पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२९३

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२७४ ।।४ सुग्रीवलाश्वनरवैः कलविङ्कतैस्तथा । कूजितान्तरशब्दैश्च सुरम्याणि च सर्वशः मदोत्कटैर्मधुकरैश्न नरैश्च महलसैः। उपगीतवनान्तानि किन्नरैश्च क्वचित्क्वचित् ।।५ पुष्पवृष्टि विभ्वन्ति मन्दमारुतकम्पिताः । तरवो यत्र दृश्यन्ते चारुपल्लवशोभिताः ६ स्तबकैर्मञ्जरीभिश्च ताम्रः किशलयैस्तथा । मन्द्रत्वशाललोलैर्मीलयद्भिर्युतानि च नानाधातुविचित्रैश्च कान्तस्रूपैः शिलाशतैः। शललैः इव चिद्द्विजश्रेष्ठ विन्यस्तैः शोभितानि च ।।८ देवदानवगन्धर्वैर्यक्षराक्षसपन्नगैः। सिद्धप्सरोगणैश्चैव सेवितनि ततस्ततः । ७ १० ११ १२ मनोहाणि चत्वर देवानडनकान्यथ । चतुदशमुदराणि नाम्नि श्रुणुत तानि मे पूर्व चैत्ररथं नाम दक्षिणं नन्दनं वनम् । वैभ्राजं पश्चिमं विद्यादुत्तरं सवितुर्वनम् महदनेषु चैतेषु निविष्टानि यथाक्रमम् । अनुबन्धानि रम्याणि विहङ्गः कूजितानि च नै विस्तीर्णतीर्थानि महापुण्यवनानि च । महानागाधिवासनि सेवितानि महात्मभिः सुरसामलतोयानि शिवानि सुसुखानि च । सिद्धदेवासुरवरैरुपस्पृष्टजलानि च छप्रमाणैविकचैर्महागन्धैर्मनोहरैः। पुण्डरीकैर्महापत्रैरुत्पलैः शोभिनि च । महासरांसि चत्वारि तानि वक्ष्यामि नामतः १३ १४ १५ कलविक आदि पक्षियों के मधुर निनाद से उनके प्रान्तर भाग सदा गुंजित और सुरम्य बने रहते है । मतवाले अतएव अलसाये मधुकरो, भ्रमरों से तथा किन्नरो से भी कहीं-कही वह वन मुखरित रहता है । कोमल पल्लवों से सुशोभित सब वृक्ष वहाँ मन्द या रुतसे कपाये जाने पर सदा पुष्पवृष्टि करते हुये देखे जाते है ।३-६॥ फूलों के गुच्छे, मंजरियाँ और लाल-लाल पत्ते मन्दवायु के झोंते से सदा हिलते हुये ऐसे जान पड़ते हैं मानों हिंडोले पड़े हों । ब्राह्मणो ! नाना धातुओं से विचित्र अतएव रमणीय शत-शत शिलाएं और शल्ल ( पपड़ियाँ) इधर-उधर पड़े हुये हैं, जिससे सारा वन-प्रान्त सुशोभित रहता है I७-८) जहाँ-तहाँ सिद्ध, देव, दानव, गन्धर्व. यक्ष, राक्षस, पन्नग, सिद्ध और अप्सरागण भी वहाँ घूमते-फिरते रहते है। वहाँ देवताओं के चार क्रीडावन है जो रमणीय और विस्तृत हैं। उनके नाम को सुनिये ।e-१०। पूर्वं मे चैत्ररथवनदक्षिण मे नन्दनवन, पविंचप में वैभ्राज और उत्तर मे सवितृवन है । इन चारों वनों का भीतरी स्थान-संनिवेश बड़ा ही मनोहर है । वह सदा ही पक्षिकुल कलरव करता रहता है। उन वनो में बड़ेबड़े तीर्थं, पुण्यस्थान हैं। जहाँ बड़ेबड़े नाग निवास करते है और महात्मा भी विराजते रहते है ।११-१३। वहाँ के जलाशयों, का जल सुमधुर, निर्मल, सुखद और मंगलकर हैं, क्योंकि यहाँ की जलराशि सिद्धोदेवों और राक्षसो आदि के द्वारा स्पर्धा की गई है । छाते को तर्हे बड़ेबड़े मनोहर, सुगन्धित और बड़ी पंख ड़ियों वाले पुण्डरीक और उत्पलों से वे जलाशय शोभायमान है। वहाँ बड़ेबड़े चार सरोवर भी हैं। उनके नामो को भी सुनिये १४१५ पूर्व में