पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३०८

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एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः
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वल्णुस्वरैः सदोन्मत्तैः संपतद्भिः समन्ततः। शुशुभे तद्वनं रक्ष्यं सहनक्षस्य धीमतः || १९

मत्तभ्रमरसंनादैविहङ्गानां च कूजितैः । नित्यमनन्दितवनं तस्मानीडावनं महत् ||२०

सुवर्णपाश्चैव नगैर्मणिमुक्तापुरस्कृतैः। मणिशृङकणापन्नैः पतद्भिश्च समन्ततः ||२१

शाखामृगैश्च चित्राङ्गैर्नानारत्नतनूरुहैः। नानोवणंप्रकारैल सत्वैरन्यैः समाकुलम् |।२२

सुद्यन्ति पुष्पवर्ष च तत्र बाललता द्रुमः । पारिजातकपुष्पाणां मन्दमारुतकम्पितः |।२३

शयनासननिवर्तृहैः स्तीर्णं रत्नविभूषितैः । विहारभूमयस्तत्र द्विजाः शक्तवने शुभा: ।

न च शीतो न चाप्युष्णो रविस्तत्र समः सदा ||२४

नित्यमुन्मादजननो मधुमाधवसंभवः । वति चाप्यनिलस्तत्र नानापुष्पाधिवासितः ।

नित्यं सङ्गसुखाह्नादी श्रमक्लमविनाशनः ||२५

तस्मिन्निन्द्रवने शुभ्र देवदानवपन्नगा: । यक्षराक्षसगुह्याश्च गन्धर्वाश्वामितौजसः ||२६

विद्याधराश्च सिद्धाश्च किंनराश्च मुदा युताः । तथाऽप्सरोगणाश्चैव नित्यं फीडापरायणाः ।।२७

तस्य पर्वतराजस्य पूर्वे पाश्र्वे महोचितम् । कुसुओ (दं) शैलराजानं नैकनिर्भरफन्दरम् ॥२८

उन पक्षियों के पंखों में कही रत्न गुये है. तो कही सुवर्णपुष्प खचित है । किन्ही-किन्हीं पक्षियों की चोचो मे मणि भी पिरोये हुये है । मत्त भ्रमरों के गुंजन और पक्षियों के कूजन से वह महान् क्रीडावन नित्य आनन्दमय रहता है और इसी से वह क्रीडावन भी कहलाता है १७२०इस क्रीडावन के पर्वत मणिमुक्ताओं से युक्त है। उनके पाश्र्वदेश सुवर्ण के हैं और शिखरों से मषियों के कण झरते रहते है । विविध वर्गों के घानरों से जिनके लोम रनों से गुंथे हुये है—और अनेक प्रकार के जीव-जन्तुओं से वह वन व्याप्त है । पारिजात पुष्प के वृक्ष और छोटी-छोटी लतिकाएँ वयार के हल्के धबके से ही पुष्पवृष्टि करने लगती है ।२१-२३विप्रो ! इन्द्र के उस वन में कितनी हो विहारभूमियाँ हैं जो रनों से विभूषित विविध शयन और आसनादि से भरी पड़ी है। वहाँ न गर्मी रहती है न सर्दी वयोकि वहाँ सूयं सदा एक समान रहते हैं । विविध पुष्पों की गन्ध से सुवासित उन्माद-जनक वसन्तकालीन वायु वह सदा बहती है । वह वायु स्परं सुख से आनन्द उस्पन्न करनेवाली तथा थकावट और क्लेश को सदा हरनेवाली है ।२४ २५। उस सुन्दर इन्द्रवन में देव, दानव पन्नग, यक्षराक्षस, गुह्यक, महाबली गन्धर्व, विद्याधर, सिद्ध, किन्नर ओर अप्सराएँ प्रसन्नचित्त से सदा क्रीड़ा करती रहती है (२६-२७उस पर्वतराज के पूर्व पाश्र्व में कुमुञ्ज नाम का एक पर्वतराज है, जिसमें अनेक झरने और फo-३७ ,