पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४४३

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४२४ वायुपुराणम् ८४ १८५ ८८ श्रुत्वा वाक्यं ततो ब्रह्म प्रत्युवाचाम्बुजेक्षणः । भूतभव्यभवन्नाथ श्रूयतां कारणेश्वर सुरासुरैर्मथ्यमाने पयोधावम्बुजेक्षण । भगवन्मेघसंकाशं नीलजीमूतसंनिभम् प्रादुर्भूतं विषं घोरं संवर्ताग्निसमप्रभम् । कालमृत्युरिवोद्भूतं युगान्तादित्यवर्चसस् ८६ त्रैलोक्योत्सादसूर्याभं विस्फुरन्तं समन्ततः । अग्रे समुत्थितं तस्मिन्विषं कालानलप्रभम् ॥।८७ तं दृष्ट्वा तु वयं सर्वे भीताः संभ्रान्तचेतसः । तत्पियस्व महादेव लोकानां हितकाम्यया । भवानद्याह्यस्य भोक्ते व भवारचव वरः प्रभुः त्वामृतेऽन्यो महादेव विषं सोढं न विद्यते । नारित कशिपुनाञ्शक्तस्त्रैलोक्येषु च गीयते । एवं तस्य वचः श्रुत्वा ब्रह्मणः परमेष्ठिनः । बाढमित्येव तद्वययं प्रतिगृह्य वरानने ततोऽहं पातुमारठधो विषमन्तकसंनिभम् । पिबतो मे महाघोरं विषं सुरभयंकरम् ।। कण्ठः समभवत्तूर्ण कृष्णो मे वरणनि तं दृष्ट्वोत्पलपत्राभं कण्ठे सक्तमिवोरगम् । तक्षकं नागराजानं लेलिहानमिव स्थितम् ॥६१ अथोवाच महातेजा ब्रह्मा लोकपितामहः । शोभसे त्वं महादेव कण्ठेनानेन सुव्रत ततस्तस्य वचः श्रुत्वा मया गिरिवरात्मजे । पश्यतां देवसंघानां दैत्यानां च वरानने । ६३ ८६ R० ६२ तरह की बात सुनकर कमल नयन ब्रह्मा ने उत्तर दिया--नाथ ! चराचर के कल्याणक्त कारण रूप ईश्वर ! सुनिये--देवदानव मिलकर क्षीरसागर का मन्यन कर रहे थे कि नीले मेघ की तरह भयङ्कर विष उत्पन्न हुआ । उसकी तान्ति चारों ओर छिटक रही थी, संवर्तक अग्नि की। तरह वह प्रज्वलित हो रहा था, जान पड़ता था कि, प्रलयकाल आ गया है और सूर्य की किरणे तीनों लोकों को जलाने के लिये उद्यत हो चुकी हैं। काल और मृत्यु सामने खडी है । इस तरह काल और अग्नि की तरह प्रभावाले विष को उपस्थित देखकर हम सभी डर से विह्वल हो गये है । अतः कमल-नयन महादेव ! आप संसार में कल्याण के लिये उसे पीजिये । आप श्रेष्ठ है. प्रभु है और आप ही पक्तिपावन हैं ।८४-८८। महादेव ! आपके अतिरिक्त कोई दूसरा पुरुष तीनों लोकों मे समर्थ नहीं कहा जा सकता है, जो इस विष के वेग को सहन करे । वरानने ! परमेष्ठी ब्रह्मा के वचन को सुनकर हमने स्वीकार कर लिया और देवो के लिये भी भयदायक काल की तरह महाघोर विष को पी गया । उसके पान से हमारा कण्ठ तत्क्षण कृष्ण वर्ण का ही गया ८६-६ । कमलपत्र के समान और लपलपाते नागराज तक्षक की तरह उस विप को कण्ठ मे लगा देखकर ब्रह्मा ने कहा लोकपितामहं -सुत्रत ! महादेव इस कण्ठ के द्वारा आप अत्यधिक शोभा पा रह हैं । के वचन ६१-६२ब्रह्मा को सुनकर देव-दानव, यक्ष-गन्धवं-भूतों और पिशाच-उरग एव राक्षसों के समय ०