पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५५३

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वायुपुराणम् आपस्तस्तम्भिरे चास्य समुद्रमभियास्यतः । पर्वताश्च विशीर्यन्ते ध्वजभद्गश्व नाभवत् अकृष्टपच्या पृथिवो सिव्यन्त्यन्नानि चिन्तया | सर्वकामदुधा गावः पुटके पुटके मधु एतस्मिन्नेव काले च यने पैतामहे शुभे । सुतः सुत्यां समुत्पन्नः सौत्येऽहनि महामतिः ॥ तस्मिन्नेव महायज्ञे जज्ञे प्राज्ञोऽथ मागधः [* सामगेषु तु गायत्सु लग्भाण्डे वैश्वदेवके | सामगाने समुत्पन्नस्तरमान्मागध उच्यते ] ऐन्द्रेण हविषा चापि हविः पृत्तं वृहस्पतिः । जुहावेन्द्राय देवेन ततः गुतो व्यजायत प्रमादस्तत्र संजज्ञे प्रायश्चित्तं च कर्मसु । शिष्यहव्येन यत्पृक्तमभिभूतं गुरोर्हदिः ॥ अधरोत्तरचारेण जज्ञे तद्वर्णवैकृतम् ५३२ यच्च क्षत्रात्समभवद्ब्राह्मण्यं होनग्रोनितः । सूतः पूर्वेण साधर्म्यातुल्यधर्मः प्रकीर्तितः मध्यमो ह्यष सूतस्य धर्मः क्षत्रोपजीवनम् | रयतागाय चरितं जघन्यं च चिकित्सितम् ।।१३७ ||१३६ ॥१४० ॥१४१ ॥१४२ ॥१४३ अभियान (आक्रमण) करते समय जल समूह स्तम्भित हो जाते थे, पर्यंत समूह विषीर्ण हो जाते थे । कभी ध्वजाओं का भंग नही होता था । पृथ्वी दिना किसी कष्ट के हो केवल चिन्तनमात्र ने प्रचुर परिमाण मे अन्न उत्पन्न करती थी । गौएँ सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली थी, पत्रों के प्रत्येक पुटको में मधु मिलता था । ठीक इसी समय पितामह के पवित्र महायज्ञ का प्रारम्भ हुआ था जिसमे उसी दिन सूती के गर्भ से परम बुद्धिमान् सूत उत्पन्न हुए | उसी महायज्ञ मे बुद्धिमान मगव भी उत्पन्न हुए | जिस समय सामवेद का गायन हो रहा था उस समय असावधानी के कारण विश्वदेव के स्रुक और पात्र मे इन्द्र को ह्वि के साथ बृहस्पति को हवि मिल मिल गई, और देवताओं ने उस हचि को इन्द्र के लिए हवन किया जिससे सूत की उत्पत्ति हुई ।१३७-१४०। सामगान के अवसर पर उत्पन्न होने के कारण वे लोग मागध कहे गये । इस प्रकार की असावधानी से शिष्य की हवि के साथ गुरु की हवि मिल जाने के कारण वह तिरस्कृत हुई और नोच ऊँच के पारस्परिक संयोग से पापाचरण समझा गया, जिससे सूत और मागधों के वर्गों में विकार आ गया | होन योनि क्षत्रियों की हवि के साथ ब्राह्मण को हवि का यतः संयोग हुआ था गतः पूर्व (ब्राह्मण) जाति के साधर्म्य के कारण सूत उसी के तुल्य धर्मवाले कहे जाते है । सूत का मध्यम धर्म क्षत्रियों के समान जीविका अर्जन करना हुआ, रथ और हाथियों का परिचालन और ओषधि आदि निन्द्य कामों को भी वे करने लगे । देवताओ और ऋपियो ने राजाधिराज पृथु के लिए उन दोनों सूत और मागधो को बुलाया और उनसे कहा

  • धनुश्चिह्नान्तर्गत ग्रन्थ क. पुस्तके नास्ति ।