पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२९७

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२७८ नाम्ना तच्छीवनं नाम सर्वलोकेषु विश्रुतम् । गन्धर्वैः किन्नरैर्यक्षमंहनागैश्च सेवितम् ।।१३ सिद्धेश्चैव समाकीर्णं नित्यं बिल्वफलाशिभिः । विविधैर्भूतसंधैश्च नित्यमेव निषेवितम् ॥१४ तस्मिन्वने भगवती साक्षाच्छनित्यमेव हि । देवी संनिहिता तत्र सिद्धसंघेर्नमस्कृता १५ विकङ्कस्याचलेन्द्रस्य मणिशैलस्य चान्तरे । शतयोजनविस्तीर्णा द्वियोजनशतायतस् १६ विपुलं चम्पकवनं सिद्धचारणसेवितम् । पुष्पलक्ष्म्यावृतं भाति ज्वलन्तमिव नित्यदा ।१७ अर्धनशोच्चशिखरैर्महस्कन्धैः पलाशिभिः। प्रफुल्लशाखाशिखरैः पिञ्जरं भाति तद्वनम् ॥ १८ द्विबाहुपरिणाहैस्तैस्त्रिहस्तायामविस्तरैः । मनःशिलाचूर्णनिभैः पाण्डुकेशरशालिभिः १६ पुष्पैर्मनोहरैव्याप्तं व्याकोशैर्गन्धशालिभिः । विराजते वनं सर्वं मत्तभ्रमरनादितम् तद्वनं दानवैर्देवगन्धर्वैर्यक्षराक्षसैः । किंनरैरप्सरोभिश्च महानागैश्च सेवितम् तत्राऽऽश्रमं भगवतः कश्यपस्य प्रजापतेः। सिद्धसाध्यगणाकीर्णे नानाधृतिविभूषितम् । महानीलकुमुञ्जाभ्यामन्तरेऽप्यचलावथ महानद्याः सुखायास्तु तीरे सिद्धनिषेविते । पञ्चशद्योजनायामं त्रिंशद्योजनविस्तरम् ॥ रम्यं तालवनं तद्धि अर्धक्रोशोच्चमस्तकम् २३ ।।२० २१ २२ ये पक कर धरती पर गिरते है, तो वनप्रान्त भर जाता है। संसार मे वह श्रीवन के नाम से प्रसिद्ध है , जहाँ गन्धर्व, किन्नर, यज्ञ और महानाग सदा विचरण किया करते है ।१२-१३। बिल्व फल की आशा से सिद्धगण और विविध भाँति के जीव वहाँ पड़े रहते हैं । उस वन मे साक्षात् भगवती लक्ष्मी देवी स्वयं नित्य निवास करती है, उन्हें सिद्धगण प्रणाम किया करते हैं ।१४१५। विकंक और मणिशील पर्वतो के बीच मे सो योजन लम्बा और दो योजन चौड़ा बड़ा सा चम्मक वन है । यहाँ भी सिद्ध-चरण निवास किया करते है । फूलो क शोभा से वह वन सदा जलता हुआ सा मालूम पड़ता है ।१६-१७ विशाल तनेवाले उन वृक्षों के पत्तों के भार से झुकी शाखाएं आधे कोस तक ऊपर फैली हुई है, जिनमें सदा फूल खिले रहते है। इससे वह वन पिंजड़े की तरह शोभित रहता है ।१८ पाण्डु वर्ग के केसरो से युक्त और मनःशिला के चूर्ण की तरह वर्णवले, खिले हुये, मनोहर, सुगन्धित तीन हाथ लम्बे दो हाथ चौड़े पुष्पों से वहू वन सदा व्याप्त रहता है । उन फूलों पर भरे मंडराते रहते हैं, जिससे वन स्वयं मुखरित सा जान पड़ता है । यह वन भी दानव, देव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस किन्नर, अप्सरा और महानगों द्वारा सदा सेवित रहता है ,१६-२१। यहाँ भगवान् कश्यप प्रजापति का आश्रम भी है, जहाँ सिद्ध और स5यजन भरे पड़े हैं और जहाँ चारो वेदों का पांठ होता रहता है । महनील ओर कुटुंज पर्वतों के बीच भी सुखदायिनी महानदी के सिद्ध सेवित तट पर पचाम योजन लम्बा और तीस योंजन चौड़ा एक मनोहर तालवन है । वहाँ के ताड़ के पेड़ आधे-आधे कोस लम्बे है ।२२-२३॥