पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४५५

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४३६ अथ षट्पञ्चाशोऽध्यायः चितुवर्णनम् शशपयन उवाच अगात्कथममावास्यां मासि मासि दिवं नृपः। ऐडः पुरूरवाः सूत रूथं वाऽतर्पयतिपत्न् १ ॥२ स्वत उवाच तस्य चाहं प्रवक्ष्यामि प्रभावं शांशपायन । ऐडस्याऽऽदित्यसंयोगं सोमस्य च महात्मनः अपां सारमयस्येन्दोः पक्षयोः शुक्लकृष्णयोः । हामवृद्धं पितृमतः पक्षस्य च विनिर्णयः ॥३ सोमाच्चैवामृतप्राप्तिः पितृणां तर्पणं तथा। काव्याग्नेश्चाऽऽत्तसोमानां पितृणां चैव दर्शनम् ॥४ यथा पुरूरवाश्चैडस्तर्पयामास वै पितृन् । एतत्सर्वं प्रवक्ष्यामि पर्वाणि च यथाक्रमम् यदा तु चन्द्रसूर्यो तो नक्षत्रेण समागतो । अमावास्यां निवसत एकरात्रैकमण्डले ५ अध्याय ५६ पितरों का वर्णन शांशपायन ने कहा—सूतजी ! प्रत्येक मास की अमावास्या तिथि को इडा१ का पुत्र पुरूरवा किस प्रकार स्वर्ग को जाता था और किस प्रकार पितरों का तर्पण करता था ? ।१। सूत ने कहा—शांशपायन ! उस महात्मा इलापुत्र राजा पुरूरवा का प्रभाव आपको बतला रहा हूँ , चन्द्रमा का सूर्य के साथ संयोग, जल के सारभूत चन्द्रमा की शुक्ल और कृष्ण पक्ष में हास और वृद्धि पितरों के पक्ष का निर्णय, चन्द्रमा से अमृत की प्राप्ति, पितरों का तर्पण, कठ को वहन करने वाले आग्न और आत्तसोम पितरों का दर्शन इलापुत्र पुरूरवा ने पितरों का तर्पण किस प्रकार किया, इसका विवरण तथा पवों का वर्णन इन सब विषयो को क्रमानुसार बतला रहा हूँ ।२-५। जिस समय चन्द्रमा तथा सूर्य एक ही रात्रि तथा एक ही मण्डल में समान नक्षत्र पर होते है, उसे अमावास्या कहते हैं, प्रत्येक अमावास्या १. पुरूरवा इला का पुत्र था, संस्कृत में ड और ल में भेद नही माना जाता ।