पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२८०

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ऽध्यायः २६१ नानावर्णस्तु यश्चैष प्रजापतिगुणान्वितः। नाभिबन्धनसंभूतो ब्रह्मणोऽव्यक्तजन्मनः १६ पूवतः श्वेतवर्णाऽसौ ब्राह्मण्यं तस्य तेन तत् । पीतश्च दक्षिणेनासौ तेन वैश्यत्वमिष्यते १७ भृङ्गपत्रनिभश्चसौ पश्चिमेन महबलः । तेनास्य शूद्रता दृष्ट मेरोर्नानर्थकारणात् १८ पाश्र्वमुत्तरतस्तस्य रक्तवर्ण स्वभावतः। तेनस्य क्षत्रता च स्यादिति वर्णाः प्रकीतिताः ॥ व्यक्तः स्वभावतः प्रोक्तो वर्णतः परिमाणतः १६ नलश्च वैदूर्यमयः श्वेतशृङ्गो हिरण्मयः।मयूरबर्हवर्णस्तु शातकौम्भस्तु शृङ्गवान् ।।२० एते पर्वतराजानः सिद्धचारणसेविताः । तेषामन्तरविष्कम्भो नवसाहत्र उच्यते। मध्ये त्विलावृतं यस्तु महामेरोः समन्ततः। नवैव तु सहस्राणि विस्तीर्णः पर्वतस्तु सः । मध्ये तस्य महामेरोनिघूम इव पावकः २२ वेद्यर्थं दक्षिणं मेरोरुत्तरार्ध तथोत्तरम् । वर्षाणि यानि सप्तात्र तेषां ये वर्षपर्वताः । हे हे सहत्र निस्तीर्णा योजननि समुच्छयात् २३ जम्बूद्वीपस्य विस्तारात्तेषामायाम उच्यते । योजनानां सहस्राणि शते द्वे मध्यमौ गिरी २४ २१ के मनुष्य निवास करते हैं; अतएव यह प्रजापति के गुणों से युक्त है । अव्यक्त जन्मा ब्रह्मा के नाभि वन्धन से यह उत्पन्न हुआ है ।१४ १६ पूर्व में यह श्वेत वर्ण है; अतः उससे इसक ब्राह्मणत्व जाना जाता है । दक्षिण ओर से यह पीत है; अत: उससे इसका वंश्यत्व प्रकट होता है ।१७। यह महाबली मेरु पश्चिम की ओर भृगपत्र की तरह काला है; अतः उससे इसकी शूद्रता देखी जाती है और उत्तर की ओर यह स्वभाव से ही लाल वर्ण का है, उससे इसका क्षत्रिय होना व्यक्त होता है । नाना वणं मय होने के कारण यह चातुर्वण्णं कहा है स्वभाववर्ण और परिमाण के कारण यह व्यक्त कहा गया है ।१८१६। नील गिरि वैदूर्य (मुंग) गया । और हिरण्यमय है । इसके शिखर उज्ज्वल हैं । मयूरपिच्छ की तरह यह सुन्दर है और इसके शिखर सुवर्णमय हैं । ये पर्वतराज हैं, जो सिद्धे गन्धर्वो से सेवित है। इनका अन्तर विष्कम्म नौ हजार योजन का कहा जाता है । इलावृत , इन पर्वतों के बीच नाम का देश हैंजिसका वर्षे पर्वत नौ हजार योजन का है और जो मेरु को चारों ओर से घेरे हुये हैं ।२०-२१। मेरु इनके वीच वैसा ही मालूम पड़ता है, जैसे बिना धुएँ की अग्नि २२मेरु के दक्षिणार्ड और उत्तरार्द्ध के रूप में दक्षिण वेदी और उत्तर वेदी है । इनके जो सात बीच देश , उनके वर्ष पर्वतों का विस्तार दो-दो हजार योजनों का है। उनका विस्तार जम्बूद्वीप के विस्तार के अनुसार कहा जाता है अथवा जम्बूद्वीप से वे अधिक बड़े हैं। उनके मध्य में स्थित नील और मध्य नामक पवंत दो हजार दो सौ योजनों के हैं ।२३२४ इनकी अपेक्षा और जो श्वेत, हेमकूटहिमवान्भृङ्गवान्