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वायुपुराणम्

यक्षगन्धर्वचरितैरनेकैः कन्दरोदरेः। शोभितश्व सुखासेव्यैश्चित्रैर्गहनसंकटैः।|८

नानासत्त्वगुणाकीर्णाः सुपानीयैः सुखाश्रयैः। नानापुष्पफलोपेतैः पादपैः समलंकृतः||९

तस्मिन्गृहाश्रयाकीर्णे अनेकोदरकन्दरे। फ्रीजवनं महेन्द्रस्य सर्वकामगुणैर्युतम्||१०

तत्र तद्देवराजस्य पारिजातवनं महत् । प्रकाशं त्रिषु लोकेषु गीयते श्रुतिनिश्चयात्||११

तरुणादित्यशंकाशैर्महागन्धैर्मनोहरैः । पुष्पैर्भाति नगश्रेष्ठः सुदीप्त इव सर्वशः||१२

समग्रं योजनशतं तं गन्धमनिलो वर्षो। पारिजातकपुष्पाणां माहेन्द्रवननिर्गतः||१३

वैढूर्यनालैः कमलैः सौवर्णावेंब्रकेसरैः। सर्वगन्धजलोपेतैर्मत्तषट्पदनादितैः||१४

व्याकोशैवकचैश्वापि शतपत्रैर्मनोहरैः। सुपङ्कणैर्महपत्रैर्वाप्यस्तत्र विभूषितः||१५

विरेजुरन्तरम्बुस्थाः सौवर्णमणिभूषिताः । परिस्पन्देक्षणा नित्यं मीनयूयाः सहस्रशः||१६

कूर्मानेकसंस्थानहॅमरत्नपरिष्कृतैः । चञ्चूर्यमणैः सलिलैर्भाति चित्रं समन्ततः||१७

नानावर्णाश्च शकुनैर्नानारत्नतनूरुहैः। सुवर्णपुष्पैश्वानेकैर्मणितुण्डे द्विजातिभिः||१८


गुफाओं की भी कमी नही है, जिनके चारों ओर किन्नर लोग टहलते रहते हैं । इनके अतिरिक्त और भी बहुत सी गुफाएँ हैं, जिनमें यक्षगन्धर्व आदि आनन्द से निवास किया करते हैं। सघन और सकटपूर्ण वनों के रहते है भी वे स्थान सुखपूर्वक निवास करने के योग्य है ।६-८ |विविध भाँति के पुप्पो ओर फलों से युक्त वृक्ष वहाँ विराजमान हैं, खानेपीने की सविधा पाकर जिन पर अनेकानेक जीव निवस करते है । उस पवत के उदर में कितनी ही कन्दराएँ है, जिनमें लोग आश्रम बनाये हुये है। वहाँ निखिल विलास साधनो से युक्त देवराज इन्द्र का एक क्रीडावन है और वही उनका तीनो लोकों मे विख्यात प्रसिद्ध पारिजात वन भी) है । श्रुतियाँ भी इसका समर्थन करती है ।e-११। तरुण सूर्य की तरह प्रकाशमान और मनोहर गचवाले पुष्प से वह पर्वतराज सदा देदीप्यमान रहता है । महेन्द्र के चन से बाहर निकलने वाली वायु उस पारिजात की गय को स योजन तक उड़ा ले जाती है ।१२-१३वह बहुत सी बावलियाँ भी हैं, जिनमे सोने के कमल खिले हुये है। उन कमलों के नालदण्ड वैदूर्य के और केसर हीरे के है जिन पर मदमत्त भ्रमर गुंजार करते रहन है। उनकी गन्ध से वापीका जल सुवासित रहता है । खिले हुये मनोहर शतपत्र और महापत्र पंकजों से भी वहाँ की वापिकार्ये विभूषित हैं । सुवर्ण और मणिय से भूषित हजारों चंचल आंखों वाली मछलियां पानी के भीतर से उगती और डूबती रहती है १४१६। सुवर्ण और रत्न से परिष्कृत अनेक प्रकार के कछुये पानी को चीरकर इधर-उधर आते जाते रहते हैं, जिससे पानी भी चित्रित-सा जान पड़ता है । बुद्धिमान् सहस्राक्ष इन्द्र का वह रमणीक वन विविध रंगवाले पक्षियो के कूजन और उनके उन्मत्त विचरण से सुन्दर दीख पड़ता है ।