पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३००

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अष्टत्रिंशोऽध्यायः २८१ & ।१० ११ १२ १३ तरुणादित्यसंकाशैः पुण्डरीकैः समन्ततः । सहस्रपत्रैविकचैर्महापम् रलंकृतम् तथा भरभसंलीनैः शतपत्रैः सुगन्धिभिः। प्रफुल्लैः शोभितजलं रक्तनीलैर्महोत्पलैः सरोवरं महापुण्यं -देवदानवसेवितम् । महोरगै रध्युषितं नीलजालविभूषितम् तस्य मध्ये जनपदो ह्यायतः शतयोजनः । त्रिशद्योजनविस्तीर्णं रक्तधातुविभूषितः तस्योपरि महारथ्या प्रांशुप्राकारतोरणा । नरनारीगणाकीर्णं स्फीता विभवविस्तरः वलभी कूटनिर्मुहैर्मणिभक्तिविचित्रितैः । रत्नचित्रापिततलैः श्लक्ष्णचित्रोत्तरच्छदैः महाभवनमालाभिर्महप्रांशुभिरुत्तमैः। विद्याधरपुरं तत्र शोभते भ्राजयच्छुभम् विद्याधरपतिस्तत्र पुलोमा तत्र विश्रुतः । चित्रवेबधरः स्रग्वी महेन्द्रसदृशद्युतिः दीप्तानां चित्रवेषाणां सूर्यप्रतिमतेजसाम् । विद्याधरसहस्राणामनेकेषां स राजराद् विशाखस्याचलेन्द्रस्य पतङ्गस्यान्तरेण च । सरसस्ताम्रवर्णस्य पूर्वे तोरे परिश्रुतम् पञ्चेषुक्षेपविद्धं सुशाखं वर्णशोभितम् । सर्वकालफलं तत्र स्फीतं चऽऽभुवनं महत् १४ १५ १६ १७ १८ १६ है ।८। उसमें तरुण सूर्य की तरह पुण्डरीक, सहस्रपत्र और महापद्म चारो ओर खिले हुये है । भ्रमरो से आन्दोलित, सुगनधित शतपत्रों से युक्त खिले हुये रक्त, नील वर्ण के बड़े-बड़े कमलों से उसका जल सुशोभित हो रहा है । जिसमें इधर उधर शैवाल भी फैले है ।8-१०॥ देव दानव और महोरग उस जल का सदा उपयोग किया करते हैं। उसी के बीच सौ योजन लम्बा और तीस योजन चौड़ा एक देश है, जो मेरु से विभूषित है ।१११२ वहाँ एक बड़ी सी रथ्या ( सड़क ) है, जिसके चारों ओर तोरणों से सजी ऊंची दीवारे है । स्त्रीपुरुषों से खचखच भरी वह रथ्या अपनी श्री पर अभिमान करती है। उस देश के मध्य भाग मे विद्या घरों का एक सुसज्जित नगर है । वहाँ अत्युत्तम और अत्युन्नत अट्टालिकाओं की पंक्तियाँ शोभा को बढ़ा रही है, जिनमे सुन्दर दरवाजे और चन्द्रशालाएं है। महलों मे मणियों की पच्चीकारी की गई है और अट्टालिकाओं की दीवारों पर रन से चित्र बनाये गये है । वे अट्टालिकाएं बाहर से अत्यन्त स्वच्छ तथा रंगबिरंगी दीख पड़ती हैं ।१३-१५। वहाँ विधाधरों के स्वामी पुलोमा नाम से विख्यात है जो इन्द्र के समान कान्ति वाले हैं और अपने को वेश-भूषा और मालाओ से सदा सजते रहते है । उस राज-राज को भड़कीले वस्त्र और भूषण धारण करने वाले सूर्य की तरह तेजस्वी सहस्रों विद्याधर घेरे रहते है ।१६१७ विशाल और पतङ्गा चल के बीच ताम्रवर्ण सरोवर के पूर्व तीर पर सम्पूर्ण ऋतुओं मे फलने वाला एक विशाल आम्रवन है १८॥ इस वन पर कामदेव ने मानो अपने बाण चला दिये है । इसकी शोभा निखरी सी रहती है, सुन्दर वर्षों से IT फा०-३६