पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४४२

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चतुष्पञ्चाशोऽध्यायः ४२३ नित्यायानित्यरूपाय नित्यानित्याय वै नमः। व्यक्ताय चैवाव्यक्ताय व्यक्ताव्यक्ताय वै नमः ७४ 'चिन्त्याय चैवाचिन्याय चिन्त्याचिन्त्यय वै नमः । भक्तानातनशाय नरनारायणाय च ॥७५ उमाप्रियाय शर्वाय नन्दिचक्राङ्किताय च । पक्षमासर्धमासाय नमः सवत्सराय च ७६ बहुरूपाय मुण्डाय दण्डिनेऽथ वरूथिने । नमः कपालहस्ताय दिग्वासाय शिखण्डिने ध्वजिने रथिने चैव यमिने ब्रह्मचारिणे । ऋग्यजुःसामवेदाय पुरुषायेश्वराय च । इत्येवमादिचरितैस्तुभ्यं देव नमोऽस्तु ते ।I७७ RI७८ ७६ श्रीमहादेव उवाच एवं स्तुत्वा ततो देवः प्रणिपत्य वरानने ज्ञात्वा तु भक्त मम देवदेवो गङ्गाजलाप्लावितकेशदेशः । सूक्ष्मोऽतियोगातिशयादचिन्त्यो न हि प्लुतो व्यक्तमुपैति चन्द्रः एवं भगवता पूर्वं ब्रह्मणा लोककर्तृणा । स्तुतोऽहं विविधैस्तोत्रैर्वेदवेदाङ्गसंभवैः ततः प्रीतोऽह्यहं तस्मै ब्रह्मणे सुमहात्मने । ततोऽहं सूक्ष्मया वाचा पितामहमथाब्रवम् भगवन्भूतभव्येश लोकनाथ जगत्पते । किं कार्यं ते मया ब्रह्मन्कर्तव्यं वद सुव्रत ८० ८१ ८२ t८३ है । आप नित्य, अनित्य, नित्यानित्य, व्यक्त, अव्यक्त व्यक्ताव्यक्त, चिन्त्य, अचिन्त्य, चिन्त्याचित्य और भक्तों की पीड़ा नाश करने वाले नरनारायण हैं |७१-७५। आप उमाप्रिय, शर्व, नन्दिचक्र से अकित शरीर वाले, पक्ष, मास, अर्धमास, संवत्सर, बहुरूप, मुण्डी, दण्डी, वरूथी, कप(लहस्त, दिग्वस्त्र और शिखण्डी हैं । आप ध्वजी, रथी, यमी, ब्रह्मचारी, ऋयजुःसामवेद, पुरुष और ईश्वर है। देव ! आप इस प्रकार के अन्याय गुणों से विभूषित हैं, आपको नमस्कार है ।७६-७८॥ महादेवजी बोले-"पार्वती ! ब्रह्मा ने इस प्रकार स्तुति और प्रणाम कर फिर कहा-—जिनका मस्तक गंगाजल से प्लावित हो रहा है वही अति सूक्ष्म और योग द्वारा अचिन्त्य देव-देव महादेव हमारी भक्ति जानकर आविर्भूत हों, जैसे चन्द्रमा प्रत्यक्ष रहने पर भी किसी का आह्वान नहीं चाहते हैं १७६-८०। इस प्रकार लोककर्ता ब्रह्मा द्वारा विविध प्रकार के वेद-वेदाङ्ग से अनुमोदित स्तोत्रों द्वारा स्तुति किये जाने पर हम प्रसन्न हो गये और महारमा पितामह ब्रह्मा से सूक्ष्म वचन में कहा-"भगवन् ! भूतभव्येश ! लोकनाथ ! जगत्पति ! सुव्रत ! ब्रह्म ! आपका कोन सा कायं है, जिसे हम करें (८१ -८३। इस