के कार्यों को कुछ भी नहीं जानते, न इनके लक्षणों का ही हमें ज्ञान है, न उनके यश के बारे में ही हमको कुछ मालूम है, जिससे ऐसे तेजस्वी राजा की स्तुति कर सकूँ । ऋषियों ने उनसे कहा कि इसके द्वारा भविष्यत्काल में होनेवाले जो कार्यकलाप हैं, उनका गान करते हुए स्तुति करो | यह राजा नित्य दान तथा धर्म में रत रहनेवाला, सत्यवादो, जितेन्द्रय, ज्ञानशील, परम दाता तथा संग्राम भुमि में विजयी होनेवाला है । परम- बलवान् इस पृथु ने भूतकाल में जिन कामों को किया है वे सभी शील सदाचार से सम्बद्ध है, उन्ही का वर्णन करते हुए इसकी स्तुति करो। सूत और मागधों ने इस प्रकार राजा पृथु की स्तुति की । स्तुति करने के बाद प्रजेश्वर महाराज पृथु ने परम प्रसन्न होकर सूत के लिए अनूप (जलतटवर्ती प्रान्त) तथा मागधों को मगध प्रदेश दान किया । तभी से पृथ्वीपति राजाओं को ये सुत तथा मागधगण स्तुति किया करते हैं, और तभी से वे लोग सूतों, मागधों एवं वन्दियों के आर्शीवादों द्वारा प्रातः काल नींद से जगाये जाते हैं । १४६-१५०। राजा पृथु को देखकर परम प्रसन्न महर्षियो ने प्रजाओ से कहा यह पृथु तुम लोगों को वृत्ति देनेवाला है और यही नराधिप होगा। महर्षियों की ऐसी बाते सुन सारी प्रजाएँ उस महाभाग्यशाली वेनपुत्र पृथु की ओर दौड़ पड़ीं और कहने लगी कि महर्षियों के कथनानुसार तुम हम लोगों की जीविका का प्रबन्ध करो। प्रजाओं के